Bihar Election Result 2025 NDA Strike Rate: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे एकतरफा रहे हैं. 14 नवंबर 2025 को हुई मतगणना ने स्पष्ट कर दिया कि बिहार की जनता ने नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) पर भारी भरोसा जताया है. शुरुआती रुझानों से ही एनडीए ने जो बढ़त बनाई, वह अंत तक सुनामी में बदल गई. एनडीए गठबंधन 200 सीटों के जादुई आँकड़े के करीब पहुँचता दिखा, जो 2010 की ऐतिहासिक जीत की याद दिलाता है. दूसरी ओर, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले विपक्षी महागठबंधन के लिए यह चुनाव किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा. महागठबंधन 40 से 50 सीटों के बीच सिमटता हुआ दिखाई दिया, और प्रशांत किशोर की बहुचर्चित जन सुराज पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल सकी.
लेकिन यह चुनाव सिर्फ सीटों की 'संख्या' का नहीं, बल्कि 'कुशलता' का था. इस चुनाव की असली कहानी एनडीए के तीन मुख्य स्तंभों—बीजेपी, जदयू और लोजपा—के 'स्ट्राइक रेट' में छिपी है.
'स्ट्राइक रेट' क्या होता है?
इस रिपोर्ट को समझने के लिए सबसे पहले 'स्ट्राइक रेट' को समझना ज़रूरी है. यह शब्द वैसे तो क्रिकेट से आया है , लेकिन राजनीति में इसका मतलब बहुत सीधा है: एक पार्टी जितनी सीटों पर चुनाव लड़ी, उनमें से कितने प्रतिशत सीटों पर वह जीती.
उदाहरण के लिए, अगर कोई पार्टी 100 सीटों पर लड़ी और 80 सीटें जीत गई, तो उसका स्ट्राइक रेट 80% हुआ. यह आँकड़ा दिखाता है कि एक पार्टी अपने उम्मीदवारों को जीत में बदलने में कितनी माहिर है.
यह रिपोर्ट इसी 90% (बीजेपी), 80% (जदयू), और 70% (लोजपा) के आँकड़ों की गहराई से पड़ताल करेगी. हम जानेंगे कि यह कैसे हुआ और इसका बिहार की नई सरकार के 'पावर बैलेंस' पर क्या असर पड़ेगा.
तालिका 1: बिहार चुनाव 2025: एनडीए स्ट्राइक रेट का एक्स-रे
(स्रोत: चुनाव आयोग के रुझानों और सीट-बंटवारे के आँकड़ों पर आधारित 3)
| पार्टी | लड़ी गईं सीटें (लगभग) | जीती/बढ़त वाली सीटें (लगभग) | स्ट्राइक रेट (%) |
| बीजेपी (BJP) | 101 | 91 | 90.1% |
| जदयू (JDU) | 101 | 82 | 81.2% |
| लोजपा (LJP-RV) | 29 | 22 | 75.8% |
यह चुनाव 'ताकत'का नहीं, बल्कि 'सटीकता'का था. एनडीए के सहयोगियों ने कम सीटों पर लड़कर अधिकतम परिणाम हासिल किए, जबकि महागठबंधन ने बहुत ज़्यादा सीटों पर लड़कर बहुत कम परिणाम दिए.
बीजेपी (BJP): 90% स्ट्राइक रेट के साथ 'सबसे बड़ी पार्टी' बनने का मास्टरस्ट्रोक
आंकड़ों का आईना
बिहार चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने एक अभूतपूर्व और ऐतिहासिक प्रदर्शन किया है. पार्टी ने एनडीए के सीट-बंटवारे के तहत 101 सीटों पर चुनाव लड़ा और दोपहर तक के रुझानों में 91 सीटों पर जीत हासिल करती दिखी. यह 90% का लगभग अचूक स्ट्राइक रेट है.
ऐतिहासिक उपलब्धि: 'सबसे बड़ी पार्टी'
इन आँकड़ों के साथ, बीजेपी ने इतिहास रच दिया है. यह पहली बार है जब बीजेपी बिहार विधानसभा चुनाव में 'सबसे बड़ी पार्टी' (Single Largest Party) बनकर उभरी है. यह उपलब्धि सिर्फ़ आँकड़ों तक सीमित नहीं है, यह बिहार की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत है.
