भारत के जंगल हो रहे कमजोर; IIT खड़गपुर की स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा

भारत के जंगलों को लेकर चौंकाने वाला सच सामने आया है. IIT खड़गपुर (IIT Kharagpur) की हालिया स्टडी बताती है कि जहां देश में ग्रीन कवर बढ़ने के दावे किए जा रहे हैं, वहीं असल में हमारे जंगलों की सेहत लगातार बिगड़ रही है.

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भारत के जंगलों को लेकर चौंकाने वाला सच सामने आया है. IIT खड़गपुर (IIT Kharagpur) की हालिया स्टडी बताती है कि जहां देश में ग्रीन कवर बढ़ने के दावे किए जा रहे हैं, वहीं असल में हमारे जंगलों की सेहत लगातार बिगड़ रही है. यह गिरावट न केवल पर्यावरणीय संतुलन के लिए खतरा है, बल्कि जलवायु लक्ष्यों को भी प्रभावित कर सकती है.

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IIT खड़गपुर के सेंटर फॉर ओशन, रिवर, एटमॉस्फियर एंड लैंड साइंसेज के प्रोफेसर जयरामनयन कुट्टिपुरथ (Jayanarayanan Kuttippurath) और शोधकर्ता राहुल कश्यप के नेतृत्व में हुए अध्ययन ने दिखाया कि 2010 से 2019 के बीच भारतीय जंगलों की फोटोसिंथेटिक एफिशिएंसी (Photosynthetic Efficiency) लगभग 5% गिर गई. इसका मतलब है कि जंगल अब कार्बन डाइऑक्साइड को पहले जितनी प्रभावी ढंग से सोख नहीं पा रहे हैं.

सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र: जैव-विविधता के हॉटस्पॉट खतरे में

स्टडी में पता चला कि पूर्वी हिमालय, वेस्टर्न घाट और इंडो-गैंगेटिक प्लेन्स जैसे जैव-विविधता से भरपूर क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. ये क्षेत्र पहले कार्बन अवशोषण के लिए जाने जाते थे, लेकिन अब इनकी कार्बन स्टोरेज क्षमता कम होती जा रही है. सिर्फ 16% जंगलों को ही उच्च गुणवत्ता वाला माना गया, जबकि अधिकांश जंगल जलवायु परिवर्तन, सूखे, वाइल्डफायर और लैंडस्लाइड्स के सामने कमजोर साबित हुए.

हरियाली का असली कारण: खेती, न कि जंगल

NASA और राष्ट्रीय रिपोर्ट्स में भारत को तेजी से ‘ग्रीनिंग’ करने वाला देश बताया गया है. लेकिन स्टडी का कहना है कि यह हरियाली प्राकृतिक जंगलों के कारण नहीं, बल्कि सिंचित खेती के विस्तार की वजह से है. गेहूं, धान और गन्ने जैसी फसलों ने सैटेलाइट तस्वीरों में हरियाली बढ़ाई है, पर यह वास्तविक जंगलों के घटते स्वास्थ्य को छुपा नहीं सकती.

जंगलों की गिरती सेहत के कारण

भविष्य के खतरे: अर्थव्यवस्था और जैव-विविधता पर असर

विशेषज्ञों के अनुसार, जंगलों का कमजोर होना सिर्फ पर्यावरण ही नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था और लोगों की आजीविका को भी प्रभावित करेगा. लकड़ी का उत्पादन घट सकता है, मार्केट अस्थिर हो सकती है, और जंगलों पर निर्भर समुदायों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है. साथ ही, जैव-विविधता का नुकसान कई प्रजातियों को विलुप्ति की कगार पर पहुंचा सकता है.

जंगलों को बचाना है जरूरी

प्रोफेसर कुट्टिपुरथ ने चेतावनी दी कि अगर तेज विकास, कृषि विस्तार और वनों की कटाई पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो भारत के जंगल ‘सवाना’ जैसे सूखे क्षेत्रों में बदल सकते हैं. विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि

यह स्टडी भारत के लिए एक चेतावनी है कि केवल सैटेलाइट तस्वीरों में बढ़ती हरियाली देखकर खुश होना पर्याप्त नहीं है. सच्ची हरियाली जंगलों की सेहत से आती है, और इसके लिए अब ठोस कदम उठाना बेहद जरूरी है. यदि समय रहते प्रयास नहीं किए गए, तो भारत के जंगलों की कमजोरी जलवायु संकट को और गहरा सकती है और 2070 तक नेट-जीरो एमिशन का लक्ष्य खतरे में पड़ सकता है.

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