Sarojini Naidu's 72 Death Anniversary: सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu)एक प्रखर वक्ता, ओजस्वी कवयित्री (Powerful poet), महान स्वतंत्रता सेनानी (Great freedom fighter)! जिन्हें देश 'द नाइटिंगेल ऑफ इंडिया'(The nightingale of india) के नाम से जानता है! देश उन्हें 'द नाइटिंगेल ऑफ इंडिया' के नाम से जानता है. यद्यपि वे एक ओजस्वी कवयित्री थीं. महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर (Poet Rabindranath Tagore) ने उन्हें 'भारत कोकिला' की उपाधि दिया था. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष एवं आजाद भारत की पहली महिला राज्यपाल (उत्तर प्रदेश) थीं. वह उर्दू, हिंदी, तेलगू, इंग्लिश, बांग्ला और फारसी जैसी कई भाषाओं में निपुण थीं. इस बहुमुखी प्रतिभावान शख्सियत ने देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई बार जेल भी गईं. आज 2 मार्च को देश उनकी 72वीं पुण्य-तिथि मना रहा है. आइये जानें देश की इस महान विभूति की प्रेरक कथा..
जानें मां से क्या मिला विरासत में :
सरोजिनी नायडू, का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद (Hyderabad) के अघोरनाथ चट्टोपाध्याय और वरदा सुंदरी देवी के बंगाली परिवार में हुआ था. पिता अघोरनाथ चट्टोपध्याय एक वैज्ञानिक एवं शिक्षाशास्त्री थे. उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम कॉलेज की स्थापना की थी. मां वरदा सुंदरी कवयित्री थीं और बंगाली भाषा में कविताएं लिखती थीं. सरोजिनी नायडू को कविता लिखने की प्रेरणा विरासत में मां से मिली थी. बचपन से ही कुशाग्र-बुद्धि होने के कारण उन्होंने 12 वर्ष की छोटी-सी आयु में ही 12वीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण की. 13 वर्ष की आयु में उनकी पहली कविता 'लेडी ऑफ दी लेक' प्रकाशित हुई. सर्जरी में क्लोरोफॉर्म का महत्व साबित करने के लिए हैदराबाद के निज़ाम ने उन्हें स्कॉलरशिप देकर इंग्लैंड भेजा था. मद्रास (अब चेन्नई) विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन हासिल करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वह इंग्लैंड चली गईं. वहां उन्होंने लंदन के किंग्स कॉलेज और उसके बाद कैंब्रिज के गिर्टेन कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की. 1898 में उन्होंने डॉ. मुत्तयला गोविंदराजुलु नायडू से विवाह कर लिया. उनकी पांच संतानें जयसूर्या, लीलामणी, निलावर, पद्मजा एवं रणधीर थे.
26 साल की उम्र में जुड़ीं स्वतंत्रता संग्राम से
1905 में बंगाल विभाजन के बाद वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ीं. 1914 में इंग्लैंड में वे पहली बार गांधीजी से मिलीं. गांधी जी से वे बहुत प्रभावित हुईं. उन्होंने एक कुशल नायक की तरह स्वतंत्रता आंदोलनों के हर चरणों (सत्याग्रह हो या आंदोलन) का हिस्सा बनीं. सरोजिनी नायडू ने तमाम राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिसके लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. उन्होंने बड़ी बहादुरी से एक वीरांगना की तरह गांव-कस्बों में घूम-घूम कर ये देश-प्रेम का अलख जगाया. उनके ओजस्वी भाषण सुनकर जनता आंदोलित हो उठती थी. वे बहुभाषा की जानकार थीं और क्षेत्रानुसार अपने भाषण अंग्रेजी, हिंदी, बंगला या गुजराती में देती थीं और जनता को बहुत प्रभावित और प्रेरित करती थीं. 1919 में सरोजिनी नायडू इंग्लैंड के होम रूल लीग की राजदूत बनीं. 1925 में कानपुर में हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुना गया. और 1932 में भारत का प्रतिनिधित्व करने वे दक्षिण अफ्रीका गईं. 1942 में उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने पर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया. महात्मा गांधी के साथ उन्होंने लगभग दो साल जेल में बिताया. आजादी के बाद भारत कोकिला स्वतंत्र जीवन जीना चाहती थीं, लेकिन महात्मा गांधी की अपील के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनना स्वीकार कर लखनऊ शिफ्ट हो गईं. इस तरह आजाद भारत की उन्हें पहली महिला राज्यपाल बनने का गौरव प्राप्त हुआ.
ओजस्वी कवियत्री
साल 1905 में उनकी कविताओं का पहला संग्रह द गोल्डन थ्रेसहोल्ड प्रकाशित हुआ. उसके पश्चात उनके दो और कविता संग्रह द बर्ड ऑफ टाइम एवं द ब्रोकेन विंग क्रमशः 1912 एवं 1917 में प्रकाशित हुए. इसके पश्चात भिन्न-भिन्न पुस्तकों में उनकी कविताएं प्रकाशित होती रहीं. सरोजिनी नायडू को उनकी प्रभावी वाणी और ओजपूर्ण लेखनी के कारण 'नाइटिंगेल ऑफ इंडिया' कहा जाता था. कविवर श्री रवींद्रनाथ टैगोर सरोजिनी नायडू की कविता के दीवाने थे. उन्होंने सरोजिनी नायडू को भारत कोकिला का खिताब देकर सम्मानित किया.
अपनी मृत्यु का पूर्व अहसास था?
मार्च1949 को वे किसी कार्य से प्रयागराज (तब इलाहाबाद) गई हुई थीं, वहीं पर अचानक उनकी तबियत खराब हुई. 2 मार्च को उनकी तबियत अचानक बिगड़ गई. उन्हें नींद नहीं आ रही थी. तब उनके चिकित्सक ने उन्हें नींद की दवा खाने के लिए दी. सरोजिनी नायडू नींद की दवा की आदी नहीं थीं. उन्होंने दवा लेते हुए डॉक्टर से कहा मुझे उम्मीद है, यह मेरी अंतिम नींद नहीं होगी. लेकिन अगली सुबह वे उठ नहीं सकीं. शायद उन्हें अपने मृत्यु का पूर्व अहसास हो गया था.
राजेश श्रीवास्तव