MP By-Poll 2020: कांग्रेस ने खेला बड़ा दांव, सिंधिया के सामने सचिन पायलट को उतारा, महाराज के गढ़ में गरजेंगे राजस्थान के पूर्व-डिप्टी सीएम

सचिन पायल जिन इलाकों में चुनाव प्रचार करने वाले हैं उनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया का खूब प्रभाव है. कभी दोस्त रहे पायलट और सिंधिया इस चुनाव में एक दूसरे के विरोध में हैं. अब यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि महाराज के गढ़ में पायलट का दांव चलता है या नहीं.

सचिन पायलट (Photo Credits: Facebook)

भोपाल: मध्य प्रदेश में विधानसभा की 28 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव (MP Assembly Byelection 2020) में बीजेपी को मात देने के लिए कांग्रेस ने आक्रामक रणनीति बनाई है. कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के प्रभाव वाले इलाकों में चुनावी जीत के लिए कांग्रेस ने बड़ी रणनीति बनाई है. कांग्रेस ने यहां चुनावी प्रचार के लिए राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट (Sachin Pilot) को मैदान में उतारा है. सचिन पायलट ने अपने एक ट्वीट में लिखा, "दिनांक 27 और 28 अक्टूबर को मध्यप्रदेश के चुनावी दौरे पर रहकर कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में आयोजित चुनावी सभाओं को संबोधित करूंगा."

सचिन पायलट जिन इलाकों में चुनाव प्रचार करने वाले हैं उनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया का खूब प्रभाव है. कभी दोस्त रहे पायलट और सिंधिया इस चुनाव में एक दूसरे के विरोध में हैं. अब यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि महाराज के गढ़ में पायलट का दांव चलता है या नहीं. चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं प्रचार अभियान जोर पकड़ रहा है. मध्य प्रदेश विधानसभा उपचुनाव प्रचार जोरों पर, प्रचार अभियान से दिग्विजय सिंह की दूरी सुर्खियों में.

मध्य प्रदेश के 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं. प्रदेश में तीन नवंबर को होने वाले इस उपचुनाव से यह तय होगा कि प्रदेश की सत्ता में कौन सी पार्टी रहेगी. सत्तारूढ़ बीजेपी अथवा विपक्षी कांग्रेस. बोत काउंटिंग 10 नवंबर को होगी.

जिन 28 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से 25 सीटें कांग्रेस विधायकों के इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होने से खाली हुई हैं, जबकि दो सीटें कांग्रेस विधायकों के निधन से और एक सीट बीजेपी विधायक के निधन से खाली हुई है.

बता दें कि इस साल मार्च में कांग्रेस के 22 विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के कहने पर पाला बदलकर बीजेपी में शामिल हो गए थे. इससे कांग्रेस की तत्कालीन कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई थी जिसके बाद राज्यपाल ने सदन में बहुमत परीक्षण करवाने के निर्देश दिए थे. मगर इससे पहले ही कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.

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