इस बेजोड़ प्रदर्शन के 4 मुख्य कारण:
- मोदी-नीतीश की 'सुपरहिट' जोड़ी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रव्यापी चेहरे और केंद्र सरकार की योजनाओं के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 'सुशासन बाबू' के रिकॉर्ड का संयोजन एक अपराजेय फॉर्मूला साबित हुआ. एनडीए ने इसे "नीतीश-मोदी की जोड़ी सुपरहिट" के तौर पर पेश किया, जिसे जनता ने हाथों-हाथ लिया.
- 'बराबर-बराबर' (101-101) का फॉर्मूला: 2020 के चुनाव के विपरीत, जहाँ सीटों के बंटवारे को लेकर तनाव था, इस बार बीजेपी और जदयू ने 101-101 सीटों पर बराबर लड़ने का समझदारी भरा फैसला किया. इस फैसले ने 'बड़े भाई-छोटे भाई' के तनाव को पूरी तरह खत्म कर दिया और दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने ज़मीन पर एकजुट होकर एक-दूसरे के उम्मीदवारों के लिए काम किया.
- संगठनात्मक शक्ति और सटीक सीट चयन: बीजेपी ने अपनी ज़मीनी मशीनरी का बेहतरीन इस्तेमाल किया और उन सीटों पर ध्यान केंद्रित किया जहाँ उसकी जीत की संभावना सबसे ज़्यादा थी.
- विपक्ष की कमजोरी का लाभ: महागठबंधन की बिखरी हुई रणनीति और कमज़ोर स्ट्राइक रेट का सीधा फायदा बीजेपी को मिला, जिसने राजद के पारंपरिक गढ़ों में भी सेंध लगा दी.
प्रदर्शन का असली मतलब: 'सहयोगी' से 'संचालक' तक
इस प्रदर्शन का असर बहुत गहरा है. 2020 के चुनाव को याद करें: बीजेपी ने जदयू से ज़्यादा सीटें (74) जीती थीं, जबकि जदयू 43 पर सिमट गई थी. तब भी, बीजेपी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाकर एक तरह से 'छोटे भाई' की भूमिका स्वीकार की थी.
लेकिन 2025 में, 101-101 के 'बराबर' बंटवारे के बाद 90% का स्ट्राइक रेट हासिल करके, बीजेपी ने यह साबित कर दिया है कि वह न केवल सीटों की संख्या में, बल्कि 'वोट जिताने की क्षमता' में भी जदयू से मीलों आगे है. यह प्रदर्शन उसे गठबंधन में वैध 'बड़ा भाई' बनाता है.
भले ही मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार ही बने रहें, लेकिन बीजेपी का 90% स्ट्राइक रेट उसे बिहार सरकार की नीतिगत दिशा को नियंत्रित करने की अभूतपूर्व शक्ति देता है. जब आपका स्ट्राइक रेट 90% हो और आप सबसे बड़ी पार्टी हों, तो आप मुख्यमंत्री पद पर भी दावा कर सकते थे. लेकिन बीजेपी ने नीतीश कुमार को सीएम बनाए रखने का फैसला किया है, जो दिखाता है कि बीजेपी की दिलचस्पी 'चेहरे' से ज़्यादा 'नियंत्रण' में है. अब यह तय है कि सरकार का रिमोट कंट्रोल—महत्वपूर्ण मंत्रालय जैसे गृह, वित्त और स्पीकर का पद—मज़बूती से बीजेपी के हाथ में होगा.
जदयू (JDU): 80% स्ट्राइक रेट और नीतीश कुमार का शानदार 'कमबैक'
आंकड़ों का आईना
अगर बीजेपी का प्रदर्शन 'ऐतिहासिक' था, तो जनता दल (यूनाइटेड) यानी जदयू का प्रदर्शन किसी 'चमत्कारिक वापसी' से कम नहीं है. जदयू ने भी बीजेपी के बराबर 101 सीटों पर चुनाव लड़ा और 82 सीटों पर जीत हासिल की, जो 81.2% का ज़बरदस्त स्ट्राइक रेट है. यह आँकड़ा उपयोगकर्ता के 80% के अनुमान को पूरी तरह सही साबित करता है.
