यौन उत्पीड़न के मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, पीड़िता के मन पर बुरा असर डालती है उसकी उपस्थिति
यौन उत्पीड़न के मामले में बहस के दौरान अदालत में एक नाबालिग पीड़िता की उपस्थिति से उसके मन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और उसे इस घटना को फिर से दोहराकर बार-बार आघात नहीं पहुंचाया जाना चाहिए.
नयी दिल्ली, 19 जनवरी: यौन उत्पीड़न के मामले में बहस के दौरान अदालत में एक नाबालिग पीड़िता की उपस्थिति से उसके मन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और उसे इस घटना को फिर से दोहराकर बार-बार आघात नहीं पहुंचाया जाना चाहिए. Wrestler Protest: इस्तीफा दे सकते हैं भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण सिंह, यौन उत्पीड़न का लगा है आरोप
दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस तरह के अपराधों से बचे लोगों के आघात को कम करने के लिए दिशानिर्देश जारी करते हुए यह बात कही. उच्च न्यायालय ने कहा कि पॉक्सो मामले की पीड़िता पर दलीलों के दौरान अदालत में मौजूद होने का गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है. अदालत ने कहा कि इस दौरान ऐसे आरोप और दोषारोपण होते हैं जो पीड़िता (उत्तरजीवी) और उसके परिवार की ईमानदारी और चरित्र पर संदेह करते हैं.
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने 11 जनवरी के एक आदेश में कहा, “मेरे अनुसार, बहस के समय अदालत में पीड़िता की उपस्थिति, उसके मानस पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है. पीड़िता को अभियुक्त के साथ अदालत में उपस्थित होने के लिए मजबूर किया जाता है, जो वही व्यक्ति है जिसने कथित रूप से उसे प्रताड़ित किया है.”
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, “यह महसूस किया गया कि पीड़िता के हित में यही होगा कि वह न्यायालय की कार्यवाही में उपस्थित रहकर उक्त घटना का विवरण दोहराये जाने से बार-बार प्रताड़ित न हो.”
एक नाबालिग लड़की पर यौन हमले के एक मामले में एक आरोपी द्वारा की गई अपील की सुनवाई के दौरान, व्यक्ति के वकील और विधिक सेवा प्राधिकरण के एक प्रतिनिधि ने बताया कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) मामलों में कई पीड़ित थे जिनसे जमानत अर्जियों की सुनवाई के समय अदालत में भौतिक या डिजिटल रूप से उपस्थित होने के लिए कहा जा रहा है.
वकील ने कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो गई जहां पीड़ितों को संभावित रूप से आरोपी के साथ बातचीत करने के लिए मजबूर होना पड़ा. प्रतिवेदन पर ध्यान देते हुए उच्च न्यायालय ने मामले में वकीलों से संभाव्य व्यवहारिक निर्देश देने के लिए कहा था, जिस पर न्यायाधीश सहमत हुए.
न्यायाधीश ने कहा, “...इस मामले को ध्यान में रखते हुए और पहले जारी दिशा निर्देशों के अलावा, यह भी निर्देश दिया जाता है कि पॉक्सो मामले की जमानत सुनवाई के दौरान, निम्नलिखित दिशानिर्देशों का भी पालन किया जाएगा....”
दिशा-निर्देशों के अनुसार, पीड़िता को जांच अधिकारी (आईओ) या सहायक व्यक्ति या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सहायता लेकर डिजिटल माध्यम से अदालत के समक्ष पेश किया जा सकता है.
दिशानिर्देश में कहा गया कि जमानत आवेदनों की सुनवाई का मिश्रित रूप अभियुक्तों के अधिकारों की रक्षा करते हुए पीड़ित की चिंताओं को उपयुक्त रूप से संबोधित करेगा, और वे आमने-सामने नहीं आएंगे.
दिशानिर्देशों के अनुसार, यदि एक कथित पीड़िता लिखित में देती है कि उसके वकील या माता-पिता या अभिभावक या सहायक व्यक्ति उसकी ओर से पेश होंगे और जमानत अर्जी पर दलीलें पेश करेंगे, तो उसकी भौतिक या डिजिटल माध्यम से उपस्थिति पर जोर नहीं दिया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि जमानत अर्जी पर कथित पीड़िता की दलीलों या आपत्तियों को दर्ज करते समय, उससे स्पष्ट रूप से यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि “क्या आप आरोपी को जमानत देना चाहती हैं या नहीं?” दिशानिर्देश में कहा गया कि इसके बजाय “मामले में आरोपी को जमानत दिए जाने की स्थिति में उसकी आशंकाएं और भय क्या हैं, यह पता लगाने के लिए उससे सवाल किए जा सकते हैं, क्योंकि संबंधित अदालत द्वारा मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्र समीक्षा के आधार पर और जमानत देने को नियंत्रित करने वाले सुस्थापित सिद्धांतों के आलोक में जमानत दी जानी है.”
अदालत ने कहा कि जब भी कोई पीड़िता जमानत की सुनवाई के लिए अदालत आती है, तो उसे प्रदान किया गया सहायक व्यक्ति आवश्यक मनोवैज्ञानिक या अन्य सहायता देने के लिए उसके साथ मौजूद होना चाहिए. उसने कहा, “आगे यह स्पष्ट किया जा सकता है कि पॉक्सो अधिनियम के तहत उन मामलों में पीड़ित की उपस्थिति पर जोर नहीं दिया जा सकता है, जहां अभियुक्त बच्चा है, क्योंकि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को जमानत देने के विचार पीड़िता की आशंकाओं पर निर्भर नहीं हैं.”
इसमें कहा गया है कि जमानत याचिका के निस्तारण के बाद, आदेश की प्रति अनिवार्य रूप से पीड़िता को भेजी जाएगी क्योंकि “यह महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि अगर आरोपी को जमानत पर रिहा कर दिया जाता है तो पीड़िता की मुख्य चिंता उसकी सुरक्षा है”.
अदालत ने कहा कि उसे जमानत आदेश की एक प्रति प्रदान करके पीड़िता को आरोपी की स्थिति और जमानत की शर्तों तथा शर्तों के उल्लंघन के मामले में जमानत रद्द करने के लिए अदालत जाने के अधिकार के बारे में जागरूक किया जाता है.
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