MUDA Scam: जमीन घोटाला केस में CM सिद्धारमैया हाई कोर्ट का खटखटाया दरवाजा, गवर्नर के आदेश को दी चुनौती
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ गवर्नर के इस निर्णय को चुनौती देने से यह स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच की विवाद की खाई अब और भी गहरी हो गई है.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी है, जिसमें उन्होंने गवर्नर थावरचंद गेहलोत के उस निर्णय को चुनौती दी है जिसमें उनके खिलाफ एक कथित भूमि घोटाले के मामले में अभियोजन की मंजूरी दी गई थी. इस घोटाले के आरोपों के अनुसार, सिद्धारमैया पर आरोप है कि उनके कार्यकाल के दौरान, मायसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) द्वारा उनकी पत्नी को एक मुआवजा स्थल का आवंटन किया गया था, जिसमें अनियमितताओं का आरोप लगा है.
मुख्यमंत्री की दलीलें और विपक्ष की प्रतिक्रियाएं
बीजेपी ने इन आरोपों को लेकर मुख्यमंत्री से इस्तीफा मांगते हुए आंदोलन किया है, जबकि कांग्रेस ने इस मामले में किसी भी प्रकार की कार्रवाई से इंकार किया है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने गवर्नर के इस कदम को "संविधान के खिलाफ" और "कानून के विपरीत" बताते हुए अदालत में चुनौती देने की बात कही है. उनका कहना है कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है और वे इस फैसले को अदालत में चुनौती देंगे.
गवर्नर का निर्णय और मुख्यमंत्री की याचिका
गवर्नर गेहलोत ने शनिवार को लोकायुक्त को सिद्धारमैया के खिलाफ अभियोजन की अनुमति देने का निर्णय दिया था. इसके बाद, मुख्यमंत्री ने आज सुबह इस निर्णय को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की है. यह निर्णय तीन कार्यकर्ताओं - प्रदीप कुमार, टीजे अब्राहम, और स्नेहमयी कृष्णा द्वारा दाखिल की गई याचिकाओं के आधार पर लिया गया था. इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि इस आवंटन से राज्य को करोड़ों का नुकसान हुआ है.
आरोपों का विवरण
जुलाई में, अब्राहम ने लोकायुक्त में शिकायत दर्ज कराई थी कि मायसूरु के एक प्रीमियम इलाके में 14 स्थलों का "गैर-कानूनी" तरीके से BM पार्वथी को आवंटित किया गया था, जो कि सिद्धारमैया की पत्नी हैं. इस आरोप के अनुसार, राज्य को ₹45 करोड़ का नुकसान हुआ था. स्नेहमयी कृष्णा ने भी सिद्धारमैया, उनकी पत्नी और MUDA के अधिकारियों की संलिप्तता का आरोप लगाया था.
सिद्धारमैया की प्रतिक्रिया
सिद्धारमैया ने दावा किया कि जिस भूमि के लिए उनकी पत्नी को मुआवजा मिला, वह 1998 में उन्हें उपहार में दी गई थी. लेकिन कृष्णा का कहना है कि यह भूमि 2004 में अवैध तरीके से प्राप्त की गई थी और इसे 1998 में खरीदी गई बताकर दस्तावेज़ों में दर्ज किया गया था. पार्वथी ने 2014 में इस भूमि के लिए मुआवजा मांगा था, जब सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे. सिद्धारमैया ने कहा कि उनकी पत्नी को यह मुआवजा भाजपा के शासनकाल में मिला था और यह उनका अधिकार था.
यह मामला कर्नाटका में राजनीति और प्रशासन के बीच एक और टकराव को दर्शाता है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ गवर्नर के इस निर्णय को चुनौती देने से यह स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच की विवाद की खाई अब और भी गहरी हो गई है.