नई दिल्ली: एलआईसी (LIC) पर फिलहाल बड़ा संकट मंडरा रहा है. जानकारी के अनुसार केन्द्र सरकार ने देश में सरकारी बैंकों के सामने खड़ी एनपीए (NPA- Non Performing Assets) की समस्या को निपटाने की नई कवायद शुरू की है. ज्ञात हो कि LIC एक ऐसा नाम है, जिस पर देश के 25 करोड़ से भी ज्यादा लोग भरोसा करते हैं. बीमा कारोबार में कई कंपनियां काम करती हैं, लेकिन 62 साल बाद भी सारी स्पर्धाओं के बावजूद LIC बीमा कारोबार में नंबर वन बनी हुई है. अब एलआईसी के कर्ज में डूबे आईडीबीआई बैंक को खरीदने की चर्चा चल रही है.
बता दें कि साल के शुरुआत में बैंकों को एनपीए से मुक्त कराने के लिए जनवरी में केन्द्र सरकार ने 2.1 लाख करोड़ रुपये के रीकैपेटलाइजेशन प्रोग्राम को मंजूरी दी. एलआईसी (LIC) में देश की अधिकांश जनता की जमा-पूंजी है और वह प्रतिवर्ष अपनी बचत से हजारों-लाखों रुपये निकालकर एलआईसी की पॉलिसी में डालता है. इस पैसे के सहारे उसका और उसके परिवार का भविष्य सुरक्षित रहता है. लेकिन अब केन्द्र एक सरकारी बैंक को बचाने की कवायद में इसे एलआईसी के हवाले करने जा रही है. इसका साफ मतलब है कि आप प्रतिवर्ष जो पैसा एलआईसी की पॉलिसी के लिए बतौर प्रीमियम जमा करते हैं अब उसका इस्तेमाल बैंक को डूबने से बचाने के लिए किया जाएगा.
मौजूदा समय में देश के 21 सरकारी बैंकों में शुमार IDBI बैंक में केन्द्र सरकार की 85 फीसदी हिस्सेदारी है. वित्त वर्ष 2018 के दौरान केन्द्र सरकार ने अपने रीकैपिटलाइजेशन प्रोग्राम के तहत बैंक की मदद करने के लिए 10,610 करोड़ रुपये डाला है. वहीं IDBI बैंक देश के बीमारू सरकारी बैंकों में सर्वाधिक एनपीए अनुपात वाला बैंक है.
बीते कुछ वर्षों के दौरान बैंकिंग सुधार के नाम पर केन्द्र सरकार ने बीमार पड़े सरकारी बैंकों में अपनी हिस्सेदारी को कम करने की रणनीति पर काम किया है. इस रणनीति के तहत IDBI से हिस्सेदारी कम करना केन्द्र सरकार के लिए सबसे आसान है क्योंकि IDBI बैंक नैशनलाइजेशन एक्ट के तहत नहीं आता और हिस्सेदारी कम करने में उसे किसी तरह की कानूनी अड़चन का सामना नहीं करना पडेगा.
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार इस प्रस्ताव पर इंश्योरेंस रेगुलेटर का दरवाजा खटखटा चुकी है. रेगुलेटर को शुक्रवार को इस सौदे पर फैसला लेना है.