2020 से 2025: ज़मीन-आसमान का फ़र्क
जदयू का यह प्रदर्शन इसलिए ज़्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा था. 2020 में, जदयू 115 सीटों पर लड़कर सिर्फ 43 सीटें जीत पाई थी. 43 सीटों से 82 सीटों तक का यह शानदार उछाल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का 'ग्रैंड कमबैक' है.
इस 'कमबैक' के 3 मुख्य कारण:
- 'चिराग फैक्टर' का उलटा पड़ना: यह जदयू के कमबैक का सबसे बड़ा और दिलचस्प कारण है. 2020 में, चिराग पासवान की लोजपा एनडीए से अलग होकर लड़ी थी और उसने मुख्य रूप से जदयू की सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे थे 25. विश्लेषकों का मानना है कि चिराग ने तब "जदयू का वोट काटा" था, जिससे जदयू की सीटें 71 (2015) से घटकर 43 (2020) रह गईं. लेकिन 2025 में, पासा पलट गया. चिराग पासवान एनडीए के अंदर थे. इसका मतलब हुआ कि लोजपा का समर्पित वोट बैंक एनडीए के उम्मीदवारों (जिसमें जदयू भी शामिल थी) को ट्रांसफर हुआ. जो चिराग 2020 में 'वोटकटवा' (Vote-Cutter) साबित हुए थे 13, वही 2025 में जदयू के लिए 'वोट-खींचने' वाले साथी बन गए 21.
- नीतीश के 'साइलेंट' वोटर: यह नीतीश कुमार की अपनी ताकत है. उनकी कई योजनाएँ, जैसे 'जीविका', शराबबंदी, और पंचायतों में 50% महिला आरक्षण, ने महिला मतदाताओं का एक ऐसा 'साइलेंट' और समर्पित वोट बैंक तैयार किया है, जो सिर्फ नीतीश के नाम पर वोट करता है. इन महिलाओं ने इस बार भी जमकर वोट दिया और यह नीतीश की "सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी" साबित हुई.
- प्रशांत किशोर (PK) का 'बैकफायर': चुनाव से पहले, नीतीश कुमार के पूर्व सहयोगी और जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने सार्वजनिक रूप से दावा किया था कि जदयू 25 सीटें भी पार नहीं कर पाएगी. इन दावों ने जदयू के ज़मीनी कार्यकर्ताओं और समर्थकों को "नाराज" और "ऊर्जावान" कर दिया. नतीजतन, जदयू के कोर वोटर ने पीके को गलत साबित करने के लिए और ज़्यादा आक्रामक रूप से मतदान किया.
तालिका 2: जदयू का यू-टर्न: 2020 बनाम 2025
| वर्ष | गठबंधन स्थिति | लड़ी गईं सीटें | जीती गईं सीटें | स्ट्राइक रेट (%) |
| 2020 | NDA में (LJP बाहर से लड़ी) | 115 | 43 | 37.4% |
| 2025 | NDA में (LJP साथ) | 101 | 82 | 81.2% |
प्रदर्शन का असली मतलब: 'राजनीतिक जीवनदान'
2020 के नतीजों (43 सीटें) को देखकर कई राजनीतिक विश्लेषकों और प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार को 'खत्म' मान लिया था. लेकिन 2025 के 81% स्ट्राइक रेट ने साबित कर दिया कि 2020 का परिणाम एक 'छलावा' था, जो नीतीश की कमजोरी नहीं, बल्कि 'गठबंधन की दरार' को दर्शाता था. 2025 के नतीजे बताते हैं कि नीतीश का 'सुशासन' का ब्रांड और उनका 'लाभार्थी' वोट बैंक अभी भी कायम है.
जदयू का 80% स्ट्राइक रेट नीतीश कुमार के लिए 'राजनीतिक जीवनदान' है. इसने उन्हें बीजेपी के 'सबसे बड़ी पार्टी' होने के बावजूद मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार दिया है. कल्पना कीजिए कि अगर बीजेपी 90% स्ट्राइक रेट लाती और जदयू 40-50% पर सिमट जाती, तो एनडीए के जीतने के बाद भी नीतीश कुमार पर पद छोड़ने का भारी दबाव होता. लेकिन 81.2% का स्ट्राइक रेट (जो बीजेपी के 90.1% के बहुत करीब है) यह साबित करता है कि जदयू ने भी गठबंधन में बराबर की मेहनत की और जीत दिलाई. इस स्ट्राइक रेट ने नीतीश को 'मजबूर मुख्यमंत्री' से 'मजबूत सहयोगी' बना दिया है.
