भोपाल, 7 फरवरी : मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में भारतीय जनता पार्टी के भीतर उठ रहे असंतोष के स्वर सत्ता और संगठन दोनों के लिए चुनौती बन रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी की ओर से बयानबाजी करने वाले नेताओं को समझाइश दी जा रही है, मगर वे अपनी राह पर चले जा रहे हैं. राज्य में बीते लगभग दो माह की अवधि में देखा जाए तो भाजपा के कई नेताओं ने पार्टी की मर्जी के खिलाफ अपनी राय जाहिर करने में हिचक नहीं दिखाई है. पहले विधानसभा के उपचुनाव में दल-बदल करने वाले नेताओं को उम्मीदवार बनाए जाने पर कई नेताओं ने खुले तौर पर नाराजगी जताई थी और उसके बाद मंत्रिमंडल विस्तार पर भी सवाल उठाए गए थे. महाकौशल से नाता रखने वाले पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने एक नहीं कई बार पार्टी की रीति-नीति के खिलाफ अपनी राय जाहिर की है, इतना ही नहीं वे विंध्य और महाकौशल की उपेक्षा करने तक का आरोप लगा चुके हैं.
इसी क्रम में मैहर से विधायक नारायण त्रिपाठी (Narayan Tripathi) ने भी अलग विंध्य प्रदेश की मांग को बुलंद किया है. इस पर पार्टी की ओर से उन्हें तलब भी किया गया था और त्रिपाठी ने प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के सामने सफाई दी थी, मगर उसके बाद भी उन्होंने विंध्य प्रदेश के नारे को बुलंद रखने का अभियान जारी रखा है. उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने शराबबंदी और नशा मुक्ति को लेकर बयान देकर शिवराज सरकार (Shivraj government) की मुसीबतें बढ़ाने का काम किया. वे ऐलान कर चुकी हैं कि आठ मार्च महिला दिवस से वो नशा मुक्ति अभियान चलाएंगी. बाद में उन्होंने शिवराज सिंह चौहान को एक पत्र लिखकर पूरे मामले को संभालने की कोशिश की और कहा कि यह पूरी तरह जन जागरण वाला अभियान होगा. यह भी पढ़ें : UP Budget Session 2021: यूपी के विधायकों को बजट सत्र से पहले कराना होगा कोरोना टेस्ट
इसी बीच तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन पर पूर्व सांसद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक के वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा का चौंकाने वाला बयान आया है. इतना ही नहीं उन्होंने तो राज्य के वरिष्ठ नेता और केंद्र सरकार के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पर ही हमला बोल दिया. सोशल मीडिया पर लिखे गए नरेंद्र तोमर के नाम पत्र में शर्मा ने तल्ख टिप्पणी की और यहां तक कहा कि सत्ता का मद आपके सिर पर चढ़ गया है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि राज्य में एक बड़ा वर्ग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है क्योंकि राज्य की भाजपा में बड़े बदलाव का सिलसिला जारी है. अपने अस्तित्व को संकट में पाने वाले नेता सत्ता और संगठन पर दवाब बनाने के लिए मुखर हो रहे हैं. समय रहते अगर भाजपा ने ऐसे लोगों पर लगाम नहीं कसी तो आने वाले दिनों में यह असंतोष और मुखर हो सकता है, क्योंकि राज्य में जल्दी ही नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव जो होने वाले हैं.