देश के ज्यादातर छोटे किसानों द्वारा उगाए जाने वाले मोटे अनाज को लोकप्रिय बनाना देश की सेवा करने के बराबर है. ऐसे में सरकार ने किसानों के साथ इस पर बातचीत भी की है. मिलेट्स से सिर्फ रोटी ही नहीं बल्कि कई अन्य उत्पाद भी बन सकते हैं. जैसे रागी का डोसा या इडली बन सकती है, वहीं बाजरा के लड्डू बन सकते हैं, यहां तक कि बाजरा के बिस्कुट तक बनाए जा सकते हैं. खासतौर से बच्चों को ध्यान में रखते हुए मिलेट्स की टॉफी या चॉकलेट भी बन सकती है. फिलहाल लोग इसके प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं. स्वाभाविक रूप से लोग इसके प्रचार प्रसार में लगे हुए हैं और विशेष रूप से अगर इसके आर्थिक पक्ष को देखें तो हमारे ध्यान में आएगा कि मिलेट्स का जितना अधिक प्रयोग बढ़ेगा उतनी ही अधिक मिलेट्स की प्रोसेसिंग बढ़ेगी.
फिलहाल, सरकार द्वारा मिलेट्स की उत्पादन उत्पादकता बढ़ाने के प्रयोग किए जा रहे हैं. जैसे-जैसे मिलेट्स की मांग बढ़ेगी वैसे-वैसे किसानों को इनका अच्छा दाम भी मिलेगा. दुनिया के बाजार में मिलेट्स उपयोगी होगा और मिलेट्स से बने पदार्थों को मार्केट मिलेगा. इसका फायदा हमारे यहां के स्टार्टअप्स को भी होगा और इंडस्ट्री को भी होगा और अन्ततोगत्वा इसका फायदा किसानों को भी होगा. ऐसे में इससे आर्थिक पक्ष भी मजबूत होगा.
किसानों के फायदे के लिए बनाए FPO
किसान उत्पादक संगठन जिन्हें FPO कहा जाता है. इनसे किसानों को फसलों को खरीद और बिक्री करने में आसानी होती है. इस तरह की योजना का भारत में बेहतर भविष्य है. दरअसल, भारत में करीब 86% छोटे किसान हैं. छोटे किसानों की अपनी आर्थिक क्षमता नहीं होती, वहीं दूसरे बड़े लोग भी ऐसे किसानों तक नहीं पहुंचते. ऐसे में किसानी क्षेत्र में निजी निवेश का पहुंचना बहुत जरूरी है. 300 के करीब किसान यदि इकट्ठा होते हैं तो स्वाभाविक रूप से एक FPO बनता है. ऐसे FPO के माध्यम से किसान उन्नत खेती की ओर अग्रसर हो सकता है. यदि 300 किसान मिलकर काम करते हैं तो उनके उत्पादन में एकरूपता आएगी. ये सब किसान मिलकर टेक्नोलॉजी का फायदा ले सकते हैं, एक ही प्रकार का फर्टिलाइजर खरीदेंगे, एक ही प्रकार का पेस्टीसाइड यूज करेंगे, ऐसे ही जब 300 किसान आदान खरीदेंगे तो ये उनको सस्ता भी मिलेगा. इससे उनकी आय बेहतर होगी. यही कारण है कि सरकार किसानों के फायदे के लिए FPO परियोजना लेकर आई. इस पर केंद्र सरकार 6 हजार 865 करोड़ रुपए खर्च कर रही है. अभी तक 10 हजार FPO में से 4 हजार FPO रजिस्टर्ड हो चुके हैं.
डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन
कृषि क्षेत्र में यह एक क्रांति की तरह है. देश में कृषि के विकास और उन्नत खेती में इसका अहम योगदान रहा है. यदि गौर करें तो आज हम जिस युग में जीवन बिता रहे हैं वो तकनीक का युग कहलाता है और तकनीक के युग में अगर कृषि बिना तकनीक के रहे तो यह कृषि क्षेत्र के साथ न्याय नहीं होगा. ऐसे में कृषि क्षेत्र में भी डिजिटलाइजेशन हो जाए तो इसका बहुत अधिक फायदा किसानों को मिलेगा और सरकार की योजनाओं का लाभ भी उसे मिल सके, यह भी सुनिश्चित किया जाएगा. इसलिए सरकार द्वारा डिपार्टमेंट में एग्रीस्टैक बनाया जा रहा है. यह कृषि क्षेत्र हेतु नया डिजिटल प्रयोजन साबित होगा. एग्रीस्टैक में किसान का खेत होगा और उसका सर्वे क्रमांक होगा और किसान का नाम होगा, उसका आधार कार्ड क्रमांक होगा और उसके खेत की जो बाउंड्री है उसका जियो टैगिंग भी उस प्लेटफॉर्म में होगा. इससे बैंक भी जुड़े रहेंगे. साथ ही साथ केंद्र व राज्य सरकारें भी जुड़ी रहेंगी. इसके साथ ही सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया है कि इसरो के साथ मिलकर एक कृषि डीएसएस बनाए जा रहे हैं जिससे कि सैटेलाइट की मदद से हम सर्वे कर पाएंगे. यह सैटेलाइट ऐसा होगा जो हर खेत पर 15 दिन में एक बार पहुंचेगा. इससे ग्राउंड रियलिटी हर 15 दिन में केंद्र सरकार के पास होगी. एग्रीस्टैक में यदि किसी किसान का नाम दर्ज होगा तो उस किसान को बैंक से लोन मिलना भी आसान होगा, साथ ही जमीन की खरीद फरोख्त में भी किसी तरह की धोखेबाजी नहीं होगी क्योंकि यह सीधा डिजिटली होगा. जहां तक फसल के आकलन की बात है वो सैटेलाइट की मदद से किया जा सकेगा. ऐसे में यदि प्राकृतिक प्रकोप से किसी किसान का फसल का नुकसान हुआ है तो फिर कोई भी हेरा-फेरी नहीं कर पाएगा. ऐसे में कम समय में सटीक आकलन करने में सरकार सफल होगी.
