नई दिल्ली, 8 दिसम्बर: किसानों और सरकार के बीच बुधवार को छठे दौर की बातचीत होने वाली है. इससे पहले किसानों के आह्वान पर देश भर में चल रहे 'भारत बंद' के बीच केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किशन रेड्डी (Kishan Reddy) ने मंगलवार को घोषणा की कि नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार "एमएसपी और मंडी अधिनियम (एपीएमसी अधिनियम)" के लिए तैयार है. मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार की पहली प्राथमिकता न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) है और वह आने वाले दिनों में मंडियों पर भी ध्यान केंद्रित करेगी. रेड्डी ने यह सुनिश्चित किया कि सरकार इस मुद्दे पर दो अलग-अलग मतों का पालन नहीं करती है और 13 दिनों से अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर विरोध कर रहे किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है.
रेड्डी ने कृषि भवन में आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "हम एमएसपी और मंडी अधिनियम के लिए तैयार हैं. ये दो बिंदु हमारी सरकार की प्राथमिकता है. हमारी सरकार की पहली प्राथमिकता एमएसपी है. हम आने वाले दिनों में मंडियों को भी चलाएंगे. इन मुद्दों पर कोई दो राय नहीं है."
कृषि कीमतों में किसी भी तेज गिरावट से कृषि उत्पादकों को राहत देने के लिए सरकार द्वारा एमएसपी एक बाजार हस्तक्षेप के तौर पर देखा जाता है, जो कि किसानों के लिए फसल का एक न्यूनतम मूल्य निर्धारित करके उन्हें राहत प्रदान करता है.
किसान ऐसा अंदेशा जता रहे हैं कि निजी मंडियों के आने के बाद एमएसपी लागू नहीं होगा. किसान कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम या मंडी अधिनियम में संशोधन की मांग कर रहे हैं. मंत्री ने किसानों द्वारा बुलाए गए देशव्यापी बंद के बीच कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) के साथ अपनी संक्षिप्त बैठक के बाद यह बात कही. बघेल सरकार की किसान हितेषी नीतियों का दिख रहा है असर, MSP पर उपज बेचने वालों की संख्या 94 प्रतिशत से ज्यादा
मंत्री ने सभी किसानों से आग्रह किया है कि वे अपने विरोध प्रदर्शन को समाप्त कर दें. उन्होंने किसानों को बातचीत के जरिए समाधान निकालने पर जोर देते हुए आश्वासन दिया कि मोदी सरकार एमएसपी और मंडी अधिनियम के मुद्दों को प्राथमिकता देगी. सरकार और किसानों के बीच पिछले पांच दौर की वार्ता के बाद कोई समाधान नहीं निकल सका है.
हजारों किसान अपनी बात पर अड़े हैं. उनका कहना है कि संसद के मानसून सत्र के दौरान सितंबर में पारित तीन 'किसान विरोधी' कानूनों को निरस्त किया जाना चाहिए. हालांकि, सरकार का कहना है कि ये कानून किसानों के हित में हैं और उससे वह समृद्ध होंगे.
इन कानूनों में संशोधन की सरकार की पेशकश को 40 किसान यूनियन नेताओं ने खारिज कर दिया है, जो 26 नवंबर से पांच प्रमुख मांगों के साथ दिल्ली से लगती पांच अलग-अलग सीमाओं पर बैठे हजारों किसानों की ओर से सरकार से बात कर रहे हैं.