लखनऊ: लखनऊ में गत फरवरी में हुई ‘यूपी इन्वेस्टर्स समिट’ (UP Investors Summit) के आयोजन में हुए कथित घोटाले (Scam) का मुद्दा बृहस्पतिवार को उत्तर प्रदेश विधान परिषद में उठा. शून्यकाल के दौरान सपा सदस्य आनंद भदौरिया ने यह मुद्दा उठाते हुए आरोप लगाया कि फरवरी माह में लखनऊ में ‘यूपी इन्वेस्टर्स समिट’ का आयोजन किया गया, जिसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ.
उन्होंने आरोप लगाया कि आयोजन के लिये लगायी गयी 38 हजार 355 मीटर लम्बी एलईडी पट्टी के लिये 37 लाख 99 हजार रुपये का भुगतान किया गया. अगर इसे थोक के भाव खरीदा जाता तो यह 15 लाख 34 हजार रुपये की होती, मगर किराये पर 38 लाख का भुगतान कर दिया गया. इसके अलावा सजावट के लिये जो गमले लगाये गये, उनमें भी घपला हुआ. कुल सजावट के नाम पर 85 लाख 54 हजार 26 रुपये का घोटाला हुआ है.
सपा विधायक ने कहा कि हम चाहते हैं कि सभापति रमेश यादव एक सर्वदलीय समिति बनायें, जो इस सम्मेलन पर हुए हर खर्च की जांच करे.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश के प्रति दुनिया का नजरिया बदलने के लिये ‘यूपी इन्वेस्टर्स समिट’ का आयोजन किया गया था. आयोजन में चार लाख 68 हजार करोड़ रुपये के निवेश के एमओयू हस्ताक्षरित हुए थे. 60 हजार करोड़ का निवेश जमीन पर भी उतरा है. हम प्रदेश में उतने ही और निवेश के प्रस्तावों को अंतिम रूप दे रहे हैं.
उन्होंने कहा कि सदस्य ने जो गड़बड़ियां उठायी हैं वे सरकार की ही जांच में सामने आयी हैं. इन पर अभी जांच चल रही है. सरकार ने पूरी पारदर्शिता के लिये ई-टेंडरिंग की व्यवस्था की है.
मुख्यमंत्री ने पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा ‘‘हमने वैसा कभी नहीं किया जैसा कि पिछली सपा सरकार के कार्यकाल में बने गोमती रिवरफ्रंट में हुआ था. जनवरी 2015 में उसका डीपीआर 157 करोड़ का था. कार्य शुरू होते होते यह 357 करोड़ हो गया और मार्च 2017 तक 1400 करोड़ खर्च होने के बावजूद केवल 60 प्रतिशत कार्य ही हुआ था.’’
योगी ने कहा कि पिछली सरकार पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे को 16 हजार करोड़ रुपये में बनवा रही थी, हम 11 हजार करोड़ रुपये में बनवा रहे हैं. यह पांच हजार करोड़ रुपये कहां जा रहा था. किसी भी भ्रष्ट व्यक्ति को किसी भी स्तर पर सरकार के खजाने या जनता की जेब पर डाका डालने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
नेता प्रतिपक्ष अहमद हसन ने इस पर कहा कि प्रदेश की योगी सरकार ने अपने गठन के बाद लगभग दो साल के दौरान एक भी काम नहीं किया. पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार ने जो भी विकास कार्य कराये, उनमें एक भी पैसे का भ्रष्टाचार नहीं हुआ था. कोई भी जांच इसे साबित नहीं कर सकी है.