मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक अनोखे केस में साल 2020 में दर्ज एक FIR को खारिज करते हुए यह अहम टिप्पणी की है कि मानव दांतों को ‘खतरनाक हथियार’ नहीं माना जा सकता. यह मामला एक महिला द्वारा अपने ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज करवाया गया था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी ननद ने झगड़े के दौरान उन्हें काट लिया था.
पीड़िता ने अपनी शिकायत में कहा था कि ससुराल में किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ, और उसी दौरान उनकी ननद ने उन्हें दांत से काटा, जिससे चोट लगी. इस पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 324 (खतरनाक हथियार से चोट पहुंचाना) समेत अन्य धाराओं के तहत केस दर्ज किया.
"दांत खतरनाक हथियार नहीं"
जस्टिस विभा कंकणवाड़ी और संजय देशमुख की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि मानव दांत स्वाभाविक अंग हैं, न कि कोई घातक हथियार. उन्होंने कहा कि “धारा 324 का इस्तेमाल तब किया जा सकता है जब कोई चोट किसी ऐसे औजार या हथियार से दी गई हो, जो मृत्यु या गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है. इस मामले में केवल दांत के निशान पाए गए हैं, जो साधारण चोट की श्रेणी में आते हैं.”
मेडिकल रिपोर्ट बनी फैसले की बुनियाद
कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता के मेडिकल सर्टिफिकेट में सिर्फ दांत के निशान पाए गए, गंभीर चोट या जानलेवा हमले का कोई संकेत नहीं था. इसलिए इस मामले को चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा.
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि शिकायतकर्ता और आरोपियों के बीच संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा है. इस पृष्ठभूमि में यह भी संभव है कि FIR व्यक्तिगत दुश्मनी या दबाव बनाने के लिए दर्ज करवाई गई हो.
FIR रद्द
इस फैसले में हाईकोर्ट ने आरोपियों की याचिका स्वीकार करते हुए FIR को पूरी तरह रद्द कर दिया. कोर्ट ने कहा कि जब अपराध की कानूनी धारा (धारा 324) ही लागू नहीं होती, तो आरोपियों को कोर्ट में पेश होना और ट्रायल का सामना करना, न्याय का उल्लंघन होगा.













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