नई दिल्ली, 21 सितंबर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन दिवसीय अमेरिका दौरे के लिए रवाना हो गए हैं. वह इस यात्रा में क्वाड लीडर्स समिट और संयुक्त राष्ट्र के 'भविष्य के शिखर सम्मेलन' में भाग लेंगे. उनका जोर अमेरिका और अन्य इंडो-पैसिफिक सहयोगियों के साथ भारत के दीर्घकालिक संबंधों को मजबूत बनाने पर होगा.
इस मौके पर 1990 के दशक में उनकी कम चर्चित अमेरिकी यात्रा का जिक्र करना दिलचस्प होगा, जब वह केवल के साधारण बीजेपी कार्यकर्ता थे. नरेंद्र मोदी 1997 में विश्व हिंदू परिषद (VHP) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में अतिथि के रूप में शामिल होने के लिए अमेरिका गए थे. कार्यक्रम में भाग लेने के बाद नरेंद्र मोदी अपने मेजबान के घर पर वापस लौटे तो उन्हें पता चला कि उनका बैग, जिसमें उनका पासपोर्ट, पैसा और कपड़े थे, गायब हो गए. यह भी पढ़ें : Rahul Gandhi Attack on BJP: ‘सच्चाई बर्दाश्त नहीं कर सकते इसलिए…’, राहुल गांधी ने बीजेपी पर लगाया झूठ फैलाने का आरोप (Watch Video)
यात्रा के दौरान मोदी के साथ रहे एनआरआई हीरूभाई पटेल इस घटना के बारे में बताते हैं, "तनावपूर्ण स्थिति के बावजूद, नरेंद्र मोदी शांत रहे और सभी को चिंता न करने को कहा, जिससे दबाव में भी शांत रहने की उनकी क्षमता का पता चलता है." इसके बाद अगले पांच दिन, नए पासपोर्ट के इंतजार में नरेंद्र मोदी ने अपने मेजबान के घर पर बिताए.प्रस्थान करने से पहले, उन्होंने अपने तात्कालिक खर्चों को पूरा करने के लिए कुछ डॉलर का कर्ज मांगा और भारत लौटने पर इसे चुकाने का वादा किया. अपने वचन के अनुसार, उन्होंने कुछ ही दिनों में भारत में अपने मेजबान के रिश्तेदारों को रीपेमेंट कर दी.
नरेंद्र मोदी की सादगीपूर्ण जीवनशैली के बारे में सभी जानते हैं. 1997 में उनकी अमेरिका यात्रा का एक अन्य उदाहरण इस बारे में जानकारी देता है.अटलांटा में रहने वाले एक एनआरआई गोकुल कुन्नाथ को याद है कि उन्होंने नरेंद्र मोदी को एक कार्यक्रम के लिए एयरपोर्ट से रिसीव किया था. कुन्नाथ ने सोचा कि लंबे समय तक रुकने के लिए नरेंद्र मोदी के पास काफी सामान होगा. हालांकि, उन्हें हैरानी हुई कि वे केवल एक छोटे ब्रीफकेस के साइज जितने बैग के साथ पहुंचे. कुन्नाथ ने मोदी से पूछा कि क्या उनका और सामान रास्ते में है, इस पर उन्होंने जवाब दिया, "कोई सामान नहीं है. यात्रा के लिए मेरे पास बस इतना ही है."
इस संक्षिप्त बातचीत ने कुन्नाथ पर एक अमिट छाप छोड़ी. इससे उन्हें नरेंद्र मोदी की विनम्र और अनुशासित जीवनशैली के बारे में पता चला. नरेंद्र मोदी की शुरुआती अमेरिकी यात्राओं ने भारत के विकास के लिए उनके दृष्टिकोण को आकार देने में अहम भूमिका निभाई, खासकर गुजरात में गिफ्ट सिटी की अवधारणा को लेकर. गुजरात के एक अमेरिकी व्यवसायी सीके पटेल के अनुसार, 1997 में डाउनटाउन लॉस एंजिल्स की यात्रा ने नरेंद्र मोदी पर गहरी छाप छोड़ी.
यूएस बेस्ड बिजसनेसमैन ने कहा, "एक रात, मैं उन्हें डाउनटाउन लॉस एंजिल्स ले गया. उस दौरान, गिफ्ट सिटी की परिकल्पना आकार लेने लगी. नरेंद्रभाई ने गगनचुंबी इमारतों को देखा और कहा- यह वह जगह है जहां अर्थव्यवस्था फलती-फूलती है, बैंक, कॉर्पोरेट कार्यालय और बड़े संस्थान शहर को आगे बढ़ाते हैं." नरेंद्र मोदी की जिज्ञासा व्यापार केंद्रों से आगे बढ़कर बुनियादी ढांचे को लेकर भी थी. गाड़ी चलाते समय, जब कार सड़क से थोड़ी दूर मुड़ी, तो उन्होंने एक अजीब सी आवाज़ सुनी.
पटेल ने कहा, "उन्होंने (मोदी) मुझसे पूछा कि यह आवाज क्या थी, मैंने बताया कि अमेरिका में सड़कें ड्राइवरों को सचेत करने के लिए डिजाइन की गई हैं. वह जानना चाहते थे कि ये सड़कें कैसे बनाई गईं." ग्लोबल बेस्ट प्रैक्टिस को अपने देश में लागू करने की इसी इच्छा ने बाद में गुजरात में गिफ्ट सिटी को जन्म दिया. नरेंद्र मोदी की विविध श्रोताओं से जुड़ने की क्षमता की झलक भी 1990 के दशक में उनकी अमेरिका यात्रा के दौरान देखने को मिलती है. न्यूयॉर्क में 'फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी' फोरम में उन्होंने अंग्रेजी में भाषण दिया और भाषा पर अपनी पकड़ से श्रोताओं को खासा प्रभावित किया.
कार्यक्रम में मौजूद गुजरात के एक पर्यवेक्षक ज्योतिंद्र मेहता ने उस भाषण को याद करते हुए कहा, "हालांकि वह गुजराती और हिंदी में एक कुशल वक्ता हैं, लेकिन किसी को भी यह उम्मीद नहीं थी कि उनकी अंग्रेजी भी इतनी अच्छी है. तीनों भाषाओं पर उनकी पकड़ असाधारण थी." मेहता ने कहा, "अंग्रेजी उनकी पहली भाषा नहीं थी लेकिन मोदी ने अपने विचारों को प्रभावशाली स्पष्टता के साथ व्यक्त किया. उनका भाषाई कौशल एक कम्युनिकेटर के रूप में उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है."
नरेंद्र मोदी की शुरुआती अमेरिकी यात्राओं की ये घटनाएं एक ऐसे नेता की तस्वीर पेश करती हैं जो दबाव में भी शांत रहता है, एक संयमी जीवनशैली को अपनाता है और विदेश में अपने अनुभवों से लगातार सीखने की कोशिश करता है. भारत के विकास के साथ इन सीखों को जोड़ने की उनकी क्षमता 1990 के दशक में भी स्पष्ट थी और आज भी प्रधानमंत्री के रूप में उनके नेतृत्व को आकार दे रही है.