मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में CBI (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो) की जांच प्रक्रिया और कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं. जस्टिस केके रामकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि CBI की जांच में पक्षपात और संदेहास्पद रवैया अब आम हो गया है, जिससे जनता का विश्वास कमजोर पड़ा है. अदालत ने यह टिप्पणी एक बैंक घोटाले के मामले में आठ अभियुक्तों को बरी करते हुए की.
CBI को लगता है कि वे सबके ऊपर हैं
अदालत ने स्पष्ट कहा कि आजकल CBI अधिकारी ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे उनके पास असीमित शक्ति हो और कोई उन्हें जवाबदेह नहीं ठहरा सकता. ऐसे में जनता को लगता है कि एजेंसी की काम करने की संस्कृति गिरावट की ओर है.
न्यायालय ने पाया कि जिन आठ लोगों को बैंक धोखाधड़ी के मामले में दोषी ठहराया गया था, उनके खिलाफ ठोस सबूत नहीं थे. यह भी कहा गया कि CBI ने पूरे मामले की लापरवाही से जांच की और इससे न्याय में चूक हुई.
जनता का भरोसा दोबारा कैसे जीते CBI?
मद्रास हाई कोर्ट ने CBI को सुधार के लिए कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश दिए:
- FIR और अंतिम रिपोर्ट में आरोपी की भूमिका की गहन निगरानी.
- जांच की प्रगति और सबूतों के संग्रह पर सतर्क नजर.
- एक कानूनी टीम की नियुक्ति – जो जांच अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार सलाह दे.
- वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग – ताकि जांच प्रमाणिक और निष्पक्ष हो.
केवल निचले अधिकारियों पर कार्रवाई करती है CBI
अदालत ने यह भी बताया कि CBI अक्सर ऊंचे पदों पर बैठे आरोपियों को बचा लेती है, जबकि केवल निचले दर्जे के कर्मचारियों को आरोपी बनाती है. कई मामलों में न तो हैंडराइटिंग एक्सपर्ट की राय ली जाती है और न ही इलेक्ट्रॉनिक सबूतों की वैज्ञानिक जांच होती है.
CBI अधिकारियों पर भी लगे भ्रष्टाचार के आरोप
जस्टिस रामकृष्णन ने कहा कि CBI के कुछ अधिकारी खुद घूसखोरी में लिप्त पाए गए हैं, और यह किसी एक मामले तक सीमित नहीं, बल्कि यह एक बड़े संकट की झलक है.
न्यायालय ने अंतिम टिप्पणी में कहा कि CBI को वही भरोसा फिर से अर्जित करना होगा जो एक समय देश की सबसे प्रतिष्ठित जांच एजेंसी को मिला करता था. न्याय और निष्पक्षता की पहचान फिर से कायम करनी होगी.













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