समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) (सपा) के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने भाजपा पर किसानों को बदनाम करने और खरबपतियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया है. यादव ने रविवार को एक ट्वीट में कहा, "भाजपा द्वारा किसानों को बदनाम करने के प्रपंचों से किसान बहुत आहत हैं, भाजपा ने नोटबंदी, जीएसटी, श्रम क़ानून और कृषि क़ानून लाकर खरबपतियों को ही फ़ायदा पहुँचाने वाले नियम बनाए हैं. भाजपा ने आम जनता को बहुत सताया है." इसी ट्वीट में यादव ने भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) का नाम लिए बिना शायराना अंदाज में लिखा, "वो आँसू टपके बस दो आँख से हैं, पर दुख-दर्द वो लाखों लाख के हैं." उल्लेखनीय है कि गणतंत्र दिवस पर किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के बाद किसान नेता राकेश टिकैत मीडिया के सामने भावुक हो गये थे.
यादव ने पहले ट्वीट के क़रीब दो घंटे बाद एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘‘उप्र की राजधानी में कल से एक व्यापारी के लापता होने की ख़बर ने कारोबारियों को भयभीत कर दिया है. भाजपा सरकार सच्ची मांगों पर किसानों को भी उत्पीड़ित कर रही है और सच बोलने पर पत्रकारों को भी.” उन्होंने कहा कि राज्य में पुलिस आयुक्त की नयी प्रणाली क़ानून-व्यवस्था के मामले में पूरी तरह विफल है. यादव ने अपने ट्वीट में ‘स्माल इंडस्ट्रीज़ एंड मैन्युफ़ैक्चर्स एसोसिएशन’ की ओर से लखनऊ के पुलिस आयुक्त को प्रेषित पत्र की प्रति सम्बद्ध की है जिसमें उद्यमियों ने अपने एक सदस्य के शनिवार की शाम सात बजे से लापता होने की सूचना देते हुए कार्रवाई की अपेक्षा की है. यह भी पढ़े: अखिलेश यादव ने साधा योगी आदित्यनाथ पर निशाना, कहा- मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली से नहीं लगता कि वह योगी हैं
इस बीच सपा द्वारा रविवार को जारी एक विज्ञप्ति में यादव ने किसानों के मामले में भाजपा सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का अभी भी लगभग 10 हजार करोड़ रुपये बकाया है. मिल मालिक न सरकार के दबाव में है, न किसानों के बकाये का भुगतान करने के मूड में है. अकेले बांदा में 7,065 किसानों का भुगतान चीनी मिलों ने नहीं किया है. गन्ना किसान खून के आंसू रो रहे हैं, धान किसान भी मुसीबत में है. धान क्रय केन्द्र एक तो सभी जनपदों में खुले नहीं, जहां खुले थे वहां किसानों के धान की खरीद नहीं हुई. क्रय केन्द्र प्रभारी और बिचैलियों की साठगांठ के चलते किसान को औने-पौने दाम में अपना धान देने को मजबूर होना पड़ा है. धान का निर्धारित समर्थन मूल्य तो बस मुख्यमंत्री की कागजी घोषणा बनकर रह गया है.” यादव ने कहा, ‘‘बेहतर होता मुख्यमंत्री एक बार इस बात की भी समीक्षा कर लेते कि चीनी मिल मालिकों पर अभी तक गन्ना किसानों का कितना भुगतान बकाया है? धान क्रय केन्द्रों पर कितने किसानों को एमएसपी का भुगतान नहीं हुआ?’’