भारत में चार दिन काम और तीन दिन छुट्टी का विचार एक बार फिर चर्चा में है. हाल ही में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (Ministry of Labour and Employment of India) की ओर से दी गई सफाई के बाद यह सवाल आम लोगों के मन में उठने लगा है कि क्या वाकई अब भारतीय कर्मचारी सिर्फ चार दिन काम करके पूरे हफ्ते की सैलरी पा सकते हैं. इसका सीधा जवाब है हां, लेकिन कुछ तय शर्तों के साथ.
श्रम मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर स्पष्ट किया कि नए लेबर कोड्स के तहत काम के घंटों को लेकर लचीलापन दिया गया है. इसका मतलब यह नहीं है कि कुल काम के घंटे कम हो गए हैं. सप्ताह में काम के घंटे अब भी 48 ही रहेंगे, लेकिन इन्हें कैसे बांटा जाए, इसमें विकल्प दिया गया है.
मंत्रालय के मुताबिक, कर्मचारी चार दिन में 12-12 घंटे काम कर सकता है और बाकी तीन दिन उसे सवैतनिक अवकाश मिल सकता है. हालांकि, अगर कोई कर्मचारी एक दिन में 12 घंटे से ज्यादा काम करता है, तो अतिरिक्त समय को ओवरटाइम माना जाएगा और उसका भुगतान दोगुनी दर से करना अनिवार्य होगा.
12 घंटे का मतलब लगातार काम नहीं
यहां यह समझना जरूरी है कि 12 घंटे का कार्यदिवस मतलब लगातार काम करना नहीं. इसमें लंच ब्रेक, आराम का समय और काम के बीच के अंतराल भी शामिल होते हैं. यानी कर्मचारी को बिना रुके 12 घंटे काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
क्या चार दिन का वर्क वीक अनिवार्य है?
नए लेबर कोड्स में चार दिन काम करने की व्यवस्था को अनिवार्य नहीं बनाया गया है. यह सिर्फ एक विकल्प है, जिसे कंपनी और कर्मचारी आपसी सहमति से अपना सकते हैं. कई दफ्तर पांच या छह दिन काम की पुरानी व्यवस्था ही जारी रख सकते हैं. अंतिम फैसला कंपनी की नीति, राज्य के नियमों और काम की प्रकृति पर निर्भर करेगा.
नए लेबर कोड्स क्या हैं और क्यों अहम हैं
21 नवंबर 2025 को सरकार ने 29 पुराने श्रम कानूनों को हटाकर चार नए लेबर कोड्स लागू किए. इनमें वेतन संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता और व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य संहिता शामिल हैं. इनका उद्देश्य श्रम कानूनों को सरल बनाना, एकरूपता लाना और कर्मचारियों को बेहतर सुरक्षा देना है.
कर्मचारियों को क्या फायदा
इन नए नियमों के तहत फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों को भी अब स्थायी कर्मचारियों के बराबर लाभ मिलेंगे. एक साल की सेवा के बाद ग्रेच्युटी का हक, समान वेतन और सामाजिक सुरक्षा जैसी सुविधाएं अब उन्हें भी मिलेंगी. साथ ही, पहली बार गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को भी श्रम कानूनों के दायरे में लाया गया है.
श्रम मंत्रालय की सफाई से यह साफ हो गया है कि भारत में काम के घंटे कम नहीं किए जा रहे हैं, बल्कि उन्हें पूरा करने के तरीके में लचीलापन दिया जा रहा है. चार दिन का वर्क वीक कोई बाध्यता नहीं, बल्कि एक विकल्प है. आने वाले समय में यह व्यवस्था कितनी अपनाई जाएगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कंपनियां और कर्मचारी इस लचीलेपन का कैसे इस्तेमाल करते हैं.













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