लोजपा-आरवी (LJP-RV): 70% स्ट्राइक रेट और 'किंगमेकर' बने चिराग
आँकड़ों का आईना
इस चुनाव के 'सरप्राइज़ पैकेज' और असली 'किंगमेकर' बनकर उभरे हैं चिराग पासवान. उनकी पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), ने एनडीए के तहत सिर्फ 29 सीटों पर चुनाव लड़ा और उनमें से 22 सीटों पर शानदार जीत हासिल की.
स्ट्राइक रेट का सच: 70% से भी बेहतर
29 सीटों पर लड़कर 22 सीटें जीतने का मतलब है $75.8\%$ का स्ट्राइक रेट. यह आँकड़ा उपयोगकर्ता के 70% के अनुमान से भी बेहतर है. यह एनडीए के तीनों सहयोगियों में लगभग बराबर की मारक क्षमता को दिखाता है.
2020 से 2025 का सफर: 'शून्य' से 'शिखर' तक
चिराग पासवान का यह प्रदर्शन इसलिए भी खास है क्योंकि 2020 में उन्होंने 137 सीटों पर अकेले लड़कर सिर्फ 1 सीट जीती थी. वहाँ से लेकर 2025 में 29 सीटों पर लड़कर 22 सीटें जीतने तक, चिराग ने खुद को 'खत्म' होने से 'किंगमेकर' बनने तक का सफर तय किया है.
इस प्रदर्शन का महत्व:
- खुद को किया साबित: अपने पिता रामविलास पासवान के निधन और पार्टी में टूट के बाद, चिराग ने यह साबित कर दिया है कि वह न केवल अपने पिता के वोट बैंक के असली वारिस हैं, बल्कि उनके पास अपनी राजनीतिक समझ और रणनीति भी है.
- 'किंगमेकर' से 'रणनीतिक साझेदार': 22 विधायकों के साथ, चिराग पासवान अब सिर्फ एक छोटे सहयोगी नहीं हैं. वह एनडीए के भीतर एक 'प्रमुख खिलाड़ी' और 'रणनीतिक साझेदार' बन गए हैं.
- कुशल रणनीति: कम सीटों (29) पर लड़ना और उन्हें अधिकतम (75%) में बदलना एक स्मार्ट रणनीति थी, जिसने उनकी राजनीतिक पूंजी को कई गुना बढ़ा दिया है.
प्रदर्शन का असली मतलब: 'सबसे बड़े लाभार्थी' और 'बैलेंसिंग फैक्टर'
चिराग पासवान 2025 चुनाव के 'सबसे बड़े लाभार्थी' हैं. बीजेपी को 'सबसे बड़ी पार्टी' का टैग मिला और जदयू को 'सीएम की कुर्सी'. लेकिन चिराग को 'राजनीतिक पुनर्जन्म' मिला है. 2020 में उनका करियर लगभग खत्म माना जा रहा था, लेकिन 2025 में, लोकसभा में $100\%$ स्ट्राइक रेट (5/5 सीटें) के बाद अब विधानसभा में 75% स्ट्राइक रेट के साथ, उन्होंने खुद को बिहार की राजनीति के तीसरे ध्रुव के रूप में स्थापित कर दिया है.
चिराग का 75% स्ट्राइक रेट बिहार एनडीए के 'आंतरिक सत्ता संतुलन' को मौलिक रूप से बदल देता है. 2020 तक, बिहार एनडीए का मतलब सिर्फ बीजेपी + जदयू था. अब, यह बीजेपी + जदयू + लोजपा (आरवी) है. 22 विधायकों के साथ, चिराग पासवान अब सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालयों और फैसलों में मोलभाव (bargain) करने की स्थिति में हैं. वह बीजेपी और जदयू के बीच एक 'बैलेंसिंग फैक्टर' के रूप में काम कर सकते हैं.
विपक्ष का 'स्ट्राइक रेट' ज़मीन पर क्यों: महागठबंधन और जन सुराज का पतन
एनडीए की जीत का दूसरा और अहम पहलू है विपक्ष की करारी हार. एनडीए का 90-80-70 का शानदार स्ट्राइक रेट और भी ज़्यादा प्रभावशाली इसलिए दिखता है, क्योंकि विपक्ष का स्ट्राइक रेट दहाई के आँकड़े तक भी मुश्किल से पहुँचा.
