Uttar Pradesh Assembly Election 2022: मूर्तियों के बहाने अब ब्राह्मण वोटों पर राजनीतिक दलों की नजर
यूथ नेता जितिन प्रसाद (Photo Credits ANI)

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव भले ही 2022 में हो, लेकिन राजनीतिक दल अभी से जाति और धर्म के सहारे वोटों को सहेजना शुरू कर दिए हैं. ताजा मामला में परशुराम की मूर्ति को लेकर ब्राह्मण वोट बैंक पर सपा और बसपा की कवायद तेज हुई है. प्रदेश में करीब 12 से 14 प्रतिशत ब्राह्मण वोट है. विकास दुबे के एनकांउटर के बाद से उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण उत्पीड़न का मुद्दा तेजी के साथ उठने लगा था. सबसे पहले कांग्रेस की तरफ से पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद (Jitin Prasada) इस जाति के सहानुभूति वोट बटोरने की कोशिश में दिखे. बसपा मुखिया मायावती (Mayawati) भी पहले ही अपने 2007 के सोशल इंजीनियरिंग के फारमूले को दोहराने के लिए ब्राह्मण भाईचारे कमेटी को सक्रिय करने का फैसला कर लिया था. वैसे विपक्षी दलों की मुस्लिम वोटों पर भी समानान्तर नजरें लगी हुई हैं.

इसी बीच सपा ने ब्राह्मण वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने का सिगूफा छोड़ दिया. फिर क्या था, बसपा सुप्रीमो सपा से भी बड़ी परशुराम की मूर्ति लगाने की बात करने लगीं. उन्होंने सपा के मूर्ति लगाने पर तगड़ा विरोध भी जताया है. उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि सपा शासन में ब्राह्मण समाज का सर्वाधिक शोषण व उत्पीड़न हुआ था. मायावती का आरोप है कि अब चुनाव नजदीक आने पर सपा की ओर से राजनीतिक स्वार्थ में प्रतिमा लगाने की बात की जा रही है. मायावती ने सरकार आने पर सपा से बड़ी व भव्य परशुराम प्रतिमा लगवाने की घोषणा करते हुए कहा कि ब्राह्मण समाज का बसपा पर भरोसा अधिक है क्योंकि हमारी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता. यह भी पढ़े:राजस्थान कांग्रेस का असर उत्तर प्रदेश में भी मिल सकता है देखने को, यूथ नेता जितिन प्रसाद हो सकते हैं बागी!  

प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश द्विवेदी भी सपा के ब्राह्मण कार्ड के खिलाफ मैदान में टूट पड़े. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि ब्राह्मणों को बुद्धू मत समझिए, अखिलेश जी. ब्राह्मण राष्ट्रभक्त होता है, विकास का पक्षधर होता है, नीतियों और कार्यक्रमों से जुड़ता है, उसे प्रलोभन देकर अपमानित मत करिए. राम मंदिर का विरोध और भगवान परशुराम का वोट के लिए इस्तेमाल करने का आपका सपना पूरा नहीं होगा. यह भी पढ़े:उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला, सरकारी स्कूलों में योग करेंगे छात्र

इस मामले में सपा नेता और प्रदेश के पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्रा ने बताया कि भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने का निर्णय अचानक से नहीं लिया गया है. इस पर हम बहुत वक्त से काम कर रहे हैं. यह मूर्ति भगवान परशुराम चेतना पीठ कर रही है. दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति बनाने जा रहे हैं. यह कोई एक दिन की घोषणा नहीं है. ऐसी मूर्ति बनेगी जो दो हजार साल खड़ी रहेगी. यह भगवान का कार्य है. इस पर राजनीति नहीं करना है. यह हमारी आस्था से जुड़ा हुआ मामला है. उधर, कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद 'ब्रह्म चेतना संवाद कार्यक्रम के माध्यम से लोगों के बीच पहुंचने के प्रयास में है. कोरोना से पहले जहां पर ब्राह्मणों की हत्याएं हुई थी. जितिन वहां जा रहे थे. इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस के अन्य नेता भी लगे हुए हैं. यह भी पढ़े: Fire Breaks Out At a Chemical Factory in Vapi: गुजरात के वापी में केमिकल फैक्ट्री में लगी भीषण आग, आसपास के इलाकों में मच गई भगदड़, फायर ब्रिगेड की 8 गाड़ियां मौके पर, देखें VIDEO

वरिष्ठ पत्रकार पीएन द्विवेदी ने कहा कि रामजन्मभूमि के बाद विपक्षी दलों के पास ऐसा कोई बड़ा मुद्दा नहीं दिख रहा है, जिससे वे सत्तारूढ़ दल की काट कर सकें. ऐसे में भाजपा की हिन्दुत्व की राह रोकने के लिए जाति विभाजन का फार्मूला तैयार किया जा रहा है. इसमें सबसे बड़ा दांव समाजवादी पार्टी ने चला है. परशुराम की 108 फीट ऊंची मूर्ति लगाकर उनके मंदिर और शिक्षण संस्थान बनावाने की बात करके. इसी के बाद अन्य राजनीतिक दलों को भी लगा कि ब्राह्मणों का मुद्दा हाथ से न निकल जाए. ऐसे में कांग्रेस और सपा के बाद अब बसपा भी ब्राह्मणों को रिझाने के लिए जोर आजमाइश कर रही है. पीएन द्विवेदी कहते हैं कि उप्र में सवर्णो का वोट 18-20 प्रतिशत है. 2014 और 2017 के विधानसभा चुनाव में यह भाजपा का मूल बेस वोट था. कांग्रेस की प्रदेश में दुर्दशा और बसपा के घटाव ये दर्शा रहे हैं कि यह वर्ग इनसे दूर हो रहा है. इसमें सबसे अधिक करीब 12 से 14 प्रतिशत ब्राह्मण और 4-5 प्रतिशत ठाकुर हैं. वैश्य 3-4 प्रतिशत, त्यागी या भूमिहार दो प्रतिशत के करीब हैं. इनमें ब्राह्मण और ठाकुर सामाजिक तौर पर प्रतिस्पर्धी जातियां हैं. इसी कारण ब्राह्मणों का लुभाने का प्रयास किया जा रहा है.