सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि कर्मचारियों को प्रमोशन के लिए विचार करने का हक है, बशर्ते वे योग्यता की शर्तों को पूरा करते हों. कोर्ट ने कहा है कि किसी कर्मचारी को उच्च पद पर पदोन्नति के लिए विचार नहीं करने से उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है.
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि प्रमोशन के लिए विचार किए जाने का अधिकार कोर्ट द्वारा सिर्फ एक कानूनी अधिकार के रूप में ही नहीं बल्कि एक मौलिक अधिकार के रूप में भी माना गया है. हालाँकि, कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन का कोई मौलिक अधिकार नहीं है.
कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट के एक आदेश को रद्द कर दिया जिसमें बिहार विद्युत बोर्ड को 29 जुलाई, 1997 के बजाय 5 मार्च, 2003 से संयुक्त सचिव पद पर प्रमोशन के लिए धर्मदेव दास के मामले पर विचार करने का निर्देश दिया गया था. दास एक अवर सचिव थे और उन्होंने प्रस्ताव के अनुसार एक निश्चित समय अवधि पूरी कर ली थी.
पीठ ने जोर देकर कहा कि भले ही संबंधित पदों पर रिक्तियां थीं, लेकिन यह स्वतः ही प्रतिवादी के लिए उच्च पद पर पूर्वव्यापी प्रमोशन का दावा करने का कोई मूल्यवान अधिकार नहीं बनाता. कोर्ट ने कहा, "यह केवल तभी हुआ जब वास्तव में रिक्ति हुई, तभी प्रतिवादी को त्वरित प्रमोशन का लाभ दिया गया और वह भी निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से."
Promotion Effective From Date Of Grant, Not When Vacancy Is Created: Supreme Court |@DebbyJain #SupremeCourt https://t.co/k2ConkeGoR
— Live Law (@LiveLawIndia) July 24, 2024
अपनी अपील में, बोर्ड ने हाई कोर्ट के आदेश की वैधता पर सवाल उठाया और कहा कि पूर्व बिहार के विभाजन के बाद, संयुक्त सचिव पद छह से घटाकर तीन कर दिया गया था. बोर्ड ने कहा कि समय अवधि का मानदंड केवल निर्देशात्मक प्रकृति का था और इसे प्रतिवादी द्वारा प्रमोशन के लिए पात्रता का दावा करने के लिए वैधानिक नहीं माना जा सकता है.
कोर्ट ने इस दलील से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी तरह से उच्च पद पर नियुक्ति के लिए अधिकार को निहित अधिकार नहीं माना जा सकता. पीठ ने कहा, "कोई भी कर्मचारी केवल न्यूनतम योग्यता सेवा पूरी करने पर अगले उच्च पद पर पदोन्नत होने का दावा नहीं कर सकता. प्रस्ताव की ऐसी व्याख्या भ्रामक होगी और वास्तव में प्रमोशन के लिए विचार किए जाने के अधिकार के रूप में एक कर्मचारी के निहित अधिकार के स्थापित कानून को शून्य करने का परिणाम होगा."
कोर्ट ने जोर देकर कहा कि प्रमोशन के लिए विचार किए जाने के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में बढ़ावा देने के पीछे की भावना "रोजगार और राज्य के तहत किसी पद पर नियुक्ति के मामले में समान अवसर" के सिद्धांत में निहित है.
पीठ ने कहा, "प्रमोशन के लिए विचार किए जाने का अधिकार रोजगार और नियुक्ति में समान अवसर के अधिकार का एक पहलू है, इसे संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 (1) के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार के रूप में माना जाना होगा, लेकिन यह अधिकार कर्मचारी का अगले पद पर अनिवार्य रूप से पदोन्नत होने के लिए निहित अधिकार में नहीं बदल सकता, जब तक कि नियम स्पष्ट रूप से ऐसी स्थिति के लिए प्रदान नहीं करते."