कोरोना खत्म होने के बाद भारत की बदल सकती है किस्मत, चीन के नुकसान से मिल सकता है फायदा, दूर होगी रोजगार की चिंता
जीडीपी | प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: IANS)

नई दिल्ली: दुनियाभर में कोरोना वायरस (Coronavirus) के संक्रमण के कारण अर्थव्यवस्था (Economy) बुरी तरह से प्रभावित हुई है. दर्जनों देशों में उद्योग और कामकाज पूरी तरह से ठप्प पड़ा हुआ है. इन सबके बीच कोविड-19 महामारी के जनक चीन (China) से कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां पलायन करने पर विचार कर रही है. हालांकि चीन में हालात अब पहले से काफी बेहतर है. लेकिन तब भी चीन से कंपनियों का भरोसा उठ रहा है. ऐसे में भारत के पास इन कंपनियों को बुलाने का एक बड़ा मौका आया है. अगर सरकार इसमें सफल हुई तो चीन के नुकसान का भारत बखूबी फायदा उठा सकता है. परिणामस्वरुप कोरोना संकट के बाद भारत की किस्मत बदल सकती है और रोजगार की समस्या का भी समाधान हो सकता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया कि रिपोर्ट के मुताबिक भारत अपने पड़ोसी देश चीन से बाहर जाने वाले व्यवसायों को लुभाने के लिए यूरोपीय देश लक्ज़मबर्ग (Luxembourg) के आकार का लगभग दोगुनी जमीन उपलब्ध कराने की तैयारी कर रहा है. इस उद्देश्य के लिए अब तक देशभर में 461,589 हेक्टेयर क्षेत्र की पहचान की गई है. GDP में आई नरमी पर पीएम मोदी के प्रधान सचिव बोले- साल 2024 तक 5 हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का है लक्ष्य

रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में 115,131 हेक्टेयर मौजूदा औद्योगिक भूमि भी शामिल है. भारत में निवेश करने की इच्छुक कंपनियों के लिए भूमि सबसे बड़ी बाधाओं में से एक देखी गई है. कोरोना संकट के बीच US-चीन में फिर छिड़ सकता है ट्रेड वॉर, डोनाल्ड ट्रंप ने दी व्यापार सौदा रद्द करने की धमकी

सऊदी अरामको (Saudi Aramco) और पोस्को (Posco) जैसी दिग्गज कंपनियां भूमि अधिग्रहण में देरी को लेकर अपनी निराशा जाहिर कर चुकी हैं. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार कंपनियों की इस बाधा को दूर करने के राज्य सरकारों के साथ मिलकर योजना बना रही है.

उल्लेखनीय है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का करीब 15 प्रतिशत योगदान है. ऐसे में अगर अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारत में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाती है तो देश में रोजगार के मौके तेजी बढ़ेंगे. साथ ही साथ भारत की चीन पर निर्भरता को कम किया जा सकेगा और भारत को विनिर्माण का गढ़ बनाने में भी मदद मिलेगी.