
MP DGP Kailash Makwana on Rape Case: मध्यप्रदेश के डीजीपी कैलाश मकवाना ने रविवार को एक बड़ा और बहस को जन्म देने वाला बयान दिया है. उन्होंने कहा कि बलात्कार जैसी घटनाओं को सिर्फ पुलिस के भरोसे नहीं रोका जा सकता, क्योंकि इसके पीछे समाज में गिरती नैतिकता और कई दूसरे कारण जिम्मेदार हैं. उज्जैन में 2028 में होने वाले सिंहस्थ कुंभ मेले की तैयारियों को लेकर समीक्षा बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए डीजीपी ने यह बात कही. डीजीपी मकवाना ने बताया कि पुलिस पूरी कोशिश करती है, लेकिन समाज की भागीदारी के बिना ऐसे अपराधों पर पूरी तरह रोक लगाना संभव नहीं है.
उन्होंने कहा कि हर घर में अब कोई किसी पर नजर नहीं रखता. ये भी एक बड़ी वजह है कि अपराधों में बढ़ोतरी हो रही है.
रेप की बढ़ती घटनाओं पर क्या बोले DGP Kailash Makwana?
मोबाइल से बच्चों तक पहुंच रही अश्लीलता
डीजीपी कैलाश मकवाना ने कहा, ''कहा कि आज का माहौल पहले जैसा नहीं रहा. पहले बच्चे माता-पिता और गुरु की बात मानते थे. लेकिन अब अश्लीलता इंटरनेट के जरिए बच्चों तक बचपन से ही पहुंच रही है. मोबाइल, पॉर्नोग्राफी, शराब जैसी चीजें बच्चों के दिमाग को विकृत कर रही हैं.”
उन्होंने बताया कि आजकल मोबाइल से कोई कहीं से भी किसी से जुड़ सकता है. ऐसे में संयम और नियंत्रण की कमी ने समाज को कमजोर किया है.
आंकड़े भी चौंकाने वाले
डीजीपी के बयान के पीछे आंकड़ों की भी सच्चाई है. सरकार ने विधानसभा में जानकारी दी थी कि साल 2024 में प्रदेश में 7,294 बलात्कार के मामले दर्ज हुए. यानी औसतन हर दिन 20 केस. ये संख्या 2020 में 6,134 थी. यानी 19% की बढ़ोतरी.
वहीं आदिवासी क्षेत्रों में तो हाल और भी चिंताजनक है. जाबुआ जैसे जिले में बलात्कार के मामलों में 168% की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो पूरे राज्य में सबसे अधिक है.
राज्य गृह विभाग के आंकड़ों के अनुसार:
- एसटी (अनुसूचित जनजाति) समुदाय में 26% बढ़ोतरी
- जनरल वर्ग में 24%
- ओबीसी में 20%
- एससी वर्ग में 10% बढ़ोतरी देखी गई
क्या सिर्फ तकनीक दोषी है?
डीजीपी ने कहा कि समाज में पहले जो 'बड़ों की नजर से शर्म' जैसी भावना होती थी, वह अब खत्म हो गई है. उन्होंने कहा, “अश्लीलता अब हर जेब में है। बच्चों को शुरुआत से ही ऐसा कंटेंट मिल रहा है, जिससे उनका मानसिक संतुलन प्रभावित हो रहा है। यही वजह है कि अपराध बढ़ रहे हैं.”
डीजीपी ने संकेत दिए कि अपराध नियंत्रण के लिए सिर्फ कानून या सख्ती ही नहीं, बल्कि समाज में नैतिक मूल्यों को फिर से जागृत करने की जरूरत है. इसके लिए अभिभावकों, शिक्षकों और समाज के हर वर्ग की भूमिका अहम है.