नयी दिल्ली, 10 फरवरी : उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने बुधवार को राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की उस याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई जिसमें कहा गया था कि यौन अपराधों से बाल संरक्षण अधिनियम (POCSO)के तहत त्वचा से त्वचा का स्पर्श नहीं होने पर उसे यौन हमला (Sexual assault) नहीं माना जा सकता. शीर्ष न्यायालय ने 27 जनवरी को अटॉर्नी जनरल द्वारा फैसले का उल्लेख किए जाने के बाद उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी थी. वहीं मामले का उल्लेख करते करते हुए वेणुगोपाल ने कहा था कि यह फैसला ‘अभूतपूर्ण है और यह ‘खतरनाक नजीर’ पेश कर सकता है. उच्चतम न्यायालय में बुधवार को प्रधान न्यायाधीश एसए बोबड़े की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए एनसीडब्ल्यू की याचिका पर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. वहीं अन्य याचिकाकर्ताओं, ‘युथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ और ‘भारतीय स्त्री शक्ति’ ने बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ के 19 जनवरी के फैसले के खिलाफ दायर अपनी याचिका वापस ले ली.
मामले की सुनवाई कर रही शीर्ष अदालत की पीठ में न्यायमूर्ति एसएस बोपन्ना एवं न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन (V Ramasubramanian) भी शामिल हैं. पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर एक अलग याचिका में आरोपी को नोटिस जारी किया. पीठ ने एनसीडब्ल्यू का पक्ष रख रही वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा से पूछा कि आखिर उसे अलग से याचिका क्यों स्वीकार करना चाहिए जब शीर्ष अदालत पहले ही उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा चुकी है और आरोपी जेल में है. इस पर लूथरा ने एनसीडब्ल्यू अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि कानून आयोग को अधिकार देता है कि वह ऐसे किसी मामले में सुधार के लिए अदालत का रुख करे. सुनवाई के आरंभ में वेणुगोपाल ने कहा कि न्यायालय उच्च न्यायाल के फैसले पर पहले ही रोक लगा चुका है और मामले में कई नई याचिकाएं दायर की गई हैं.
उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर नई याचिकाओं पर नोटिस जारी किए गए हैं. एनसीडब्ल्यू ने अपनी याचिका में कहा है, ‘‘शारीरिक स्पर्श की विकृत व्याख्या से महिलाओं के मौलिक अधिकारों पर विपरीत असर पडेगा जो समाज में यौन अपराधों की पीड़िता हैं और यह महिलाओं के हितों की रक्षा के उद्देश्य से लाए कानूनों के प्राभाव को कमतर करेगा.’’ गौरतलब है कि बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने पॉक्सो अधिनियम से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि 'त्वचा से त्वचा' स्पर्श किये बिना नाबालिग पीड़िता को छूना यौन अपराध की श्रेणी में नहीं आता है, यह पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न नहीं है. साथ ही अदालत ने तीन साल की सजा पाये अभियुक्त को रिहा करने का आदेश दे दिया था.