राजद (RJD) का निराशाजनक प्रदर्शन
तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने महागठबंधन में 'बड़े भाई' की भूमिका निभाते हुए 143 सीटों पर चुनाव लड़ा. लेकिन पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा. रुझानों में राजद 25 से 36 सीटों के बीच सिमटती दिखी.
- राजद का स्ट्राइक रेट: लगभग 17% से 25%.
- यह हार इतनी बड़ी थी कि खुद राजद के नेता तेजस्वी यादव अपनी पारंपरिक राघोपुर सीट पर बीजेपी के सतीश कुमार से पीछे चलते दिखे और उनके भाई तेज प्रताप यादव भी महुआ सीट से पीछे रहे.
कांग्रेस (Congress) - 'गठबंधन की सबसे कमज़ोर कड़ी'
अगर राजद का प्रदर्शन खराब था, तो कांग्रेस का प्रदर्शन 'विनाशकारी' था.
- कांग्रेस ने 61 सीटों पर चुनाव लड़ा.
- जीती/बढ़त: सिर्फ 4 से 6 सीटें.
- कांग्रेस का स्ट्राइक रेट: 10% से भी कम.
- कांग्रेस बिहार में गठबंधन पर 'बोझ' साबित हुई. पार्टी का "वोट चोरी" का राष्ट्रीय नैरेटिव और राहुल गांधी की यात्राएँ 4 बिहार के स्थानीय मतदाताओं से जुड़ नहीं पाईं.
जन सुराज (Jan Suraaj) का 'शून्य' स्ट्राइक रेट
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (JSP), जिसने पूरे राज्य में बड़े-बड़े दावे किए थे, इस चुनाव में अपना खाता भी नहीं खोल पाई. उनका स्ट्राइक रेट 'शून्य' रहा.
तालिका 3: 2025 का महा-मुकाबला: किसकी कितनी मारक क्षमता? (NDA vs MGB)
(स्रोत: 3)
| गठबंधन | पार्टी | लड़ी गईं सीटें | जीती/बढ़त | स्ट्राइक रेट (%) |
| NDA | बीजेपी (BJP) | 101 | 91 | 90.1% |
| NDA | जदयू (JDU) | 101 | 82 | 81.2% |
| NDA | लोजपा (LJP-RV) | 29 | 22 | 75.8% |
| MGB | राजद (RJD) | 143 | 25 | 17.5% |
| MGB | कांग्रेस (Congress) | 61 | 4 | 6.5% |
यह टेबल साफ दिखाती है कि यह चुनाव 'रणनीतिक अदूरदर्शिता' की भेंट चढ़ गया. राजद का 143 सीटों पर लड़ना और सिर्फ 17.5% जीतना दिखाता है कि उन्होंने अपनी ताकत को बहुत ज़्यादा आँका और अपने संसाधनों को 100 से ज़्यादा सीटों पर बर्बाद कर दिया. इसी तरह, कांग्रेस को 61 सीटें देना एक बड़ी भूल थी. एनडीए ने 'सर्जिकल' रणनीति अपनाई, जबकि महागठबंधन ने 'ब्लाइंड' रणनीति.
विश्लेषण: बिहार की नई सरकार में 'पावर-बैलेंस' पर 90-80-70 का असर
यह 90%, 80% और 75% का स्ट्राइक रेट सिर्फ आँकड़े नहीं हैं; यह बिहार की नई सरकार का 'ब्लूप्रिंट' हैं. यह तय करेगा कि अगले पाँच साल सत्ता का संतुलन कैसा रहेगा.
'बड़ा भाई' अब बीजेपी है
91 सीटों और $90\%$ स्ट्राइक रेट के साथ, बीजेपी अब आधिकारिक तौर पर बिहार एनडीए की 'बड़ा भाई' (Big Brother) है. 2020 का 'बड़े-छोटे भाई का चक्कर' अब हमेशा के लिए खत्म हो गया है.
