चिपको आंदोलन की ‘जननी’ गौरा देवी के लिए जंगल था उनका मायका
गौरा देवी (Photo Credit-Twitter)

आज यानि 26 मार्च को ‘चिपको आंदोलन’ के 46 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इस आंदोलन की शुरुआत चमोली के एक छोटे से गांव रैणी से वृक्षों की कटाई के विरोध स्वरूप हुई थी, जिसका संचालन रैणी की अशिक्षित एवं विधवा गौरा देवी कर रही थीं. उनका विरोध बेहद शांतपूर्ण एवं अहिंसात्मक रूप में था. शीघ्र यह विरोध जब चमोली से पूरे पहाड़ पर दावानल की तरह फैला तो इसे ‘चिपको आंदोलन’ का नाम दिया गया. इस आंदोलन की प्रणेता बनीं गौरा देवी. आखिर कौन थीं गौरा देवी और आंदोलन के पीछे क्या वजहें थीं..

कौन थीं गौरा देवी

गौरा देवी का जन्म 1925 में चमोली (उत्तराखंड) के लाता गांव के मरछिया परिवार के श्री नारायण सिंह के घर पर हुआ था. वह मात्र 12 वर्ष की थीं, जब उनका विवाह पास के गांव रैणी के मेहरबान सिंह के साथ कर दिया गया. यद्यपि शादी के 10 साल बाद ही उनके पति की मृत्यु हो गयी. उन दिनों भारत-तिब्बत के बीच व्यापार का खूब प्रचलन था. गौरा देवी उसी व्यवसाय में छोटे मोटे काम-धंधे करके अपने परिवार का पालन-पोषण करती थी. गौरा देवी कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन वेद-पुराण, रामायण, भगवद गीता, महाभारत आदि का पूरा ज्ञान था. यह भी पढ़ें- एक छोटे-से विरोध की ‘चिंगारी’ बना देशव्यापी ‘चिपको आंदोलन’

साल 1962 में भारत-चीन के बीच युद्ध छिड़ने के कारण तिब्बत-भारत के बीच व्यापार बंद हो गया. तब गौरा का बेटा चंद्रसिंह ऊनी कपड़ों का छोटे-मोटे स्तर पर कारोबार करके परिवार का भरण-पोषण करने लगा. यही वह समय था जब गौरा देवी घर की ड्योढ़ी पार कर गांव के लोगों के सुख-दुख से जुड़ने लगीं. उन्हीं दिनों 1970 में अलकनंदा नदी में भयंकर बाढ़ आई. यह बाढ़ वहां के लोगों के लिए प्रलयंकारी साबित हुई. जानमाल का काफी नुकसान हुआ.

रैली में गौरा देवी की हुंकार

इसी दरम्यान राज्य सरकार ने चमोली के रास्ते सैनिकों के आवागमन के लिए नई सड़क बनाने की योजना बनाई. इसके साथ ही रास्ते में पड़ने वाले वृक्षों की कटाई शुरू हुई. बाढ की विपदा झेल चुके चमोलीवासियों ने वृक्षों को काटने का विरोध किया. इसी के तहत महिला मंडल की स्थापना हुई, जिसमें रेणी गांव को महिला मंडल का अध्यक्ष बनाया गया.

यहीं पर गौरा देवी की मुलाकात देवी चंडी प्रसाद भट्ट, गोविंद सिंह रावत जैसे पर्यावरणविदों से हुई. वन विभाग ने लगभग ढाई हजार पेड़ों की कटाई की योजना बनाई थी. इन वृक्षों की कटाई के विरोध में गौरो देवी ने 23 मार्च को गोपेश्वर में एक व्यापक रैली निकाली. रैली में गौरा देवी ने हुंकार लगाते हुए कहा कि जंगल हमारा मायका जैसा है, इसे हम यूं ही नहीं उजड़ने देंगे.

गौरा देवी से बनीं ‘चिपको वूमन’

गांव के लोगों को शांत करने के लिए वन विभाग ने सड़क निर्माण में हुई क्षति का मुआवजा देने के लिए उन्हें 26 मई को चमोली जिले में बुलाया. गांव के लोग चमोली पहुंचे. उधर वन विभाग ने ठेकेदारों को रैणी गांव भेजा, ताकि वे बिना विरोध के पेड़ काट सकें.

रैंणी गांव के ढाई हज़ार पेड़ों को काटने के लिए जब ठेकेदार पहुंचे तो महिला मंडल की 21 सदस्यों के साथ गौरा देवी वहां पहुंच गयीं. वे सब की सब चिह्नित पेड़ों को अपने आलिंगन में लेकर खड़ी हो गयीं, और ठेकेदार को चुनौती दी कि अगर हिम्मत है तो पहले हम पर कुल्हाड़ी चलाओ, इसके बाद ही पेड़ काट सकोगे, अंतत: ठेकेदार अपने मजदूरों के साथ वापस जाना पड़ा.

इस विरोध प्रदर्शन के बाद वन विभाग वालों को दुबारा रेणी आने का साहस नहीं हुआ. इस तरह गौरा देवी का चिपको आंदोलन सफल हुआ और वे ‘चिपको वुमेन’ के नाम से मशहूर हुईं. ‘चिपको वुमेन’ के नाम से मशहूर गौरा देवी का 4 जुलाई 1966 साल की उम्र में निधन हो गया