राफेल डील पर फ्रांस मीडिया ने उठाए सवाल, पूछा-आखिर रिलायंस के साथ कैसे हुआ सौदा?
फ्रांस मीडिया ने भारत में चल रहे राफेल 'घोटाला' विवाद की तुलना 1980 के दशक में बोफोर्स घोटाले से करते हुए सवाल खड़ा किया है. फ्रांस के एक प्रमुख अखबार फ्रांस 24 ने इस डील से हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को बाहर करते हुए निजी क्षेत्र की रिलायंस डिफेंस को शामिल किए जाने पर सवाल उठाया है.
नई दिल्ली: राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के बीच जारी आरोप-प्रत्यारोप के बीच फ्रांस मीडिया ने भी टिप्पणी की है. दरअसल फ्रांस मीडिया ने भारत में चल रहे राफेल 'घोटाला' विवाद की तुलना 1980 के दशक में बोफोर्स घोटाले से करते हुए सवाल खड़ा किया है. फ्रांस के एक प्रमुख अखबार फ्रांस 24 ने इस डील से हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को बाहर करते हुए निजी क्षेत्र की रिलायंस डिफेंस को शामिल किए जाने पर सवाल उठाया है.
कांग्रेस की तरह फ्रांस 24 का भी यही सवाल है कि मनमोहन सरकार यह डील बेंगलुरू स्थित हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ रही थी, लेकिन 2014 में एनडीए की सत्ता ने इस डील के लिए निजी क्षेत्र की रिलायंस डिफेंस को क्यों चुना? यह भी पढ़े-राफेल डील: अनिल अंबानी ने नेशनल हेराल्ड के खिलाफ किया 5000 करोड़ की मानहानि का केस
बता दें कि राफेल सौदे के तहत फ्रांस की कंपनी से अंबानी ग्रुप को ही यह डील मिली है. फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट ने रिलायंस समूह से करार अनुबंध के तहत अपनी ऑफसेट अनिवार्यता को पूरा करने के लिए किया है. रक्षा ऑफसेट के तहत विदेशी आपूर्तिकर्ता को उत्पाद के एक निश्चित प्रतिशत का निर्माण खरीद करने वाले देश में करना होता है. इसके तहत आने वाले दिनों में राफेल से जुड़े जो पुर्जे कल भारत सरकार खरीदेगी उसे दसॉल्ट की मदद से अनिल अंबानी का ग्रुप तैयार करेगा.
ज्ञात हो कि कांग्रेस लगातार आरोप लगाती आ रही है कि कथित तौर पर इस डील से अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाया गया और डील को पहले के मुकाबले महंगा कर दिया गया. मौजूदा सरकार राफेल विमानों के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA)सरकार में तय कीमत से कहीं अधिक मूल्य चुका रही हैं. सरकार ने इस सौदे में बदलाव सिर्फ 'एक उद्योगपति को फायदा पहुंचाने के लिए' किया है. यह भी पढ़े-राफेल डील: कांग्रेस प्रवक्ता पर भड़की रिलायंस, कहा- बिना सबूत आरोप लगाना पड़ेगा भारी
आरोपों पर अनिल अंबानी की सफाई-
गौरतलब है कि विवाद बढ़ने पर अनिल अंबानी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पत्र लिखकर इस सौदे में रिलांयस की भूमिका पर स्पष्टीकरण दिया था. अंबानी ने लिखा था कि राफेल जेट्स का निर्माण रिलायंस या DRAL द्वारा नहीं किया जाएगा. अंबानी ने कहा, “रिलायंस समूह ने राफेल सौदे से महीनों पहले दिसंबर 2014-जनवरी 2015 में रक्षा उत्पादन कारोबार में उतरने की घोषणा की थी और शेयर बाजार को 2015 के फरवरी में इस बारे में सूचित किया गया.” अंबानी ने कहा है कि सभी 36 लड़ाकू विमानों का 100 फीसदी उत्पादन फ्रांस में किया जाएगा और वहां से भारत आयात किया जाएगा.
-जानिए क्या है राफेल?
राफेल अनेक भूमिकाएं निभाने वाला एवं दोहरे इंजन से लैस फ्रांसीसी लड़ाकू विमान है और इसका निर्माण डसॉल्ट एविएशन ने किया है. राफेल विमानों को वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक सक्षम लड़ाकू विमान माना जाता है. यह भी पढ़े-राहुल गांधी का पीएम मोदी से सवाल, 45 हजार करोड़ के कर्जदार अंनिल अंबानी को कैसे मिली राफेल डील
-यूपीए सरकार की डील.
भारत ने 2007 में 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) को खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी, जब तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने भारतीय वायु सेना से प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी. इस बड़े सौदे के दावेदारों में लॉकहीड मार्टिन के एफ-16, यूरोफाइटर टाइफून, रूस के मिग-35, स्वीडन के ग्रिपेन, बोइंग का एफ/ए-18 एस और डसॉल्ट एविएशन का राफेल शामिल था.
