कोलकाता: पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों ने सात महीने के एक बच्चे के पेट से 750 ग्राम वजनी एक दुर्लभ ट्यूमर को सफलतापूर्वक निकालकर उसे नई जिंदगी दी. यह बच्चा एक जन्मजात विसंगति फिटुस इन फिटु (एफआईएफ) से ग्रस्त था. यह बीमारी ऊतक (टिश्यू) से संबंधित है, जिसमें शरीर के अंदर एक भ्रूण जैसा ट्यूमर विकसित हो जाता है. विशेषज्ञों के अनुसार, एफआईएफ भारत में एक अत्यंत दुर्लभ घटना है. बच्चे का नाम अबीर मंडल है, जो समय से पहले (प्री-मेच्योर) पैदा हुआ था. उसके पेट में काफी सूजन था. जब वह दो साल का था, तो उसके पिता का इस पर ध्यान गया. कोलकाता में शुरुआती इलाज के बाद परिवार आगे के इलाज के लिए बेंगलुरू चला गया. बेंगलुरू में एक महीने के लंबे उपचार के बाद परिवार खुशी-खुशी कोलकाता वापस आ गया है. बेंगलुरू से कोलकाता तक परिवार के साथ आए बच्चे का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने प्रेस से मुलाकात की और इस दुर्लभ इलाज के बारे में बताया.
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के शांतिनिकेतन इलाके में रहने वाले बच्चे के पिता तन्मय और बिजिया मंडल कलाकार हैं.वह दीवार पर डिजाइन बनाने का काम करते हैं. तन्मय और बिजिया की छह साल पहले शादी हुई थी. मणिपाल अस्तपताल में पीडियाट्रिक सर्जन एवं यूरोलॉजिस्ट विभाग के प्रमुख डॉ. सी एन. राधाकृष्णन ने संवाददाताओं को बताया, "जब बिजिया गर्भवती थी तो उसने नियमित परीक्षण व स्कैन कराया, जिसमें बच्चे के शरीर में कोई दिक्कत नहीं पाई गई। गर्भावस्था के सातवें महीने में समय से पहले बच्चे का जन्म हुआ. जब अबीर दो महीने का था तो उसके पिता को उसके पेट में एक असामान्य सूजन का संदेह हुआ. उस समय कोलकाता के एक डॉक्टर को असामान्य ट्यूमर और जन्मजात विसंगति का पता चला." यह भी पढ़े: मुंह के बजाय टेस्टिकल्स में बढ़ रहा था लड़के का एक दांत, जानिए अजीब और दुर्लभ बीमारी टेराटोमा ट्यूमर के बारे में
बच्चे के माता-पिता उसे लेकर पिछले महीने बेंगलुरू पहुंचे। यहां डॉ. राधाकृष्णन ने उसकी जांच की तो वह यह जानकर दंग रह गए कि ट्यूमर हड्डियों सहित तरल व ठोस दोनों ही तत्वों से बना हुआ था. डॉ. ने बताया, "मैंने देखा कि पेट के अंदर तरल और ठोस दोनों तत्वों का मिश्रण था. इस तरह की स्थिति को टेराटोमस कहा जाता है. वे टिश्यू से बने हुए थे जो सामान्य तौर पर उस जगह पर मौजूद नहीं होते हैं. डॉक्टर ने बताया कि इस तरह के ट्यूमर को यह शरीर के बाकी अंगों से सावधानीपूर्वक निकालना था. उन्होंने बताया कि इस दौरान उन्हें एक तरल पदार्थ से भरी थैली मिली थी, जिसमें ठोस घटक भी मौजूद थे. राधाकृष्णन ने कहा कि यह किसी शिशु की तरह विकसित हो रहा था."ऑपरेशन के बाद अबीर सात से दस दिनों में ठीक होने लगा. उन्होंने कहा, "अब वह अपनी उम्र के किसी भी अन्य सामान्य बच्चे की तरह बिल्कुल ठीक है और बच्चे का अब सामान्य रूप से वजन भी बढ़ रहा है."