कुंभ की जैसे ही शुरुआत होती है नागा साधुओं का जमावड़ा लग जाता है. ये कप-कपाती ठंड में निर्वस्त्र, शरीर पर भभूत मलकर कुंभ में नाचते- गाते हुए दिखाई देते हैं. नागा साधु कौन हैं? कहां से आते हैं और कुंभ के बाद कहां चले जाते हैं ये किसी को भी नहीं पता है. इनकी जिंदगी बहुत ही कठिन है. नागा साधु बनने के लिए इन्हें किन-किन कठिन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है? कैसी होती है इनकी जिंदगी आइये हम आपको बताते हैं. नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन है, बहुत ही कम लोग इसे पार कर पाते हैं. जो भी व्यक्ति नागा साधु बनने जाता है सबसे पहले उसके पूरे बैगग्राउंड की जांच पड़ताल होती है. जब उस व्यक्ति के बारे में आखाड़े को भरोसा हो जाता है, उसके बाद ही उसकी असली परीक्षा की शुरुआत होती है. व्यक्ति के ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है. उसके बाद त्याग, तप, वैराग्य, ध्यान, संन्यास और धर्म की दीक्षा दी जाती है.
इस पूरी प्रक्रिया में 12 साल लग जाते हैं. इस दौरान व्यक्ति को अपने बाल मुंडवाकर अपना ही पिंड दान और श्राद्ध करना पड़ता है. जिसके बाद उनकी पूरी जिंदगी अखाड़े के लिए समर्पित हो जाती है. समाज और परिवार वालों के लिए वह व्यक्ति मर जाता है और सारी मोह पाया से मुक्त हो जाता है. 12 साल तप करने के बाद जब ये कुंभ में डुबकी लगाते हैं तब जाकर उनकी तपस्या पूरी होती है और वो पूरी तरह से नागा साधु बनते हैं.
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नागा साधु बनने के बाद उन्हें अपने पूरे शरीर पर शमशान की राख मलनी पड़ती है. मुर्दे की राख को शुद्ध करके शरीर पर लगाया जाता है. ज्यादातर नागा साधु हिमालय की पहाड़ियों, काशी, गुजरात, और उत्तराखंड की पहाड़ियों पर रहते हैं. ये भटकते रहते हैं. पेट भरने के लिए इन्हें सात घर से भीख मांगकर खाना पड़ता है. अगर सातों घरों से कुछ नहीं मिलता तो उन्हें भूखे रहना पड़ता है.
कुंभ में नागा साधु अपने- अपने अखाड़े की पेशवाई निकालते हैं. कुंभ में सबसे पहला स्नान भी नागा साधुओं का होता है. ये शिव के अलावा किसी भी देवता को नहीं मानते. नागा साधु शरीर पर भभूत, त्रिशूल, डमरू, तलवार, रुद्राक्ष, शंख, कुंडल, चिलम आदि के साथ दिखाई देते हैं.