के एम करिअप्पा: आजाद भारत के पहले आर्मी चीफ, देश को तीन बार युद्ध में दिलाई थी जीत

आजादी के पश्चात 15 जनवरी 1949 को ब्रिटिश शासित सेना के अंतिम शीर्ष कमांडर जनरल रॉय फ्रांसिस बूचर ने करियप्पा को सेना की कमान सौंपी थी. इस पद के साथ ब्रिटिश सेना अधिकारी ने उन्हें दो लाख भारतीय सैनिकों की कमान भी सौंपी थी

के. एम. करिअप्पा

पिछले दिनों 70वें गणतंत्र दिवस की झांकी में भारतीय सैन्य क्षमता को देखकर पड़ोसी देश चीन की नींद उड़ गयी. ग्लोबल फायरपावर ने भी एक शोध के बाद माना कि भारत के पास दुनिया की चौथी सर्वाधिक सशक्त सेना है. रक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि इसका श्रेय काफी हद तक आजाद भारत के पहले सेना नायक के एम करिअप्पा को जाता है. जिन्होंने भारतीय सेना की सशक्त नींव रखी. संयोगवश आज देश उन्हीं के एम करिअप्पा का जन्म दिन मना रहा है. आखिर कौन हैं के एम करियप्पा और किस तरह से उन्होंने भारतीय सेना नेतृत्व किया.

के एम करिअप्पा (KM Cariappa) का जन्म 28 जनवरी 1899 में कर्नाटक के कोडाइगू के मदिकेरी गांव में हुआ था. पिता कोडंडेरा माडिकेरी राजस्व अधिकारी के पद पर कार्यरत थे. माडिकेरी के सेंट्रल हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात करियप्पा ने 1917 में मद्रास (आज का चेन्नई) के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया. वह बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्तित्व थे. स्कूल के दिनों में वह हॉकी, टेनिस और क्रिकेट के भी अच्छे खिलाड़ी थे. पढ़ाई पूरी करने के पश्चात करिअप्पा प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के तुरंत पश्चात ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हो गये.

कमान संभालते ही पाकिस्तान को धूल चटाया

आजादी के पश्चात 15 जनवरी 1949 को ब्रिटिश शासित सेना के अंतिम शीर्ष कमांडर जनरल रॉय फ्रांसिस बूचर ने करियप्पा को सेना की कमान सौंपी थी. इस पद के साथ ब्रिटिश सेना अधिकारी ने उन्हें दो लाख भारतीय सैनिकों की कमान भी सौंपी थी. गौरतलब है कि 15 जनवरी को देश ‘सेना दिवस’ के रूप में मनाता है. भारतीय सेना के कमांडेड इन चीफ (सी-इन-सी) के रूप में कार्यभार संभालने से पहले, करियप्पा भारतीय सेना के पूर्वी और पश्चिमी कमांड के कमांडर के रूप में भी कार्य कर चुके थे. 1947 में भारत-पाक युद्ध में उऩ्होंने भारतीय सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए देश को पहली जीत दिलायी थी. जनरल करियप्पा ने लगभग तीस सालों भारतीय सेना का नेतृत्व किया.

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सीने पर 5 स्टार टांकने वाले करियप्पा पहले सेना अधिकारी थे, जिन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया. उनके अलावा यह उपाधि केवल जनरल मानेक शॉ को मिली थी. इसके पश्चात यह उपाधि हमेशा के लिए खत्म कर दी गयी. बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि 1953 में भारतीय सेना से अवकाश प्राप्त के पश्चात करिअप्पा 1954 से 1956 तक न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया में हाई कमिश्नर के रूप में भी कार्यरत रहे. वह पहले भारतीय हैं जिन्होंने यू के स्थित कैम्बर्ली के इंपीरियल डिफेंस कॉलेज में ट्रेनिंग हासिल किया. यूके सरकार ने उन्हें लेगिन ऑफ मेरी की उपाधि से भी अलंकृत किया. वर्तमान में सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने के. एम. करिअप्पा को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' देने की मांग की है. 15 मई 1993 के दिन बंगलुरु में 94 वर्ष की आयु में जनरल करियप्पा का देहांत हो गया.

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