नई दिल्ली, 28 मई: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई विपक्षी दलों के बहिष्कार के बीच, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस नये संसद भवन का आज उद्घाटन करेंगे. दिल्ली पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेंसियां उद्घाटन कार्यक्रम की सुरक्षा में कोई कोर-कसर नहीं रख रही हैं. सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं.
नये संसद भवन में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर की कालीन, त्रिपुरा के बांस से बने फर्श और राजस्थान के पत्थर की नक्काशी भारत की संस्कृतिक विविधता को दर्शाती है. तमिलनाडु से संबंध रखने वाले और चांदी से निर्मित एवं सोने की परत वाले ऐतिहासिक राजदंड (सेंगोल) को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित किया जाएगा. अगस्त 1947 में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया यह रस्मी राजदंड इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू दीर्घा में रखा गया था. ये भी पढ़ें- What is Sengol? क्या है सेंगोल, जिसे नई संसद में स्पीकर की कुर्सी के पास रखा जाएगा, नेहरू से जुड़ा है इतिहास
उद्घाटन समारोह का 20 विपक्षी दलों द्वारा बहिष्कार किए जाने के बीच, राजदंड को लेकर भी राजनीतिक विवाद छिड़ गया है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने शुक्रवार को दावा किया कि इस बारे में कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है, जिससे यह साबित होता हो कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालाचारी और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ‘सेंगोल’ को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरित किए जाने का प्रतीक बताया हो.
‘सेंगोल’ पर कांग्रेस के रुख को लेकर गृह मंत्री अमित शाह ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि कांग्रेस को अपने व्यवहार पर अच्छी तरह से विचार करने की आवश्यकता है. उन्होंने पार्टी के इस दावे की निंदा की कि 1947 में ‘सेंगोल’ को ब्रिटेन द्वारा भारत को सत्ता सौंपे जाने का प्रतीक होने का कोई उदाहरण नहीं है.
नये संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर, सरकार 75 रुपये का स्मारक सिक्का भी जारी करेगी.
वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले आर्थिक कार्य विभाग द्वारा बृहस्पतिवार को जारी एक अधिसूचना के अनुसार, “नये संसद भवन के उद्घाटन के उपलक्ष्य में 75 रुपये का स्मारक सिक्का जारी किया जाएगा. सिक्के का वजन 35 ग्राम है और यह चार धातुओं से बना हुआ है.”
सिक्के के एक तरफ अशोक स्तंभ का शेर अंकित है, जिसके नीचे ‘सत्यमेव जयते’ लिखा है. इसके बाईं ओर देवनागरी में ‘भारत’ और दाईं ओर अंग्रेजी में ‘इंडिया’ लिखा होने के साथ ही रुपये का प्रतीक चिन्ह भी अंकित है. वहीं, सिक्के के दूसरी तरफ नए संसद भवन की तस्वीर है. इसके ऊपर देवनागरी में ‘संसद संकुल’ और नीचे अंग्रेजी में ‘पार्लियामेंट कॉम्प्लेक्स’ लिखा है. नीचे 2023 भी लिखा हुआ है.
टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड द्वारा निर्मित नए संसद भवन में भारत की लोकतांत्रिक विरासत को प्रदर्शित करने के लिए एक भव्य संविधान हॉल, संसद सदस्यों के लिए एक लाउंज, एक पुस्तकालय, कई समिति कक्ष, भोजन क्षेत्र और पर्याप्त पार्किंग स्थल मौजूद होगा.
त्रिभुजाकार वाले चार मंजिला संसद भवन का निर्मित क्षेत्र 64,500 वर्ग मीटर है. भवन के तीन मुख्य द्वार हैं- ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार. इसमें वीआईपी (अति विशिष्ट व्यक्तियों), सांसदों और आगंतुकों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार हैं. नये संसद भवन के निर्माण में उपयोग की गई सामग्री देश के विभिन्न हिस्सों से लाई गई है. इसमें प्रयुक्त सागौन की लकड़ी महाराष्ट्र के नागपुर से लाई गई है, जबकि लाल और सफेद बलुआ पत्थर राजस्थान के सरमथुरा से लाया गया है.
राष्ट्रीय राजधानी में लाल किले और हुमायूं के मकबरे के लिए बलुआ पत्थर भी सरमथुरा से लाया गया था. हरा पत्थर उदयपुर से, तो अजमेर के पास लाखा से लाल ग्रेनाइट और सफेद संगमरमर अंबाजी राजस्थान से मंगवाया गया है.
एक अधिकारी ने कहा, ‘‘एक तरह से लोकतंत्र के मंदिर के निर्माण के लिए पूरा देश एक साथ आया है. इस प्रकार यह ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की सच्ची भावना को दर्शाता है.’’ लोकसभा और राज्यसभा कक्षों में ‘फाल्स सीलिंग’ के लिए स्टील की संरचना केंद्र शासित प्रदेश दमन और दीव से मंगाई गई है, जबकि नये भवन के लिए फर्नीचर मुंबई में तैयार किया गया था.
इमारत पर लगी पत्थर की ‘जाली’ राजस्थान के राजनगर और उत्तर प्रदेश के नोएडा से मंगवाई गई थी. अशोक चिह्न के लिए सामग्री महाराष्ट्र के औरंगाबाद और राजस्थान के जयपुर से लाई गई थी, जबकि संसद भवन के बाहरी हिस्सों में लगी सामग्री को मध्य प्रदेश के इंदौर से मंगाया गया था.
पत्थर की नक्काशी का काम आबू रोड और उदयपुर के मूर्तिकारों द्वारा किया गया था. वहीं, पत्थरों को कोटपूतली, राजस्थान से लाया गया था.
नये संसद भवन में निर्माण गतिविधियों के लिए ठोस मिश्रण बनाने के वास्ते हरियाणा के चरखी दादरी में निर्मित रेत या ‘एम-रेत’ का इस्तेमाल किया गया. ‘एम रेत’ एक प्रकार की कृत्रिम रेत है, जिसे बड़े सख्त पत्थरों या ग्रेनाइट को बारीक कणों में तोड़कर बनाया जाता है और जो नदी की रेत से अलग होती है.
निर्माण में इस्तेमाल की गई ‘फ्लाई ऐश’ की ईंटें हरियाणा और उत्तर प्रदेश से मंगवाई गई थीं, जबकि पीतल के काम के लिए सामग्री और ‘पहले से तैयार सांचे’ गुजरात के अहमदाबाद से लाए गए थे.
नये संसद भवन में, दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) की संयुक्त बैठक में 1,280 सदस्य शामिल हो सकेंगे.
संसद का मौजूदा भवन 96 साल पुराना है, जिसका निर्माण कार्य 1927 में पूरा हुआ था. तत्कालीन वाइसरॉय लॉर्ड इरविन ने 18 जनवरी 1927 को इसका उद्घाटन किया था. अभिलेखीय दस्तावेजों और पुरानी दुर्लभ तस्वीरों के मुताबिक, इस भव्य इमारत के उद्घाटन के लिए 18 जनवरी 1927 को एक भव्य आयोजन किया गया था. उस समय इसे ‘काउंसिल हाउस’ के रूप में जाना जाता था.
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)