Forcible Sex With Wife Not Illegal: पत्नी के साथ जबरन सेक्स गैरकानूनी नहीं, पति को गिरफ्तारी से पहले ही मिली जमानत
प्रतिकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

शादी के बाद पत्नी के साथ सेक्स के लिए दबाव बनाने के मामले में मुंबई की अदालत ने फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि पति होने के नाते यह नहीं कहा जा सकता कि उसने कोई अवैध काम किया है. महिला ने अपने पति पर उसकी इच्छा के खिलाफ उसके साथ यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था. इस मामले में न्यायालय ने कहा है कि यह कानूनी जांच के दायरे में नहीं आता.

पीड़ित महिला के मुताबिक, इस दपंति की शादी बीते साल 22 नवंबर में हुई थी. पतिन पर आरोप लगाते हुए महिला ने पुलिस को बताया शादी के बाद उसके पति और उसके परिवार ने उस पर पाबंदियां लगानी शुरू कर दीं. उसे ताने के मारने के साथ ही गालियां भी दी जातीं और पति और उसका परिवार पैसे की डिमांड करने लगा.

पीड़ित महिला का यह भी आरोप है कि शादी के एक महीने बाद ही पति ने उसकी मर्जी के खिलाफ उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए. पति ने सेक्स के लिए उस पर दबाव डाला. वहीं महिला ने यह भी आरोप लगाया कि वो अपने पति के साथ बीती 2 जनवरी को मुंबई के पास हिल स्टेशन महाबलेश्वर गई थी. इस दौरान यहां भी पति ने उस पर सेक्स के लिए दबाव डाला और जबरन सेक्स किया.

इसके बाद बाद महिला अस्वस्थ महसूस करने लगी. वह इलाज के लिए डॉक्टर के पास गई. जांच के दौरान डॉक्टर ने उसे बताया कि कमर के नीचे उसे पैरालिसिस हो गया है. इसके बाद महिला ने अपने पति और अन्य के खिलाफ मुंबई के एक थाने में मामला दर्ज करवाया. इसके बाद ये मामला कोर्ट जा पहुंचा.

वहीं इस मामले में पति ने कहा कि पत्नी द्वारा उस पर लगाए गए आरोप झूठे हैं. कोर्ट में सुनवाई के दौरान पति और उसके परिवार ने कहा कि उन्हें पत्नी द्वारा झूठे आरोप लगाकर इस मामले में फंसाया जा रहा है. उससे कभी भी दहेज की कोई मांग नहीं की गई. पति और उसके परिवार ने अदालत को बताया कि पति ने भी महिला के खिलाफ मामला दर्ज कराया था.

इसके अलावा मामले की सुनाई  के दौरान न्यायाधीश ने कहा कि पति द्वारा अपनी अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध का मुद्दा कानूनी आधार नहीं है. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, "यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि युवा लड़की को इस दौरान पैरालिसिस का सामना करना पड़ा. लेकिन आवेदकों (पति और परिवार) को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. आवेदकों के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति को देखते हुए, हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है. आवेदक जांच के दौरान सहयोग करने को तैयार हैं.