नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को वित्त वर्ष 2018-19 की तीसरी मौद्रिक नीति घोषित कर दी है. आरबीआई ने प्रमुख ब्याज दर में 25 आधार अंकों की वृद्धि की, जिसके बाद रेपो दर 6.5 फीसदी हो गई है. इससे अब बैंक ब्याज दरों में भी बढ़ोतरी कर सकते है. जिसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़नेवाला है.
बुधवार को केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने रेपो रेट 25 बेसिस प्वाइंट्स (0.25%) बढ़ाने का एलान किया है. अब रेपो रेट 6.25 फीसद से बढ़कर 6.5% हो गई है. आरबीआई ने रिवर्स रेपो को 6 फीसद से बढ़ाकर 6.25 फीसद कर दिया है.
विशेषज्ञों की मानें तो यदि बैंक ब्याज दर बढाता है तो बैंक से कर्ज लेना महंगा हो जाएगा. इसका मतलब है लोन की ईएमआई बढ़ जाएगी. अगर ऐसा होता है, तो होम लोन, ऑटो लोन और पर्सनल लोन लेना महंगा हो जाएगा. रिजर्व बैंक के इस कदम से आम लोगों के साथ-साथ कॉर्पोरेट्स पर भी असर पड़ेगा. इससे कारोबारियों के लिए भी लोन महंगा हो जाएगा और व्यापार क्षेत्र पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है.
कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के चलते जानकारों ने पहले ब्याज दरों ने बढ़ोतरी की संभावना जताई थी. आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक सोमवार से ही चल रही है. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का असर आरबीआई के फैसले पर दिखना तय माना जा रहा था.
ज्ञात हो कि आरबीआई जिस दर पर बैंकों को कर्ज देता है उसे रेपो रेट कहा जाता है. जिसके बाद ही बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को कर्ज मतलब लोन देते हैं. इसलिए इसके बढ़ने से सभी तरह के लोन महंगा होने की आशंका है. वहीँ रिवर्स रेपो रेट का मतलब है वह दर जिसपर बैंकों को अपने जमा पैसे पर आरबीआई ब्याज देती है. बाजार में कैश ज्यादा हो जाने पर अमूनन आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देती है. जिससे बैंक आरबीआई के पास ज्यादा कैश दें और बाजार से नकदी खुद कम हो जाए.