केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अवैध रोहिंग्या मुस्लिम प्रवासियों को भारत में रहने और बसने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. न्यायपालिका अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वालों को शरणार्थी का दर्जा देने के लिए एक अलग श्रेणी बनाने के लिए संसद और कार्यपालिका के विधायी और नीतिगत डोमेन में प्रवेश नहीं कर सकती है.
सरकार ने कहा है कि भारत पहले ही पड़ोसी देश बांग्लादेश से बड़े पैमाने पर अवैध प्रवासन का सामना कर रहा है। इस अवैध प्रवासन का असर मुख्य रूप से भारत के सीमावर्ती राज्यों असम और पश्चिम बंगाल में देखने को मिल रहा है, जहाँ की जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल में बदलाव आया है. हलफनामे में यह भी कहा गया है कि रोहिंग्या मुसलमानों का भारत में अवैध प्रवास और निवास न केवल पूरी तरह से गैरकानूनी है, बल्कि इसके गंभीर सुरक्षा प्रभाव भी हो सकते हैं.
BIG ⚡️ ⚡️ Modi Govt clears its stand on Rohingyas to Supreme Court
illegal Rohingya muslim migrants have NO fundamental right to reside and settle in India.
India does not recognize the UNHCR refugee card, which some have secured to claim refugee status in the country.
The… pic.twitter.com/54qbCwDN8t
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) March 20, 2024
सरकार की चिंताएं
- अवैध प्रवासन से भारत की जनसांख्यिकी में बदलाव आ रहा है
- यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है
- अवैध प्रवासियों का शोषण हो सकता है
- इससे सामाजिक तनाव पैदा हो सकता है
सरकार ने एक हलफनामे में कहा कि एक विदेशी को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत केवल जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है और उसे देश में निवास करने और बसने का अधिकार नहीं है. यह अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को प्राप्त है. सरकार ने कहा है कि भारत यूएनएचसीआर शरणार्थी कार्डों को मान्यता नहीं देता है, जिसे कुछ रोहिंग्या मुसलमानों ने शरणार्थी स्थिति का दावा करने के आधार के रूप में उपयोग करने के लिए सुरक्षित किया है.