लंबी प्रक्रिया के बाद दिसंबर 2012 में बोली लगाई गई. दसॉल्ट एविएशन सबसे कम बोली लगाने वाला निकला. मूल प्रस्ताव में 18 विमान फ्रांस में बनाए जाने थे जबकि 108 विमान भारत में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर तैयार किये जाने थे, पर डील असफल रही.
रिपोर्ट्स की मानें तो 2012 से लेकर 2014 के बीच बातचीत किसी नतीजे पर न पहुंचने की सबसे बड़ी वजह थी विमानों की गुणवत्ता का मामला. कहा गया कि दसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी. साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर भी एकमत वाली स्थिति नहीं थी.
यूपीए सरकार और डसॉल्ट के बीच कीमतों और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर लंबी बातचीत हुई थी. अंतिम वार्ता 2014 की शुरुआत तक जारी रही लेकिन सौदा नहीं हो सका.
-मोदी सरकार की डील.
फ्रांस की अपनी यात्रा के दौरान, 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि सरकारों के स्तर पर समझौते के तहत भारत सरकार 36 राफेल विमान खरीदेगी. घोषणा के बाद, विपक्ष ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री ने सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की मंजूरी के बिना कैसे इस सौदे को अंतिम रूप दिया. मोदी और तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलोंद के बीच वार्ता के बाद 10 अप्रैल, 2015 को जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया कि वे 36 राफेल जेटों की आपूर्ति के लिए एक अंतर सरकारी समझौता करने पर सहमत हुए.
पीएम मोदी के सामने हुए समझौते में यह बात भी थी कि भारतीय वायु सेना को उसकी जरूरतों के मुताबिक तय समय सीमा के भीतर विमान मिलेंगे. वहीं लंबे समय तक विमानों के रखरखाव की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी. आखिरकार सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ. भारत और फ्रांस ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 23 सितंबर, 2016 को 7.87 अरब यूरो (लगभग 5 9,000 करोड़ रुपये) के सौदे पर हस्ताक्षर किए. विमान की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होगी.
-नई डील में क्या है अलग?
इस डील के साथ ही भारत और फ्रांस की सरकार के बीच समझौता किया गया कि इस डील से दसॉल्ट को हुई कुल कमाई का आधा हिस्सा कंपनी को एक निश्चित तरीके से वापस भारत में निवेश करना होगा. डील के इस पक्ष को ऑफसेट क्लॉज कहा गया. लिहाजा, डील के तहत दसॉल्ट को यह सुनिश्चित करना था कि वह 8.7 बिलियन डॉलर की आधी रकम को वापस भारत के रक्षा क्षेत्र में निवेश करे.
-फ्रांस मीडिया का सवाल- HAL के स्थान पर रिलायंस ग्रुप को कैसी मिली डील?
फ्रांस 24 ने एक ओर जहां रिलायंस ग्रुप पर सवाल उठाए वहीं साथ ही रिलायंस को विवादित कंपनी भी बताया. फ्रांस 24 ने भारतीय सरकार से पुछा कि कैसे मैन्यूफैक्चरिंग के 78 साल तजुर्बे वाली एचएएल से करार तोड़कर किसी नई कंपनी को दिया जा सकता है. इस डील के लिए एचएएल एक मात्र कंपनी थी जिसके पक्ष में फैसला किया जाता. लेकिन दसॉल्ट ने एचएएल से करार तोड़ते हुए अनिल अंबानी की रिलायंस ग्रुप से करार कर लिया. खासबात यह है कि इस वक्त तक रिलायंस के पास रक्षा क्षेत्र की मैन्यूफैक्चरिंग तो दूर उसे एविएशन सेक्टर का भी कोई तजुर्बा नहीं था.
रिलायंस ग्रुप की यह कंपनी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फ्रांस दौरे से महज 13 दिन पहले की है. वहीं फ्रांस 24 ने यह भी मुद्दा उठाया है कि प्रधानमंत्री की इस यात्रा में शामिल कारोबारियों ने अनिल अंबानी भी मौजूद थे.
फ्रांस 24 ने लिखा है कि मौजूदा परिस्थिति में साफ है कि राफेल डील भारत के आगामी आम चुनावों में ठीक वही भूमिका अदा कर सकता है जो 1980 के दशक में बोफोर्स डील ने किया था.
फ़्रांस 24 ने यह तक कह डाला कि जैसे बोफोर्स डील पर विवाद के चलते राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर जाना पड़ा ठीक वही हालात इस समय बीजेपी सरकार के हैं, और मौजूदा सरकार को इस वजह से आगामी चुनावों में हार का सामना करना पड़ सकता है. बात दें कि मौजूदा सरकार के अनुसार करार की शर्तों को गोपनीय रखा गया है. इसलिए, भारत और फ्रांस दोनों ही इसकी कीमत भी नहीं बता रहे हैं.