नई दिल्ली: सम्पूर्ण विश्व आज एक जुट होकर ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ (International Yoga Day) मना रहा है. इस बार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस-2021 की थीम ‘योगा फॉर वेलनेस’ (Yoga For Wellness) रखी गई है. इस बात में कोई दो राय नहीं कि योग को विश्व स्तर पर मान्यता दिलाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का अहम योगदान रहा है. योग का संदेश आज इस आधुनिक दुनिया में उनके प्रयासों से ही पहुंचा है. यही कारण है कि आज लोग योग से तेजी से जुड़ रहे हैं. अब पूरी दुनिया में योग के लिए अलग-अलग स्तर पर कार्य हो रहे है. ऐसे में इसे ‘योग से सहयोग तक’ की संज्ञा देना गलत नहीं होगा. International Yoga Day: 18,000 फीट की ऊंचाई पर ITBP के जवानों ने किया योग
कोरोना के महासंकट में योग कितना जरूरी ?
यह बेहद जरूरी है कि हम सभी कोरोना के इस महासंकट के बीच शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करने पर जोर दें और पूर्णतया सफल हो सकें. जब बात मानसिक स्वास्थ्य की आती है तो स्वत: ही यहां आत्मविश्वास उभर कर सामने आता है. जिसका यह विश्वास जितना दृढ़ है वह जीवन में उतना ही सफल भी है. लाख कठिनाईयां उसे कमजोर नहीं कर पाती और अंत में जो भी निर्णय आए, वह उसी के पक्ष में आता है. जी हां, योग के क्षेत्र में एक ऐसा ही नाम सामने आया है, जिन्हें अनेक अवसरों पर योग को लेकर तिरस्कार मिला, अपमानित किया गया, डराया, धमकाया गया, यहां तक कि धर्म का हवाला भी दिया जाता रहा, लेकिन वे हर मुश्किल को मुस्कुराते हुए सहती रहीं और आखिरकार वो दिन भी आया जब उनके देश के राजा ने उनकी प्रशंसा में पुल बांधे.
‘योग’ एक जीवन चर्या
इस महान शख्सियत के लिए राजा के इन शुभकामना भरे शब्दों के साथ अब सारा अपमान कहीं पीछे छूट गया था. सामने दिख रहा था तो उनका सतत एक दिशा में बढ़ते रहने का उनका कर्म, जो लोगों की प्रेरणा बन चुका था. उसके बाद उनके अपने हमवतन लोगों ने भी माना कि ‘योग’किसी धर्म का हिस्सा नहीं बल्कि यह एक जीवन चर्या है, जोकि हमें स्वस्थ रहने का मार्ग बताता है. निरोगी काया के लिए ‘योग’ को अपनाने से किसी की इबादत में कोई फर्क नहीं पड़ता, बल्कि स्वस्थ जीवन जीने का मार्ग ही सुगम होता है. बात यहां हम सऊदी अरब की कर रहे हैं. जहां पर सनातन हिन्दू धर्म या अन्य धर्म के मानने वाले नहीं बल्कि इस्लाम को धर्म के रूप में स्वीकार्य करने वाले लोग हैं.
सऊदी अरब में ‘योग’को ऐसे मिली मान्यता
अरब में पहले ‘योग’ को सिर्फ हिंदू धर्म का हिस्सा माना जाता था. ‘योग’ करना गैर इस्लामिक था, लेकिन जब सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने योग को खेल के रूप में मान्यता दी तब से यह इस देश में यह काफी लोकप्रिय हो रहा है. खुशी की इसमें बात यह है कि ‘योग’का ध्वज लेकर जो सबसे पहले आगे बढ़ा वह कोई पुरुष नहीं, एक महिला है. दरअसल, जिस देश में कभी शरिया कानूनों के नाम पर औरतों के अधिकारों को दबाया जाता था, उनकी आजादी छीनी जाती थी, आज उसी देश में औरतों की आवाज बुलंद हो रही है. लगभग 20 साल की लड़ाई के बाद “नौफ अल मारवाही” यहां पहली योग शिक्षिका घोषित होने में सफल ही नहीं रहीं बल्कि आज के समय में पूरे अरब में यह एक आशा की किरण बनकर उभरी हैं.
इस्लामिक देश में योग को दिलाई प्रतिष्ठा
कहना होगा कि अरब में ‘योग’ को प्रतिष्ठापित व मान्यता दिलाने का पूरा-पूरा श्रेय नौफ मारवाई को जाता है. वह सऊदी अरब में “अरब योग फाउंडेशन” की संस्थापक हैं. उन्होंने ही यहां योग को कानूनी बनाने और सऊदी अरब में आधिकारिक मान्यता दिलाने में योगदान दिया है. इसलिए उन्हें भारत ने वर्ष 2018 में अपने चौथे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित भी किया.
सूर्य नमस्कार पर थी सबसे अधिक लोगों को आपत्ति
मारवाई अपने अनुभव साझा करते हुए कहती हैं कि पहले उन्हें बहुत परेशान किया गया. मौलवियों को सबसे अधिक आपत्ति सूर्य नमस्कार पर थी, लेकिन लगातार प्रयासों के बाद अब यहां के लोगों का नजरिया बदलने लगा है. लोग समझने लगे हैं कि ‘योग’ जीवन को स्वस्थ रखने का एक माध्यम है. इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है.
‘योग’ कैंसर जैसे रोग से बचाने में मददगार
नौफ का कहना है कि ‘योग’ ने उन्हें कैंसर से बचने में मदद की है. अल्लाह की मैं बहुत आभारी हूं कि उसने मुझे ‘योग’ का रास्ता बताया. मैं एक ऑटो-इम्यून बीमारी के साथ जन्मी जरूर थी, लेकिन योग और आयुर्वेद के माध्यम से इस चुनौती पर विजय प्राप्त करने में सफल रही हूं. वे अपने अनुभव साझा करते हुए बताती हैं कि उन्हें लगभग बीस वर्षों तक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनके साथ उनका परिवार साथ देने के लिए खड़ा हुआ था, इसलिए वे योग के रास्ते पर सतत आगे बढ़ती रहीं.