नई दिल्ली, 13 मार्च : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के बावजूद उपमुख्यमंत्री सहित योगी सरकार के 11 मंत्रियों की चुनावी हार ने भाजपा के सामने कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं क्योंकि हारने वाले दिग्गजों में एक तरफ केशव प्रसाद मौर्य हैं, जिन्हें 2017 की जीत के नायकों में गिना जाता है तो दूसरी तरफ गन्ना मंत्री सुरेश राणा जैसे हिंदुत्व ब्रांड के चेहरे भी है. शामली जिले से सुरेश राणा , प्रतापगढ़ जिले से राजेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह, चित्रकूट से चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय, बलिया से आनंद स्वरूप शुक्ल, उपेंद्र तिवारी, सिद्धार्थनगर जिले से सतीश द्विवेदी , औरैया जिले से लखन सिंह राजपूत, बरेली जिले से छत्रपाल सिंह गंगवार, फतेहपुर जिले से रणवेंद्र सिंह और गाजीपुर जिले से संगीता बलवंत जैसी मंत्रियों के अलावा संगीत सोम जैसे फायरब्रांड नेताओं की हार ने 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा के सामने कई नए तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं , जिनके जवाबों में ही 2024 लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने का मंत्र छुपा हुआ है.
उत्तराखंड में एक मिथक को तोड़ कर पार्टी को लगातार दूसरी बार सत्ता में लाने वाले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दूसरे मिथक को नहीं तोड़ पाए और स्वयं अपना विधानसभा चुनाव हार गए. यहां अब पार्टी को यह तय करना है कि वो धामी को ही मुख्यमंत्री बनाए या किसी नए चेहरे को प्रदेश की कमान सौंपे. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता अपने चरम पर है. प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव हो या देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के राहुल और प्रियंका गांधी की जोड़ी, ये सब मोदी-योगी जोड़ी के आगे फीके पड़ गए हैं. यह भी पढ़ें : सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए आगे का रास्ता चुनौतियों से है भरा
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 37 सालों में पहली बार किसी राजनीतिक दल को प्रदेश की जनता ने दोबारा सत्ता सौंपी है और वो भी 273 सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ. यह जीत कितनी बड़ी है , इसका अंदाजा भाजपा को मिले मत प्रतिशत से भी लगाया जा सकता है क्योंकि जिस प्रदेश में आमतौर पर 30 प्रतिशत मतों के साथ सरकार बन जाया करती थी , उस प्रदेश में लगातार दूसरी बार 40 से ज्यादा मत प्रतिशत हासिल कर भाजपा सरकार बनाने जा रही है.
इस जीत ने जहां एक ओर 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की दावेदारी को पुख्ता और मजबूत कर दिया है वहीं दूसरी ओर विरोधी दलों के लिए अस्तित्व का भी संकट उत्पन्न कर दिया है. वैसे तो 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही देश की सबसे पुरानी और मुख्य विपक्षी पार्टी का जनाधिकार लगातार खिसकता जा रहा है लेकिन उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने उसकी मौजूदगी को लेकर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं. राहुल गांधी के बाद प्रियंका गांधी के भी उत्तर प्रदेश में फ्लॉप होने की वजह से कांग्रेस के अंदर मचा घमासान फिर से शुरू हो गया है. मोदी-शाह की यह रणनीति भी रही है कि विरोधी दलों के लिए कभी भी कोई भी स्पेस मत छोड़ो और इसलिए पांचों राज्यों के चुनावी नतीजे आने के अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में रोड शो करते नजर आए और पार्टी कैडर को जोर-शोर से चुनाव में जुट जाने का गुरुमंत्र देते नजर आए.
अगले कुछ महीनों में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने है. गुजरात , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है जहां वो लगभग साढ़े 12 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे हैं. गुजरात में 1995 से भाजपा ही लगातार विधानसभा चुनाव जीतती आ रही है. हिमाचल प्रदेश में वर्तमान में भाजपा की सरकार है लेकिन उत्तराखंड की तरह ही इस राज्य के साथ भी एक मिथक जुड़ा हुआ है. वर्ष 1993 के बाद से राज्य में किसी भी राजनीतिक दल को लगातार दूसरी बार जनादेश नहीं मिला है. दोनों ही राज्यों में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है लेकिन चुनाव दर चुनाव जीतने के मिशन में लगी भाजपा ने अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे को अभी से मैदान में उतार दिया है. यही भाजपा की सबसे बड़ी ताकत भी है. चुनावी नतीजों को देखने का भाजपा का अपना नजरिया है. भाजपा लगातार चुनावी नतीजों और ट्रेंड का विश्लेषण करती रहती है और इसी के मुताबिक भविष्य की रणनीति में बदलाव भी करती रहती है. इसलिए इन चुनावों ने भाजपा के सामने कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं, जिसका जवाब भाजपा तलाशने में लगी हुई है.