12 साल की छोटी उम्र में किसी बच्चे के सपने क्या होंगे? खेल-मस्ती के साथ जिंदगी बिताना. लेकिन गुजरात (Gujarat) के सूरत की रहने वाली 12 साल की खुशी शाह (Khushi Shah) ने अपना बाकी जीवन संत के रूप में जीने का फैसला किया है. खुशी एक साधारण जीवन जीने के लिए पसंद करती है. खुशी आज सूरत में 'दीक्षा' लेगी जहां वह अपने परिवार के साथ रहती है. बुधवार को सूरत में एक समारोह आयोजित किया गया था, जिसके बाद आज खुशी जैन भिक्षु बनने के लिए 'दीक्षा' लेगी. खुशी ने 7 वीं कक्षा तक पढ़ाई की है और उनका मानना है कि उन्हें अब 'दीक्षा' लेने की जरूरत है.
बता दें कि अपने परिवार से दीक्षा लेने वाली खुशी अकेले इस रास्ते पर नहीं चली है. खुशी ने बताया कि जब वह छोटी थी तभी उसके परिवार ने 4 लोगों ने दीक्षा ग्रहण की. अपने फैसले के बारे में न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए खुशी ने कहा, "इस दुनिया में, आनंद थोड़े समय के लिए है और यह स्थायी नहीं है. मैं 12 साल की हूं मैं दीक्षा लेना चाहती हूं. "
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Surat: 12-year-old Khushi Shah to take 'diksha' today to become a monk; #visuals from celebrations held yesterday. #Gujarat pic.twitter.com/WR1Gyqqeuw
— ANI (@ANI) May 28, 2019
इससे पहले भी कई युवाओं ने जैन भिक्षु बनने के लिए आराम और एश्वर्य का त्याग कर चुके हैं. पिछले साल, एक 12 वर्षीय गुजराती लड़के ने जैन भिक्षु बनने के लिए पारिवारिक जीवन को त्याग दिया था. हीरा व्यापारी के पुत्र भव्य शाह 500 से अधिक जैन मुनियों और 7,000 लोगों की उपस्थिति में एक समारोह में संत बन गए थे.
दीक्षा के बाद व्यक्ति साधारण जीवन के लिए सांसारिक सुखों का त्याग करता है और भिक्षु बनने के बाद, वे अपने जीवन में सभी प्रकार के एश्वर्य का त्याग कर देते हैं. सफेद कपड़े पहनना, पैदल ही लंबी-लंबी दूरियां तय करना. भिक्षा में मिले हुए भोजन को ही साधारण सफेद वस्त्र पहनते हैं और भिक्षा के रूप में जो मिलता है उसे ही भोजन के रूप में लेते हैं. वे आंतरिक शांति को मजबूत करने में अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं. युवा भिक्षुओं को उचित मार्गदर्शन दिया जाता है जिसके द्वारा वे तपस्वी जीवन के तरीके सीखते हैं. अंतिम दीक्षा आम तौर पर शोभा यात्रा जैसे विभिन्न आयोजनों से पहले होती है.