क्या मुकेश अंबानी की जियो को पछाड़ देगी इलॉन मस्क की स्टारलिंक
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

इलॉन मस्क की सैटेलाइट इंटरनेट कंपनी स्टारलिंक कई सालों से भारत में प्रवेश करना चाह रही है. भारत सरकार ने कहा है कि कंपनी सभी अनिवार्यताओं को पूरा करने में लगी हुई है. इस बयान के बाद भारतीय टेलीकॉम कंपनियां चिंता में हैं.यह कहना मुश्किल है कि इलॉन मस्क के लिए यह सिर्फ संयोग है कि एक तरफ अमेरिका में उन्हें ट्रंप सरकार का हिस्सा बनाने के लिए चुन लिया गया है और दूसरी तरफ भारत में वो अपनी इंटरनेट कंपनी स्टारलिंक को प्रवेश दिलाने में जुटे हुए हैं.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भारत के दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा है कि सैटेलाइट इंटरनेट उपलब्ध करवाने वाली मस्क की कंपनी स्टारलिंक भारत के सुरक्षा संबंधी मानकों को पूरा करने की प्रक्रिया में है और प्रक्रिया पूरी होते ही उसे लाइसेंस दे दिया जाएगा.

रंग ला रही हैं मस्क की कोशिशें

सिंधिया ने कहा, "आपको इसे सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि सभी सुरक्षा संबंधित चिंताओं को संबोधित कर लिया गया है." इस बयान को इस बात का संकेत माना जा रहा है कि स्टारलिंक को लाइसेंस जल्द मिल जाएगा. कंपनी कई सालों से भारतीय बाजार में घुसने की कोशिश कर रही है.

यह बात मीडिया में पहले ही आ चुकी है कि स्टारलिंक भारत सरकार से डाटा के स्टोरेज समेत कई विषयों पर बातचीत कर रही है. सुरक्षा को लेकर हरी झंडी मिलते ही स्टारलिंक भारत में ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवाएं लाने के मस्क के सपने के एक कदम और करीब पहुंच जाएगी.

इस समय भारत के ब्रॉडबैंड बाजार में मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो का वर्चस्व है. उसके पास 1.4 करोड़ सब्सक्राइबर हैं. रायटर्स के मुताबिक स्टारलिंक ने भारत सरकार को कहा है कि वो सरकार की सभी जरूरतें पूरी करेगी.

यह हरी झंडी मिलने के बाद कंपनियों को ब्रॉडबैंड सेवाएं देना शुरू करने के लिए स्पेक्ट्रम लेना आवश्यक होता है और उसे लेकर मस्क और अंबानी के बीच पहले से खींचतान चल रही है.

क्यों चिंता में हैं भारतीय कंपनियां

अक्टूबर में भारत सरकार ने कहा कि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी करने की जगह सरकार फैसला करेगी कि किसे देना है. मस्क यही चाहते थे, जबकि अंबानी नीलामी करवाने का समर्थन कर रहे थे.

अंबानी के पास 47 करोड़ से ज्यादा टेलीकॉम उपभोक्ता भी हैं और वह स्पेक्ट्रम की नीलामी में 160 अरब रुपयों से ज्यादा खर्च चुके हैं. लेकिन उन्हें चिंता है कि उनके ब्रॉडबैंड उपभोक्ता और उसके बाद मुमकिन है डाटा और वॉइस के ग्राहक मस्क के पास चले जाएंगे.

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक रिलायंस को सैटलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएं शुरू करने के लिए सुरक्षा क्लीयरेंस पहले ही मिल चुका है और अब उसे स्पेक्ट्रम की नीलामी का इंतजार है. अंबानी ने कभी जियो के मोबाइल प्लान में मुफ्त इंटरनेट दिया था. मस्क को भी इसी तरह की रणनीतियों के लिए जाना जाता है.

उन्हें जब केन्या में स्टारलिंक ब्रॉडबैंड शुरू किया था तब उन्होंने उसका शुल्क 10 डॉलर प्रति माह रखा था, जबकि अमेरिका में यही शुल्क 120 डॉलर प्रति माह है. केन्या में उनकी इस रणनीति से स्थानीय कंपनियां परेशान हो गई थीं.

स्पेक्ट्रम के आवंटन का सवाल

अब भारतीय कंपनियों को भी इसी तरह की स्थिति का डर सता रहा है. जियो ने भारत के दूरसंचार नियामक टीआरएआई से कहा है कि स्पेक्ट्रम की नीलामी ही होनी चाहिए, जबकि मस्क का कहना है कि यह अभूतपूर्व होगा क्योंकि लंबे समय से पूरी दुनिया में सैटलाइट स्पेक्ट्रम का आवंटन ही होता रहा है.

जानकारों का कहना है कि नीलामी की वजह से सभी कंपनियों का खर्च बढ़ जाएगा और इससे इन सेवाओं सेवा को शुरू करने पर असर पड़ेगा. कॉउंटरपॉइंट टेक्नोलॉजी मार्किट रिसर्च में एसोसिएट निदेशक गारेथ ओवेन ने एएफपी को बताया कि सैटलाइट बाजार मुनाफा कमाने के लिए बड़ा प्रतिस्पर्धात्मक और कठिन बाजार है.

उन्होंने कहा, "बहुत सारे खिलाड़ी एक सीमित बाजार का पीछा कर रहे हैं. इस वजह से हर कंपनी अपने बाजार में किसी प्रतिद्वंदी के प्रवेश को रोकने या उसमें देर करने के लिए जो उससे बन पड़ेगा वो करेगी."