वाराणसी, 3 अप्रैल : बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की एक शोध टीम ने पाया है कि नीम के पेड़ का कंपोनेंट कैंसर से लड़ने में मदद कर सकता है. शोध दल ने टी-सेल लिंफोमा के खिलाफ निंबोलाइड (नीम के पेड़ का एक बायोएक्टिव घटक) की इन-व्रिटो और इन-विवो चिकित्सीय प्रभावकारिता की सूचना दी है. इसने हेमटोलॉजिकल विकृतियों के उपचार के लिए एक संभावित कैंसर विरोधी चिकित्सीय दवा के रूप में निंबोलाइड की उपयोगिता की पुरजोर वकालत की है.
बीएचयू के प्रवक्ता राजेश सिंह के मुताबिक, इस अध्ययन के नए निष्कर्ष एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'एनवायरनमेंटल टॉक्सिकोलॉजी' में दो भागों में प्रकाशित हुए हैं. अध्ययन शोध छात्र प्रदीप कुमार जायसवारा ने शोधकर्ता विशाल कुमार गुप्ता, राजन कुमार तिवारी और शिव गोविंद रावत के साथ किया था, और इसे यूजीसी स्टार्ट-अप रिसर्च ग्रांट द्वारा वित्त पोषित किया गया था. यह भी पढ़ें : Benefits of Camphor 2022: पूजा ही नहीं सेहत और सौंदर्य के लिए भी है लाभकारी कपूर! कपूर से ऐसे पायें आर्थिक समस्या से मुक्ति!
शोधकर्ताओं ने कहा कि नीम एक पारंपरिक औषधीय पेड़ है, जिसके फूलों और पत्तियों का व्यापक रूप से एंटी-परजीवी, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी- सहित कई औषधीय गुणों के कारण कई बीमारियों के इलाज के लिए पारंपरिक दवा के रूप में उपयोग किया जाता है. हाल ही में, नीम की पत्तियों और फूलों से पृथक एक बायोएक्टिव घटक, निंबोलाइड, और इसके औषधीय मूल्यों के पीछे महत्वपूर्ण अणुओं में से एक के रूप में पहचाना गया है. निंबोलाइड की ट्यूमर-विरोधी प्रभावकारिता का मूल्यांकन केवल कुछ कैंसर के खिलाफ किया गया है.