नई दिल्ली: निर्भया गैंगरेप केस (Nirbhaya Gangrape Case) के चारों दोषियों में से एक अक्षय कुमार की रिव्यू पिटिशन पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बुधवार को सुबह 10.30 बजे सुनवाई होगी. इससे पहले दोषी अक्षय कुमार की रिव्यू पिटिशन पर मंगलवार को सुनवाई हुई थी. सीजेआई एसए बोबड़े (CJI SA Bobde) ने अक्षय सिंह की रिव्यू पिटिशन की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है. सीजेआई के एक रिश्तेदार वकील इस मामले में दोषी पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे हैं. अब जस्टिस भानुमति की अध्यक्षता वाली इस मामले की सुनवाई करेगी. पीठ के अन्य सदस्य जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस बोपन्ना हैं.
मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट रूम में निर्भया के माता-पिता भी मौजूद रहे. करीब दस मिनट की सुनवाई के बाद ही सुनवाई को बुधवार तक के लिए टाल दिया गया. दोषी अक्षय ने पुनर्विचार याचिका में सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा पर फिर से विचार करने की मांग की है. वहीं दूसरी ओर निर्भया के दोषियों को एक महीने के भीतर फांसी पर लटकाने की मांग वाली याचिका पर भी सुनवाई टाल दी गई.
रिव्यू पिटिशन पर SC में सुनवाई
Supreme Court (SC) to hear today the review petition filed by Akshay Kumar Singh, one of the convicts in the 2012 Delhi gang-rape case. SC will also hear the petition filed by Advocate Sanjeev Kumar, seeking immediate direction to execute the culprits at the earliest. pic.twitter.com/0ggLD6YHrK
— ANI (@ANI) December 18, 2019
अक्षय को ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था. सुप्रीम कोर्ट इसी साल 9 जुलाई को इस मामले के तीन और दोषियों मुकेश, पवन गुप्ता और विनय शर्मा की पुनर्विचार याचिका खारिज चुका है. चारों आरोपियों को 2017 में मौत की सजा सुनाई गई थी.
निर्भया गैंगरेप को 7 साल हुए पूरे
देश को झकझोर देने वाला निर्भया गैंगरेप केस 16 दिसंबर 2012 का है. 16 दिसंबर 2019 को इस घटना को सात साल पूरे हो चुके हैं. सात साल पहले 16 दिसंबर की रात दिल्ली में चलती बस में एक लड़की का बर्बरता से गैंगरेप किया गया. गैंगरेप के बाद निर्भया 13 दिनों तक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझती रही. जिंदगी से जंग करते-करते 29 दिसंबर को उसने दम तोड़ दिया था. 31 अगस्त 2013 को निर्भया के केस में आरोपी कोर्ट में दोषी साबित हुए थे.
चारों आरोपियों को दोषी मानकर उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी. वहीं, एक आरोपी ने ट्रायल के दौरान ही तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी. दिल्ली हाई कोर्ट ने फास्ट ट्रैक कोर्ट का फैसला मानते हुए आरोपियों की मौत की सजा को बरकरार रखा. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी मई 2017 में चारों आरोपियों की मौत की सजा को बरकरार रखा था. जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने रिव्यू पीटीशन को भी खारिज कर दिया था.