बंगाल में गहराया मूर्ति विवाद: जांच के लिए बनी SIT, बीजेपी-TMC के बीच घमासान
पीएम मोदी और ममता बनर्जी (File Photo)

पश्चिम बंगाल (West Bengal) की राजधानी कोलकाता (Kolkata) में बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान विद्यासागर कॉलेज में तोड़फोड़ और महान समाज सुधारक ईश्‍वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने के बाद राज्‍य में सत्‍ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC) और बीजेपी में आरोप-प्रत्‍यारोप जारी है. मूर्ति टूटने को लेकर बवाल लगाते बढ़ता ही जा रहा है. अब इस मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया है. कोलकाता पुलिस ने इस मामले में जल्द से जल्द रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है. एसआईटी में जासूसी विभाग के भी अधिकारी शामिल हैं.

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने आरोप लगाया है कि पश्चिम बंगाल पुलिस राज्य सरकार के साथ सांठगांठ कर तृणमूल कांग्रेस के गुंडों की तरफ से तोड़ी गई मूर्ति की घटना के सबूतों को मिटाने की कोशिश कर रही है. मूर्ति तोड़े जाने के बाद एक चुनावी रैली में पीएम मोदी की तरफ वादा किया गया कि विद्यासागर की प्रतिमा उसी स्थान पर लगाई जायेगी, जहां वह स्थापित थी.

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पीएम मोदी के बयान पर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने कहा, "मोदी ने वादा किया है कि वह कोलकाता में विद्यासागर की प्रतिमा दोबारा बनवायेंगे. हमें उनसे (बीजेपी) धन क्यों लेना चाहिए, जब बंगाल के पास पर्याप्त संसाधन हैं." ममता ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए दावा किया कि प्रतिमाओं को तोड़ना इस पार्टी की आदत है और यह पार्टी त्रिपुरा में भी ऐसा कर चुकी है. ममता ने कहा,‘बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में 200 साल पुरानी विरासत नष्ट कर दी, जो लोग पार्टी का समर्थन कर रहे हैं उन्हें समाज स्वीकार नहीं करेगा.

कौन हैं ईश्वरचंद्र विद्यासागर

ईश्वरचंद्र विद्यासागर एक प्रसिद्ध समाज सुधारक, शिक्षा शास्त्री और स्वाधीनता संग्राम के सेनानी थे. उन्हें गरीबों और दलितों का संरक्षक माना जाता था. उन्होंने स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह के खिलाफ आवाज उठाई थी. उनका जन्म 26 सितंबर, 1820 को पश्चिम बंगाल के जिला मेदनीपुर के गांव बीरशिंघा में हुआ था. वह

उन्होंने 'मेट्रोपोलिटन विद्यालय' सहित अनेक महिला विद्यालयों की स्थापना की और साल 1848 में वैताल पंचविंशति नामक बंगला भाषा की प्रथम गद्य रचना का भी प्रकाशन किया था. नैतिक मूल्यों के संरक्षक और शिक्षाविद विद्यासागर का मानना था कि अंग्रेजी और संस्कृत भाषा के ज्ञान का समन्वय करके भारतीय और पाश्चात्य परंपराओं के श्रेष्ठ को हासिल किया जा सकता है.