Corona Protocol: कोरोना पॉजिटिव मरीज के अंतिम संस्कार के लिए केंद्र और पारसी समुदाय के बीच प्रोटोकॉल पर सहमति
कोरोना संक्रमित की मौत I प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: PTI)

नई दिल्ली: उच्चत्तम न्यायालय (Supreme Court) ने केंद्र (Central Government) और पारसी समुदाय (Parsi Community) के बीच कोविड मरीजों (Covid Patients) के शवों के अंतिम संस्कार संबंधी मानक संचालन प्रक्रिया पर सहमति के बाद संशोधित प्रोटोकॉल (Protocol) को शुक्रवार को स्वीकार कर लिया. पारसी समुदाय पारंपरिक रूप से शवों को प्राकृतिक रूप से सड़ने देता है और इनके श्मशान के उपरी हिस्से पर बने टॉवर ऑफ साइलेंस में शवों को रख दिया जाता जहां गिद्ध उसका भक्षण करते हैं. दिल्ली में कोरोना को लेकर नई गाइडलाइंस जारी, स्कूल-कॉलेज और जिम फिर से खोलने की मिली इजाजत

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायाधीश सूर्यकांत की पीठ को अवगत कराते हुए कहा कि पारसी कोविड पीड़ितों के शवों के अंतिम संस्कार के लिए समुदाय और केंद्र के बीच एक प्रोटोकॉल और मानक संचालन प्रक्रिया पर सहमति हुई है.

प्रोटोकॉल के अनुसार, पारसी समुदाय के जो लोग कोविड से मरते हैं, उन्हें अस्पताल या घर से पंचायत की तरफ से रखे गए पेशेवर शव वाहक 'नस्सासालार्स र्' द्वारा हैंडल किया जाएगा. इन्हें दोनों टीके लगवाना अनिवार्य होगा और प्रत्येक अंतिम संस्कार से पहले उनके शरीर का तापमान विधिवत दर्ज किया जाएगा.

प्रोटोकॉल के अनुसारकोविड पारसी पीड़ित के शव को नस्सासालार्स द्वारा मुर्दाघर या घर से एक बॉडी बैग में टॉवर ऑफ साइलेंस कॉम्प्लेक्स में लाया जाएगा, जिसे खोला नहीं जाएगा. मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार, मृतक के चेहरे को दिखाने की अनुमति होगी और परिवार के लोग कम से कम 10 फीट की दूरी से बैग को खुलवाकर चेहरे को देखा सकते है.

शीर्ष अदालत में जमा किए गए नोट में कहा गया है कि दोखमा नंबर 3 को अकेले कोविड पीड़ितों के लिए अलग रखा गया है. इसका इस्तेमाल कोविड पीड़ित पारसियों के शवों के धार्मिक क्रियाकर्म के लिए किया जाता है, और इसका उपयोग गैर-कोविड शवों के लिए नहीं किया जाएगा.

इसमें आगे कहा गया है: चूंकि टॉवर ऑफ साइलेंस में शव निपटान का मुख्य तरीका सूर्य की शक्तिशाली किरणों के माध्यम से है, और इसलिए यहां आने वाले गिद्धों को संक्र मण से बचाने के लिए याचिकाकर्ता जल्द से जल्द दोखमा-नंबर 3 पर पक्षी जाल को स्थापित करने का वचन देता है. एक बार दोखमा-नंबर तीन पर धातु का जाल स्थापित हो जाने के बाद पक्षियों का शरीर का कोई संपर्क नहीं होगा.

मामले में सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने कहा कि संयुक्त बयान की पृष्ठभूमि में प्रोटोकॉल स्वीकार किया जाता है. इससे पहले, केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि पारसी समुदाय की शिकायतों को दूर करने के लिए, कोविड मरीजों के शवों के निपटारे के लिए जारी दिशा-निर्देशों में बदलाव करना संभव नहीं है.

उच्चतम न्यायालय सूरत पारसी पंचायत बोर्ड द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रहा था जिसमें गुजरात उच्च न्यायालय के 23 जुलाई के आदेश को चुनौती दी गई थी. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 10 जनवरी को सॉलिसिटर जनरल को पारसी समुदाय की शिकायतों को दूर करने के लिए संबंधित अधिकारियों से संपर्क करने को कहा था.