बदलते सामाजिक परिवेश में भारतीय नेताओं के भाव-व्यवहार काफी कुछ बदले हुए दिखते हैं. एक समय था, जब क्षेत्र, समाज व देश का प्रतिनिधित्व करनेवाले नेता लोगों के लिए प्रेरणास्रोत होते थे. लेकिन वक्त की हालात ऐसे बने कि आज कोई भी नेता किसी का आदर्श बनने को तैयार नहीं है. सत्ता के लिए वे साम-दाम-दंड-भेद सारे रास्ते अपनाने के लिए तैयार रहते हैं. वरना एक समय था जब राजनीति का मतलब सिर्फ सत्ता हासिल करना नहीं, बल्कि अपने व्यक्तिगत सामर्थ्य जनता का दिल जीतना होता था. इस दिशा में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) सिर्फ मिसाल ही नहीं, बल्कि बेमिसाल थे. त्याग की प्रतिमूर्ति, संवेदनशील कवि, हाजिर जवाब, प्रखर वक्ता, उदार व्यक्तित्व, हिंदी प्रेम, अपने-पराये का भेद से ऊपर, अपनी बात बेबाक कहने का साहस दिखानेवाला... एक व्यक्ति में इतनी सारी खूबियां कम ही दिखेंगी. लेकिन अटल जी यहां अपवाद हैं. आइये देखें, इस एक नाम के विभिन्न आयाम....
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) से लेकर वर्तमान में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) तक देश ने कई प्रधानमंत्रियों ने भारत (India) का नेतृत्व किया. स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व के इतने सारे पहलू थे, कि वे कभी भी प्रधानमंत्री पद की मोहताज नहीं रहे. इस बात का एहसास वाजपेयी ने तब भी कराया जब पहली बार प्रधानमंत्री बने और बाद में भी - 2004 में एनडीए (NDA) की चुनाव हार को भी वाजपेयी ने 'भारत की जीत' बताया था. जवाहरलाल नेहरू से लेकर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक जिस किसी भी प्रधानमंत्री के 'मन की बात' की बात पर गौर फरमाया जाये तो किसी न किसी बात पर आम राय यही बनती है - वाजपेयी जैसा कोई नहीं! यह भी पढ़ें- ये है पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का परिवार, जानें कौन है उनकी दत्तक पुत्री
और यही वजह है कि लंबे अरसे तक विपक्ष के नेता, अरसे तक के एकांतवास में भी रहे वाजपेयी देश की राजनीति के प्रसंग-पटल से कभी ओझल नहीं हुए - क्योंकि हर एक दौर में वाजपेयी का होना जरूरी होता है!
अपनी भाषा से प्रेम
एक कवि और साहित्यकार होने के नाते पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटलबिहारी वाजपेयी की हिंदी बहुत अच्छी थी. हिंदी भाषा के प्रति प्रेम ने इसे और खूबसूरत बना दिया. उन्होंने हिंदी को जितना विस्तार दिया इससे पूर्व किसी भी नेता ने ऐसा नहीं किया. साल 1977 में अटल जी जनता सरकार में विदेश मंत्री थे. संयुक्त राष्ट्र संघ में जब उन्होंने अंग्रेजी भाषण की परंपरा को तोड़ते हुए हिंदी में अपना भाषण दिया तो वहां उपस्थित लोग हैरान-परेशान रह गये. लेकिन भाषण के अंत में जब लोगों ने खड़े होकर तालियां बजानी शुरू की, तब अंग्रेजदां भारतीयों को हिंदी की अहमियत समझ में आयी. इसके बाद भी कई बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर अटल जी ने दुनिया को हिंदी में संबोधित किया. उसके बाद सुषमा स्वराज, नरेंद्र मोदी ने भी विदेशों में हिंदी की अहमियत दिखाई.
कुशल वक्ता
अटल जी को शब्दों की जादुगरी खूब आती थी, यह कला उन्हें उनके पिताजी से विरासत में मिली थी. जो स्वयं भी बहुत अच्छे वक्ता थे, इसके अलावा स्कूल-कॉलेज के दिनों में भी भाषण-डिबेट के जरिए उन्होंने अपनी वक्ता शैली को मांजा-संवारा. यह उनकी वाक्य संरचना का ही जादू होता था कि विरोधी भी उनकी तर्कों के कायल होते थे. एक बार साल 1994 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल की नुमाइंदगी अटल जी को सौंपी थी. किसी सरकार का विपक्षी नेता पर इस हद तक भरोसे को पूरी दुनिया में आश्चर्य से देखा गया था. अटल जी ने इस भरोसे को टूटने नहीं दिया.
अपने-पराये का भेद नहीं करते थे
अटल जी दिल की बात बेबाक कहते थे. अपनी बात रखते समय अपने-पराए का भेद किए बिना सच को सच की तरह प्रस्तुत करते थे. गुजरात दंगों के समय मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को उन्होंने एक संदेश दिया था कि वह राजधर्म का पालन करें. उनके इस संदेश को मोदी जी आज भी अपने लिए मील का पत्थर मानते हैं. अटल जी के कहने का आशय स्पष्ट था कि राजा के लिए, शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं रखा जाना चाहिए. न धर्म के आधार पर, ना जन्म के आधार पर, ना जाति के आधार पर और ना ही संप्रदाय के आधार पर. आरएसएस के प्रति नकारात्मक रवैया रखने वालों के लिए यह अटल जी का आइना ही तो था.
निर्भीक और साहसी
भारत में पहला परमाणु परीक्षण पोखरण में सन 1974 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुआ था. इस विस्फोट का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी बड़े देशों ने विरोध किया था. लेकिन 24 साल बाद जब अटल जी को अवसर मिला तो अंतर्राष्ट्रीय धमकियों को नजरंदाज करते हुए उसी पोखरण में एक के बाद एक पांच परमाणु विस्फोट किया. यह विस्फोट करके अटल जी ने अपना इरादा जाहिर कर दिया कि भारत दुनिया के किसी भी शक्ति के आगे घुटने नहीं टेकेगा. उन्होंने यह भी कहा कि भारत मजबूत होगा, तभी बढेगा, कोई रास्ते में आयेगा, तो उसे सबक सिखाने में हम सक्षम हैं.
उदारवादी सोच
अटल जी जिद्दी थे तो उदारता भी उनमें कम नहीं थी. अपने प्रधानमंत्रित्व काल में वह कश्मीर से लेकर पाकिस्तान तक के लिए बातचीत का सिलसिला शुरू किया था. दोस्ती निभाने के लिए उन्होंने हर संभव उदारता का परिचय दिया. यही नहीं एक बार जब कश्मीर में अलगाववादी तत्वों से बातचीत के लिए अटल जी तैयार हुए तो किसी ने उनसे पूछा था कि क्या बातचीत संविधान के दायरे में होगी? अटल जी ने तब दो टूक कहा था बातचीत इंसानियत के दायरे में होगी.
कवित्व हृदय
सच पूछिये तो अटल जी को विविध कलाओं में पिरोने में उनके कवित्व की खास भूमिका रही है. उनके दिल में एक नेता से कहीं ऊपर एक कवि राज करता था. उनकी कविताओं में भाषा का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता रहा है. हर पंक्तियां अपने आप में लाजवाब होती थीं, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं, कुछ कांटों से सज्जित जीवन, प्रखर प्यार से वंचित यौवन... संसद से लेकर शहर के चौकों तक बात करते-करते अक्सर वह अपनी कविताओं के प्रवाह में बह उठते थे.