भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वर्तमान वित्त वर्ष की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में गुरुवार को रेपो दर (Repo Rate) 0.25 अंक घटाकर छह प्रतिशत की जगह 5.75 प्रतिशत की है. वहीं, रिवर्स रेपो दर 5.50 प्रतिशत जबकि उधार की सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) पर ब्याज दर और बैंक दर 6.0 प्रतिशत की गई है. रिजर्व बैंक ने अपने नीतिगत रुख को ‘तटस्थ’ से ‘नरम’ किया. इसके अलावा रिजर्व बैंक ने 2019-20 के लिए जीडीपी (GDP) वृद्धि दर अनुमान को पहले के 7.2 प्रतिशत से घटाकर 7 प्रतिशत किया. रिजर्व बैंक ने 2019-20 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) के दौरान मुद्रास्फीति (Inflation) 3-3.10 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया. पिछली समीक्षा में यह अनुमान 2.90-3.0 प्रतिशत का था.
RBI cuts repo rate by 25 basis points, now at 5.75% from 6%. Reverse repo rate and bank rate adjusted at 5.50 and 6.0 per cent respectively. pic.twitter.com/greB9paac3
— ANI (@ANI) June 6, 2019
Inflation outlook at 3.0%-3.1% in first half of 2019-20 and 3.4%-3.7% in second half of the year. https://t.co/2UqHRNDFIs
— ANI (@ANI) June 6, 2019
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के सभी सदस्य रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती और नीतिगत रुख में बदलाव के पक्ष में रहे. रिजर्व बैंक ने नेफ्ट और आरटीजीएस लेन-देन पर लगने वाले शुल्क को हटाया, बैंकों से इसका लाभ ग्राहकों को देने को कहा. मौद्रिक नीति समिति की बैठक का ब्योरा 20 जून 2019 को जारी किया जाएगा. समिति की अगली बैठक 5-7 अगस्त 2019 को होगी. भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि आरबीआई किसी भी उपाय को करने में संकोच नहीं करेगा जो कि सिस्टम की वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है. यह भी पढ़ें- होम लोन पर घटेगा EMI का बोझ, RBI ने लगातार दूसरी बार कम किया रेपो रेट
RBI Governor Shaktikanta Das: RBI will not hesitate to take any measure which is required to maintain the financial stability of the system including, shot-term, medium-term and long term. pic.twitter.com/nk06FMHQli
— ANI (@ANI) June 6, 2019
बता दें कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक के नतीजों की घोषणा से पहले गुरुवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 19 पैसे की गिरावट के साथ 69.45 रुपये प्रति डॉलर पर रहा. कारोबारियों ने कहा कि विदेशी निवेशकों की निकासी और कच्चा तेल की बढ़ती कीमतों के कारण भी रुपये पर दबाव रहा.