नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय सेना में पुरुषों को नर्स के रूप में नियुक्त करने से रोकने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की खंडपीठ ने पूछा कि अगर दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन में एक महिला को तैनात किया जा सकता है तो सेना में नर्स के पद पर पुरुषों की भर्ती क्यों नहीं की जा सकती. कोर्ट ने सैन्य नर्सिंग सेवा अध्यादेश 1943 और सैन्य नर्सिंग सेवा (भारत) नियम 1944 को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह सवाल उठाया कि वे इस हद तक प्रावधान करते हैं कि केवल महिलाओं को भारतीय सैन्य नर्सिंग सेवा में नियुक्त किया जा सकता है. HC on Swiggy, Zomato Food: स्विगी, जोमैटो से ऑर्डर करने के बजाय बच्चों को मां के हाथ के बना खाना दें.
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी केंद्र सरकार की ओर से पेश हुईं और कोर्ट को बताया कि सरकार ने मामले में अपनी लिखित दलीलें दाखिल कर दी हैं. भाटी ने कहा कि सेना में प्रथाएं लंबे समय से चली आ रही परंपराओं पर आधारित हैं. उन्होंने कहा कि आज ही सरकार महिलाओं को आरक्षण देने के लिए कानून लेकर आई है.
इस पर कोर्ट ने कहा कि एक तरफ संसद में आप महिलाओं को सशक्त बनाने की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ आप कह रहे हैं कि पुरुष नर्स के रूप में शामिल नहीं हो सकते... अगर एक महिला को सियाचिन में तैनात किया जा सकता है, तो एक पुरुष आर एंड आर में काम कर सकता है."
इंडियन प्रोफेशनल नर्सेज एसोसिएशन (याचिकाकर्ता) ने 2018 में उन नियमों को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का रुख किया, जिनमें कहा गया था कि केवल महिलाएं ही सैन्य नर्सिंग सेवा में शामिल हो सकती हैं. याचिकाकर्ता का मामला यह है कि नर्सिंग को केवल महिलाओं का पेशा होने का यह रूढ़िवादी दृष्टिकोण उस पुराने दृष्टिकोण पर आधारित है जब केवल महिलाओं को नर्स के रूप में प्रशिक्षित किया जाता था. हालांकि, अब ऐसे कई हजार पुरुष हैं जिन्होंने इस पेशे में प्रशिक्षण और योग्यता प्राप्त की है.