नयी दिल्ली, 11 जनवरी: बिहार में जातिगत जनगणना कराने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय 20 जनवरी को सुनवाई करेगा. उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को इस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई. Bihar Caste Census: बिहार में जातिगत जनगणना शुरू, जानें कैसे हो रही गिनती, कितना आएगा खर्च?
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील द्वारा मामले का उल्लेख किए जाने के बाद इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.
पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई अगले शुक्रवार (20 जनवरी) को की जाएगी.
गौरतलब है कि जातिगत जनगणना के संबंध में यह दूसरी याचिका है. बिहार में सात जनवरी से जातिगत जनगणना जारी है. अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा के जरिये दायर जनहित याचिका में बिहार सरकार के उप सचिव द्वारा राज्य में जातिगत जनगणना कराने के लिए जारी अधिसूचना को रद्द करने और अधिकारियों को इस पर आगे बढ़ने से रोकने का अनुरोध किया गया है. याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने छह जून, 2022 को जारी बिहार सरकार की अधिसूचना को रद्द करने का अनुरोध किया है.
नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का जिम्मा सामान्य प्रशासन विभाग को सौंपा है. पंचायत से लेकर जिला स्तर तक के आंकड़े जुटाए जा रहे हैं. जिला स्तर पर जातिगत जनगणना का काम डीएम को सौंपा गया है. उन्हें ही नोडल अफसर भी बनाया गया है.
सामान्य प्रशासन विभाग के कर्मचारी, डीएम और ग्रामीण स्तर पर अलग-अलग विभागों के सबऑर्डिनेट ऑफिसेस के कर्मचारियों को जातिगत जनगणना की जिम्मेदारी दी गई है. इनके अलावा जीविका दीदीयों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मदद ली जाएगी.
राज्य सरकार जातिगत जनगणना के सर्वे पर 500 करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है. ये खर्च अनुमानित है. यानी, ये कम और ज्यादा भी हो सकता है. ये खर्च कंटेनजेंसी फंड से किया जाएगा.
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