चिराग का 'X-फैक्टर'
22 विधायकों और 75% स्ट्राइक रेट के साथ, चिराग पासवान अब सत्ता के 'तीसरे स्तंभ' हैं. वह अब सिर्फ 'साथ' नहीं हैं, बल्कि सरकार चलाने के लिए 'ज़रूरी'हैं.
नई सरकार का समीकरण: 'चेक एंड बैलेंस'
यह 2020 की 'बीजेपी + कमज़ोर जदयू' वाली सरकार नहीं होगी.
यह 2025 की 'मज़बूत बीजेपी (91) + मज़बूत जदयू (82) + नया X-फैक्टर लोजपा (22)' वाली सरकार होगी.
90-80-70 के इस स्ट्राइक रेट ने बिहार एनडीए में एक 'चेक एंड बैलेंस' (Checks and Balances) का सिस्टम बना दिया है, जो 2020 में गायब था. 2020 में, बीजेपी (74) के पास जदयू (43) पर भारी बढ़त थी, जिससे गठबंधन 'असंतुलित' था. 2025 में, बीजेपी (91) और जदयू (82) लगभग बराबर हैं. यह 'बराबरी' ही स्थिरता लाएगी. कोई एक पार्टी (बीजेपी) दूसरी पार्टी (जदयू) पर हावी नहीं हो सकती, क्योंकि जदयू का प्रदर्शन भी शानदार (81%) रहा है.
सरकार का असली 'रिमोट कंट्रोल' अब किसी एक पार्टी के पास नहीं, बल्कि 'एनडीए की त्रिमूर्ति' (बीजेपी-जदयू-लोजपा) के पास सामूहिक रूप से होगा. चिराग पासवान का 75% स्ट्राइक रेट उन्हें एक 'स्विंग' भूमिका देता है. 22 विधायक यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त हैं कि कैबिनेट में उन्हें महत्वपूर्ण हिस्सेदारी मिले.
बीजेपी को अपनी 'बड़ा भाई' की हैसियत को लागू करने के लिए जदयू के 82 विधायकों की ज़रूरत होगी, और जदयू को अपनी स्वायत्तता बनाए रखने के लिए बीजेपी के 91 विधायकों की. और इन दोनों को सुचारू रूप से काम करने के लिए चिराग के 22 विधायकों के समर्थन की ज़रूरत होगी. यह एक-दूसरे पर निर्भरता है, जो मजबूर नहीं, बल्कि 'मज़बूत' सरकार बनाएगी.
बिहार के भविष्य के लिए इस 'कुशल जनादेश' का मतलब
बिहार 2025 का जनादेश सिर्फ 'प्रचंड' नहीं था; यह 'कुशल'था. यह जीत उन पार्टियों को मिली जिन्होंने अपनी ऊर्जा और संसाधनों का सबसे स्मार्ट तरीके से इस्तेमाल किया.
- 90% (बीजेपी): इसका मतलब है कि बीजेपी ने बिहार में अपनी ज़मीन तैयार कर ली है और वह अब गठबंधन की सबसे मज़बूत कड़ी है, जो सरकार की दिशा तय करेगी.
- 80% (जदयू): इसका मतलब है कि नीतीश कुमार का 'सुशासन' और 'महिला वोट बैंक' का जादू अभी खत्म नहीं हुआ है; 2020 सिर्फ एक 'दुर्घटना' थी. वह सम्मान के साथ मुख्यमंत्री बने रहेंगे.
- 75% (लोजपा): इसका मतलब है कि बिहार की राजनीति में एक नए, युवा और 'कुशल' नेता (चिराग पासवान) का उदय हुआ है, जो भविष्य की राजनीति को आकार देगा और सत्ता में अहम हिस्सेदारी रखेगा.
महागठबंधन (राजद+कांग्रेस) के लिए सबक साफ है: सिर्फ 'ज़्यादा सीटों' पर लड़ने से चुनाव नहीं जीता जाता, बल्कि 'सही सीटों' पर 'सही स्ट्राइक रेट' से जीता जाता है.
अंत में, बिहार की नई एनडीए सरकार का मतलब है- 'निरंतरता, लेकिन नए शक्ति संतुलन के साथ'. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे, लेकिन यह सरकार 2020 की तुलना में ज़्यादा संतुलित, ज़्यादा जवाबदेह और तीन मज़बूत स्तंभों पर टिकी होगी.













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