Quit India: ब्रिटिशर्स की ताबूत में भारत ने ठोकी जब आखिरी कील! जानें क्यों विफल रहा ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन? आंदोलन से जुड़े 9 रोचक फैक्ट!
कांग्रेस के सारे मुख्य नेताओं को जेल में डालने के बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने कांग्रेस को गैरकानूनी संघ घोषित कर दिया, और उनके देश भर के कार्यालयों पर छापे मारकर उनके फंड को फ्रीज कर दिया गया.
हम देश की आजादी की 75वीं वर्षगांठ ‘अमृत महोत्सव’के रूप में मना रहे हैं. वहीं अंग्रेजी हुकूमत अंतिम निर्णय ‘भारत छोड़ो’की आंदोलन की भी 80वीं वर्षगांठ आज 8 अगस्त 2022 को मनाएंगे. क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद महात्मा गांधी ने बॉम्बे अधिवेशन में ‘भारत छोड़ो’आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया. 8 अगस्त 1942 को मुंबई से शुरू हुए इस आंदोलन में भारी तादाद में आम हिंदुस्तानियों ने भी हिस्सा लिया, असंख्य युवा कॉलेज छोड़कर आंदोलन से जुड़े और जेल गये. लेकिन 8 अगस्त की शाम होते-होते गांधीजी को पुणे स्थित आगा खान पैलेस में नजरबंद कर दिया गया. 9 तारीख को भोर होने से पहले डॉ राजेंद्र प्रसाद, सुचेता कृपलानी, नेहरू समेत कांग्रेस के सभी नेता जेल भेज दिये गये. तब लाल बहादुर शास्त्री ने भूमिगत रहकर पूरे देश में आजादी की प्रचण्ड मशाल जलाई. 19 अगस्त को उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन तब तक आम भारतीयों के दिल में स्वतंत्रता हासिल करने की जोश जाग चुकी थी. संपूर्ण भारत में ‘भारत छोड़ो’आंदोलन प्रचण्ड रूप ले चुका था. अंग्रेजों ने आंदोलन को दबाने में पूरी शक्ति झोंक दी. सरकारी आंकड़ों के अनुसार आंदोलन में 940 लोग मारे गये. 1630 घायल हुए, 18 हजार डीआईआर में नजरबंद किये गये, और 60,229 लोग जेल भेजे गये. ब्रिटिश हुकूमत ने बलपूर्वक आंदोलन को दबा दिया, लेकिन अब तक आम भारतीयों की आंखे खुल चुकी थीं. अंग्रेज भी समझ गये थे कि अब उनका भारत छोड़ने का समय आ गया है. आज ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की 80वीं वर्षगांठ पर आइये जानेंगें आजादी के इस सबसे बड़े आंदोलन के 9 रोचक फैक्ट.
* ब्रिटिश हुकूमत को खदेड़ने का अंतिम आंदोलन 8 अगस्त को ‘भारत-छोड़ो’ का नारा भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रणी नेता यूसुफ मेहर अली ने गढ़ा था! वह मुंबई का मेयर भी रह चुके थे. उन्होंने एक और नारा ‘साइमन गो बैक’ भी लिखा था.
* कहते हैं कि इंग्लैंड को विश्व युद्ध में उलझा देख नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज को ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया. गांधीजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की शक्ति से वाकिफ थे, इससे पहले कि नेता मिशन की दशा-दिशा तय करते, गांधीजी ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अंग्रेजों से ‘भारत छोड़ो’ और हिंदुस्तानियों को ‘करो या मरो’ का संदेश जारी कर दिया.
* अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन को फिलहाल दबाने में सफल हुए थे, लेकिन देश भर में आजादी के प्रति लोगों की जागरूकता देखकर वे समझ गये थे कि आज नहीं तो कल उन्हें वापस जाना होगा, इसलिए भारत के साथ उनकी बाद की राजनीतिक वार्ताओं के सुर और तेवर दोनों बदल गये थे.
* देश भर में उग्र होते ‘भारत-छोड़ो’ आंदोलन को अंग्रेजों ने बड़ी क्रूरता से दबाने की कोशिश की. कहीं पर लोगों पर लाठियां चलाईं तो कहीं गोलियां. कहीं पर पूरे गांव में आग लगा दी और ऊपर से उन पर विद्रोह करने के आरोप में भारी जुर्माना लगाया. लाखों लोगों को जेल में ठूंस दिया था.
* मुंबई में गोवालिया टैंक मैदान में गांधीजी ने अपने भाषण में देशवासियों को संबोधित करते हुए पूर्ण आजादी के लिए ‘करो या मरो’ का आह्वान किया था, इससे पहले कि कांग्रेस आंदोलन के लिए आगे का रास्ता तैयार करती, भाषण के कुछ घंटों के भीतर अब्दुल कलाम आजाद, डॉ राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल और नेहरू समेत पूरे कांग्रेस को बिना किसी मुकदमे के जेल भेज दिया गया.
* कांग्रेस के सारे मुख्य नेताओं को जेल में डालने के बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने कांग्रेस को गैरकानूनी संघ घोषित कर दिया, और उनके देश भर के कार्यालयों पर छापे मारकर उनके फंड को फ्रीज कर दिया गया.
* सभी प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के बीच भूमिगत रहीं अरुणा आसफ अली ने सार्वजनिक जुलूसों, सभाओं पर प्रतिबंध की पुलिस चेतावनियों एवं सरकारी नोटिस के बावजूद मुंबई के गोवालिया मैदान पर भारी भीड़ इकट्ठी करने में और तिरंगा फहराने में सफल रहीं.
* काकोरी-कांड की स्मृतियों को संजोने के लिए भगत सिंह प्रत्येक 9 अगस्त को काकोरी कांड दिवस मनाने की परंपरा कई साल पहले शुरू कर चुके थे. कहते हैं, कि इस दिवस विशेष के प्रभाव को कम करने के लिए गांधी जी ने सोची समझी रणनीति के तहत 8 अगस्त को ‘भारत-छोड़ो’ दिवस आंदोलन शुरू किया, ताकि 9 अगस्त तक पूरे हिंदुस्तान में ‘भारत-छोड़ो’ आंदोलन विकराल रूप ले ले.
* ‘भारत-छोड़ो’ आंदोलन के दरम्यान जिस समय कांग्रेसी नेता जेल में थे, जिन्ना तथा मुस्लिम लीग के उनके साथी पंजाब और सिंध में अपना प्रभाव बनाने और अपनी अलग पहचान स्थापित करने में लगे थे, जहां उन्हें कोई नहीं जानता था. जिन्ना ने ‘भारत-छोड़ो’ का हिस्सा बनने से साफ इंकार कर दिया था, क्योंकि बंटवारा से पहले वह अंग्रेजों के भारत छोड़ने के पक्ष में नहीं थे.