Amalaki Ekadashi 2024: कब है आमलकी एकादशी? जानें इस एकादशी का शिव-पार्वती का क्या संबंध है? साथी ही जानें इसका महत्व एवं पूजा-विधि इत्यादि!
Amalaki Ekadashi - (img : file photo

हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष के 11 वें दिन आमलकी एकादशी का व्रत रखा जाता है, इसे रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव देवी पार्वती के साथ विवाह करने के पश्चात इसी दिन उन्हें लेकर काशी आये थे, उनके स्वागत में काशीवासियों ने एक दूसरे पर रंग फेंक कर खुशियां मनाई थी. इसलिए इस दिन को रंगभरी एकादशी भी कहते हैं. यही वजह है कि काशी में रंगभरी एकादशी से होली का पर्व प्रारंभ हो जाता है. आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ ऐश्वर्य की देवी माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है. बहुत सी जगहों पर इस दिन आंवले के पेड़ की भी पूजा का विधान है. ऐसा करने वाले जातक की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, तथा घर में बरकत होती है. आइये जानते हैं, आमलकी व्रत के बारे में विस्तार से..

आमलकी एकादशी व्रत का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के पेड़ को भगवान विष्णु ने ही जन्म दिया था. आंवले के पेड़ के हर एक भाग में ईश्वर का वास है. इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर नारायण की पूजा करने से एक हजार गौ दान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन बहुत से लोग आंवले का उबटन लगाते हैं, और आंवले के जल से ही स्नान करते हैं. यह भी पढ़ें : Phalgun Amavasya 2024: अमावस्या-तिथि को अशुभ क्यों मानते हैं? जानें फाल्गुन अमावस्या का महत्व, मुहूर्त एवं पूजा-अनुष्ठान इत्यादि!

आमलकी एकादशी (2024) शुभ मुहूर्त

आमलकी एकादशी प्रारंभः 12.21 PM (20 मार्च 2024, बुधवार) से

आमलकी एकादशी समाप्तः 02.22 PM (21 मार्च 2024, बुधवार) तक

पारण कालः 01.07 PM से 03.32 PM के बीच

आमलकी एकादशी पूजा विधि

फाल्गुनी एकादशी को सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निवृत्ति होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. इसके बाद मंदिर के सामने एक चौकी स्थापित कर उस पर लाल अथवा पीला वस्त्र बिछाएं. इस पर भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. विष्णुजी को पंचामृत से स्नान कराएं. धूप-दीप प्रज्वलित करें. निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए पूजा की प्रक्रिया प्रारंभ करें.

ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।

यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।

भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी को पीले फूलों का हार पहनाएं, तुलसी दल पुष्प, रोली, पीला चंदन, पान, सुपारी आदि अर्पित करें. फाल्गुनी एकादशी की पूजा में पंजीरी और पंचामृत का भोग लगाना शुभ माना जाता है. पूजा के अंत में विष्णु जी की आरती उतारें, और सभी को प्रसाद वितरित करें. बहुत से लोग इस दिन भगवान शिव एवं देवी पार्वती की भी पूजा-अनुष्ठान करते हैं. पूजा के पश्चात गरीबों को भोजन कराना भी बहुत पुण्य का काम होगा.