शिंदे बनाम ठाकरे: ठाकरे गुट ने की सुप्रीम कोर्ट में सात न्यायाधीशों की पीठ गठित करने की मांग
एकनाथ शिंदे व सीएम उद्धव ठाकरे (Photo Credits PTI)

Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के गुट ने मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय सेमामले में फैसले को शीर्ष अदालत की सात सदस्यीय पीठ को भेजने की मांग की. ठाकरे गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ के अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष पेश हुए और नबाम रेबिया के फैसले (2016) को सात-न्यायाधीशों की पीठ को भेजने की मांग की.

हालांकि पीठ में शामिल जस्टिस एम.आर. शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पी.एस. नरसिम्हा ने कहा कि यह पांच-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा तय किया जाएगा और इस बारे में दलीलें दी जा सकती हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने अधिवक्ता अभिकल्प प्रताप सिंह की सहायता से एकनाथ शिंदे के समूह का प्रतिनिधित्व किया, जबकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केवल कानून के सवाल पर अदालत की सहायता के लिए राज्यपाल का प्रतिनिधित्व किया.

सिब्बल ने कहा कि जब इस मामले पर सुनवाई होगी तो वह इसे सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजे जाने पर बहस करेंगे. पीठ ने दोनों पक्षों से मुद्दों पर एक संक्षिप्त नोट तैयार करने और इसे अदालत में जमा करने को कहा. संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए 10 जनवरी निर्धारित की.

इस साल अगस्त में शीर्ष अदालत की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के गुटों द्वारा दलबदल, विलय और अयोग्यता से संबंधित प्रश्नों पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. शीर्ष अदालत की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने अपने आदेश में पहला मुद्दा तैयार किया था कि क्या स्पीकर को हटाने का नोटिस उन्हें संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता की कार्यवाही जारी रखने से रोकता है, जैसा कि इस अदालत ने नेबाम राबिया ( पांच जजों की बेंच द्वारा) मामले में किया था.

एकनाथ शिंदे और अन्य विधायकों ने उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर उन्हें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था. शिंदे गुट ने शिवसेना पार्टी और उसके चुनाव चिह्न् पर भी अपना दावा पेश किया.

शीर्ष अदालत ने स्पीकर को शिंदे और अन्य विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं की सुनवाई करने से रोक दिया था. शीर्ष अदालत ने 11 जुलाई को नवनियुक्त महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को अयोग्यता याचिकाओं पर कार्यवाही आगे नहीं बढ़ाने को कहा.