झारखंड: इसलिए बाबूलाल मरांडी की वापसी बीजेपी के लिए बेहद जरुरी

पिछले साल दिसम्बर में झारखंड में विधानसभा चुनाव हुए थे. इन चुनावों में मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के तीन विधायक जीते थे लेकिन उनमें से दो, बंधु तिर्की और प्रदीप यादव ने बगावत कर दी है तथा उन्हें पार्टी से निकालने का निर्णय लिया गया. फिलहाल, मरांडी अकेले ही विधायक है.

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी (Photo: Facebook)

झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की आज घर वापसी होगी. वे आज भारतीय जनता पार्टी में अपनी पार्टी का विलय करेंगे. कुछ दिनों पहले ही मरांडी ने इस बात की घोषणा कर दी थी. ऐसा भी बताया जा रहा है कि जगन्नाथपुर मैदान में विलय के दौरान गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा और बीजेपी उपाध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर भी मौजूद रहेंगे. बता दें कि मरांडी ने 14 साल पहले बीजेपी को अलविदा कहा था. बताया जा रहा है कि बीजेपी मरांडी को अहम जिम्मेदारी देगी. सूत्रों का दावा है कि बीजेपी ने मरांडी के सामने केंद्र में मंत्री, झारखंड विधानसभा में विपक्ष का नेता और झारखंड प्रदेश अध्यक्ष के पद का विकल्प रखा है.

बता दें कि पिछले साल दिसम्बर में झारखंड में विधानसभा चुनाव हुए थे. इन चुनावों में मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के तीन विधायक जीते थे लेकिन उनमें से दो, बंधु तिर्की और प्रदीप यादव ने बगावत कर दी है तथा उन्हें पार्टी से निकालने का निर्णय लिया गया. फिलहाल, मरांडी अकेले ही विधायक है.

बीजेपी को क्यों है मरांडी की जरुरत:

बता दें कि झारखंड में कद्दावर आदिवासी चेहरे की कमी विधानसभा चुनावों में पार्टी की हार के प्रमुख कारणों में से एक है. मौजूदा मुख्यमंत्री रघुबर दास भी अपनी सीट को बरकरार रखने में विफल रहे थे. बीजेपी को मुख्य रूप से एक गैर आदिवासी नेता को सीएम का उम्मीदवार बनाना भारी पड गया.

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दूसरी ओर हेमंत सोरेन आदिवासी हैं जिसका फायदा JMM-कांग्रेस गठबंधन को मिला. बीजेपी लगातार आदिवासी समुदाय के बीच पार्टी को विस्तार करने की कोशिश कर रही हैं मगर प्रमुख नेताओं के ना होने से पार्टी अपने मिशन में सफल नहीं हो पा रही है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी यही देखा गया था. उन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद भी पार्टी इसी नतीजे पर पहुंची थी कि आदिवासी बहुल इलाकों में समुदाय से कद्दावर नेता नहीं होने का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा था.

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