लखनऊ, 21 नवंबर: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में आगामीं विधानसभा चुनाव से पहले तीन नए कृषि कानून का रोड़ा हटाकर प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा के लिए मास्टर स्ट्रोक खेला है. भाजपा को उम्मीद है इस फैसले से उसे जाटों और किसानों के बीच अपनी बात रखने में कामयाबी मिल सकती है. कानून वापसी से बिगड़ा हुआ नजरिया बदलेगा और विपक्ष को भी नए मुद्दे तलाशने होंगे. कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद भाजपा को भरोसा, यूपी में जमीनी स्तर पर और मजबूत होगी पार्टी
अगले साल पांच राज्यों में चुनाव है ऐसे में यह मुद्दा भाजपा के लिए सिरदर्द बना था. खासकर यूपी, पंजाब और उत्तराखण्ड में इसका असर भी देखने को मिल रहा था. कानून वापसी के बाद अब सियासी रूख मुड़ने की संभावना है. पश्चिमी यूपी में अगर जातिगत आंकड़ों पर नजर डालें तो यहां पर एक दर्जन जिलों में करीब 20 प्रतिशत जाट है. 25 से अधिक सीटों पर मुस्लिम-जाट वोटरों की संख्या 50 फीसद से अधिक है. पश्चिमी यूपी में भाजपा को 2017 में 136 में 102 सीटों पर विजय मिली थी. लेकिन इस बार आंदोलन के कारण भाजपा को लोग घेर रहे थे.
भाजपा के नेताओं को विरोध का सामना करना पड़ रहा था. राज्यपाल सत्यपाल मालिक मंचों से खुलेआम किसान आंदोल का समर्थन कर रहे थे. कृषि कानूनी के वापसी के दांव से सब बातों पर विराम लग गया. अब भाजपा के लिए खुला मैदान जितना चाहे बैंटिंग करे, कोई दिक्कत नहीं होगी. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि यूपी में होंने वाले विधानसभा चुनाव में इसका असर पड़ने की काफी संभावना थी. इस फैसले से आंदोलन की धार कुंद हो गयी है. किसानों की भी नाराजगी दूर होगी. आंदोलन के चलते कई बार हमारे नेताओं को विरोध का सामना करना पड़ा है. कई जगह तो मार-पीट होते होते बची है. वर्षों से संजोया हुआ जाट वोट बैंक भी खिसकने का अंदेशा था. हमारे मातृ संगठन ने भी कुछ एतराज जताया था. इन्हीं सब मुद्दों को शीर्ष नेतृत्व भांप रहा था और प्रधानमंत्री ने बड़ा अच्छा फैसला लिया है.
किसान आंदोलन और जाटों की नाराजगी ने राष्ट्रीय लोकदल को काफी बल दिया है. सपा भी इससे गठबंधन करके सत्ता की सीढ़ी चढ़ने की सपने देखेने लगी थी. इस मास्टर स्ट्रोक के बाद विपक्ष जो इसे घूम-घूम कर मुद्दा बना रहा था. वह जड़ से खत्म हो गया है. उसे नई रणनीति तैयार करनी पड़ेगी. क्योंकि हमारी सरकार द्वारा चल रही किसान निधि सम्मान योजना या अन्य कई योजनाएं जो किसानों की दषा बदलने में बड़ी सहायक हो रही है. उनका फायदा मिलेगा. अभी तक जो पष्चिम क्षेत्रों के ग्रामीण आंचल में हम लोग खुलकर योजनाएं नहीं बता पा रहे थे. उसमें भी आसानी होगी। कुल मिलाकर इससे बड़ा संदेश गया है.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि तीन नए कृषि कानून वापस लेने कुछ देरी हुई है. आंदोलन के कारण भाजपा नेताओं का पष्चिमी यूपी में ज्यादातर जगहों पर विरोध था. लेकिन कानून वापस लेने से यह लोग ग्रामीणों के बीच अपनी बात समझा लेंगे. इससे पहले भाजपाइयों का बॉयकाट हो रहा था. सरकार को किसान विरोधी घोषित करने में लगे थे. यह धारणा टूटेगी. भाजपा के लोग अपनी बात आसानी से समझा लेंगे. कानूनी वापसी के चलते उन्हें विरोध भी नहीं झेलना पड़ेगा. अब सरकार किसानों को एजेंडे को लेकर आगे बढ़ेगी ऐसी संभावना है.
एक अन्य विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि पश्चिमी यूपी की राजनीति में किसान बिल वापस होंने से फर्क पड़ेगा. इस बिल के विरोध में जो नेतृत्व था नरेश टिकैत और राकेश टिकैत यह लोग पश्चिमी यूपी से आते है. यह नेता जाट सामुदाय से आते हैं. इस क्षेत्र में जाटों को खासा प्रभाव है. जिसके चलते भाजपा एक संशय की स्थित में थी. उसे लगता था कि जाट अगर दूर हुए तो परेशानी होगी. विपक्ष जाट सामुदाय को भाजपा से दूर करने में सफल हो रहा था. इस बिल वापसी से कन्फ्यूजन में जो जाट था उसे निर्णय लेने में आसानी होगी. रालोद को रणनीति बदलनी पड़ेगी. अब तक वह किसान बिल के विरोध के बहाने जाटों को एकजुट कर रहे थे. चौधरी अजीत सिंह के अनुपस्थित में जयंत का यह पहला चुनाव है. इसलिए उन्हें अपने को साबित करना है. पार्टी को बचाना है. अब जाट राजनीति के लिए रालोद को नए सिरे से बढ़ना होगा.