Legal Rights Of Landlord-Tenant: मकान मालिक और किरायेदार ध्यान दें: ये 5 कानूनी अधिकार सबको पता होने चाहिए

Legal Rights for Every Landlord and Tenant in India: किराये का घर लेना या देना, दोनों ही बड़े फ़ैसले हैं. अक्सर सही जानकारी न होने की वजह से मकान मालिक और किरायेदार के बीच छोटे-छोटे झगड़े बड़ी समस्या बन जाते हैं. लेकिन अगर दोनों पक्षों को अपने-अपने कानूनी अधिकारों के बारे में पता हो, तो इन झगड़ों से आसानी से बचा जा सकता है.

कानून ने दोनों के लिए कुछ नियम और अधिकार तय किए हैं. आइए, समझते हैं वो 5 सबसे ज़रूरी बातें जो हर किरायेदार और मकान मालिक को पता होनी चाहिए.

1. रेंट एग्रीमेंट है सबसे ज़रूरी दस्तावेज़

किसी भी किरायेदारी का सबसे पहला और सबसे ज़रूरी कदम रेंट एग्रीमेंट (Rent Agreement) होता है. यह सिर्फ़ एक कागज़ नहीं, बल्कि एक कानूनी दस्तावेज़ है जो मकान मालिक और किरायेदार के रिश्ते की नींव रखता है.

  • क्यों है ज़रूरी? इसमें किराये की रकम, सिक्योरिटी डिपॉज़िट, किराया बढ़ाने की शर्त, किराये की अवधि और घर इस्तेमाल करने के नियम साफ़-साफ़ लिखे होते हैं. कोई भी पक्ष अपनी बात से मुकर नहीं सकता.
  • दोनों का अधिकार: मकान मालिक का अधिकार है कि वह एग्रीमेंट में घर के इस्तेमाल से जुड़े नियम (जैसे पालतू जानवर रखना या नहीं) लिखवाए. वहीं, किरायेदार का अधिकार है कि वह एग्रीमेंट में लिखी हर बात को ध्यान से पढ़े और असहमत होने पर उसमें बदलाव की मांग करे. हमेशा रजिस्टर्ड एग्रीमेंट ही करवाना चाहिए.

2. सिक्योरिटी डिपॉज़िट का नियम

सिक्योरिटी डिपॉज़िट (Security Deposit) लगभग हर किरायेदारी में लिया जाता है, लेकिन इसको लेकर नियम भी हैं.

  • मकान मालिक का अधिकार: मकान मालिक यह पैसा इसलिए लेता है ताकि अगर किरायेदार घर को कोई नुक़सान पहुमंचाए या बिना किराया दिए चला जाए, तो वह उस नुक़सान की भरपाई इस पैसे से कर सके.
  • किरायेदार का अधिकार: किरायेदार का यह अधिकार है कि घर खाली करते समय उसे डिपॉज़िट का पैसा वापस मिले. मकान मालिक नुक़सान की भरपाई के लिए वाजिब रकम काट सकता है, लेकिन उसे इसका हिसाब देना होगा. नए मॉडल किरायेदारी कानून (Model Tenancy Act) के तहत, मकान मालिक आमतौर पर 2 महीने के किराये से ज़्यादा डिपॉज़िट नहीं मांग सकते.

3. किराया बढ़ाना मनमाना नहीं हो सकता

किराया समय पर देना किरायेदार की ज़िम्मेदारी है, तो वहीं किराया मनमाने ढंग से बढ़ाना कानून के खिलाफ़ है.

  • मकान मालिक का अधिकार: मकान मालिक को समय पर पूरा किराया पाने का अधिकार है.
  • किरायेदार का अधिकार: मकान मालिक अचानक या जब चाहे तब किराया नहीं बढ़ा सकता. किराया कितना और कब बढ़ेगा, यह बात रेंट एग्रीमेंट में पहले से लिखी होनी चाहिए. अगर एग्रीमेंट में इसका ज़िक्र नहीं है, तो मकान मालिक किरायेदार को नोटिस दिए बिना किराया नहीं बढ़ा सकता.

4. घर खाली कराने का भी एक तरीका है

यह एक ऐसा मुद्दा है जिससे किरायेदार सबसे ज़्यादा डरते हैं. लेकिन कानून ने इस पर भी स्पष्ट नियम बनाए हैं.

  • मकान मालिक का अधिकार: अगर किरायेदार लगातार किराया नहीं दे रहा है, प्रॉपर्टी का गलत इस्तेमाल कर रहा है या एग्रीमेंट के नियमों को तोड़ रहा है, तो मकान मालिक उसे घर खाली करने के लिए कह सकता है.
  • किरायेदार का अधिकार: मकान मालिक अपनी मर्ज़ी से किरायेदार को जब चाहे तब घर से नहीं निकाल सकता. उसे पहले एक लिखित नोटिस देना पड़ता है. नोटिस की अवधि (आमतौर पर 15 दिन से 1 महीना) एग्रीमेंट में लिखी होती है. बिना वैलिड कारण और नोटिस के घर खाली कराना गैर-कानूनी है.

5. बुनियादी सुविधाएं और प्राइवेसी का हक़

एक बार घर किराये पर देने के बाद, मकान मालिक किरायेदार की प्राइवेसी में दखल नहीं दे सकता.

  • किरायेदार का अधिकार: किरायेदार को पानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं पाने का पूरा अधिकार है. मकान मालिक किसी भी विवाद के चलते इन सुविधाओं को बंद नहीं कर सकता. साथ ही, किरायेदार की प्राइवेसी (निजता) का सम्मान होना चाहिए.
  • मकान मालिक का अधिकार: मकान मालिक को अपनी प्रॉपर्टी की जांच करने का अधिकार है, लेकिन इसके लिए उसे किरायेदार को पहले से सूचित (Reasonable Notice) करना होगा. वह जब चाहे तब अचानक घर के अंदर नहीं आ सकता.

एक अच्छा मकान मालिक-किरायेदार का रिश्ता भरोसे और नियमों के पालन पर टिका होता है. एक लिखित और रजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट ज़्यादातर समस्याओं को शुरू होने से पहले ही खत्म कर देता है. इसलिए, चाहे आप मकान मालिक हों या किरायेदार, अपने अधिकारों को जानें और एक स्वस्थ और तनाव-मुक्त किरायेदारी का आनंद लें.