किसान ड्रोन
पीएम मोदी के नेतृत्व में देश में ड्रोन पॉलिसी बनाई गई है. उनके निर्देश के अनुसार कृषि के क्षेत्र में भी उसका उपयोग हो, उसका उपयोग हो, उसके लिए कृषि मंत्रालय ने भी अपना एसओपी जारी कर दिया है. फसलों के आकलन, भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण, कीटनाशकों एवं पोषक तत्वों के छिड़काव के लिए ‘किसान ड्रोन’ का इस्तेमाल शुरू हो गया है. दरअसल, ड्रोन का इस्तेमाल करके अगर किसान पेस्टीसाइड या फर्टिलाइजर का छिड़काव करते हैं तो निश्चित रूप से उन्हें इसका बड़ा फायदा प्राप्त होता है, क्योंकि जितनी जरूरत है और जितने क्षेत्र में पेस्टीसाइड या फर्टिलाइजर का छिड़काव होना है वो जरूरत के हिसाब से ही होगा. साथ ही साथ पेस्टिसाइड और फर्टिलाइजर के दुष्प्रभावों से भी बचा जा सकता है. ड्रोन के माध्यम से समय की भी बचत होती है.
पीएम मोदी द्वारा कृषि क्षेत्र में ड्रोन तकनीक पर काफी जोर दिया जा रहा है, और ड्रोन से बड़े क्षेत्रफल वाले खेत में महज कुछ ही मिनटों में कीटनाशक, दवाओं का छिड़काव भी किया जा सकता है. इससे समय की भी बचत होगी. भारत बीते 8 वर्ष में खेती के कार्य में आमूलचूल परिवर्तन के लिए बहुत आगे बढ़ चुका है. पीएम मोदी ने खेती किसानी के लिए जब बल दिया तो निश्चित रूप से चौतरफा प्रयत्न भी किए कि वो टेक्नोलॉजी से कैसे जुड़ेंगे. जहां तक ड्रोन तकनीक का मामला है, पहले एक समय था जब हम लोगों को अगर ड्रोन का उपयोग करना है तो बहुत सारी अनुमति लेनी पड़ती थी. सर्वे ऑफ इंडिया इस पर काम करता रहता है लेकिन इसके बाद भी सर्वे ऑफ इंडिया को भी अनेक प्रकार की अनुमतियां लगती थी.
स्वामित्व योजना से मिला मालिकाना हक
ग्रामीण क्षेत्र में जो लोग रहते हैं उनके पास पहले प्रॉपर्टी का कोई मालिकाना हक नहीं होता था. ऐसे में केंद्र सरकार के प्रयासों से पंचायत डिपार्टमेंट के माध्यम से सर्वे ऑफ इंडिया ने स्वामित्व योजना के अन्तर्गत ड्रोन टेक्नोलॉजी से हर गांव का सर्वे किया और जिसका मकान वहां बना हुआ है, उसकी नापतौल करके उस मकान का मालिकाना हक राज्य सरकारों के साथ उसे दिया गया. इससे ये फायदा मिला कि अब उस व्यक्ति की प्रॉपर्टी भी रजिस्टर्ड हो गई है और प्रॉपर्टी की कीमत का भी आकलन हो गया. ऐसे में गांव की प्रॉपर्टी को भी लोग अब बैंक में गिरवी रखकर लोन ले सकते हैं.
G20 को लेकर कृषि मंत्रालय कर रहा कार्यक्रम आयोजित
G20 की प्रेसीडेंसी इस बार भारत के पास है. भारत के गौरव को बढ़ाने के लिए G20 के प्लेटफॉर्म पर देशभर में लगभग 56 कार्यक्रम होंगे. पहले इस तरीके के कार्यक्रम केवल दिल्ली तक ही सीमित होते थे लेकिन इस बार इसे देश में विकेंद्रित किया गया है. G20 के माध्यम से दुनिया के कई देशों के प्रतिनिधि जब भारत आएंगे तो वो देख पाएंगे कि भारत कैसे तरक्की कर रहा है और इस दौरान वे विभिन्न क्षेत्रों का ब्यौरा लेंगे. इससे भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी. कृषि मंत्रालय भी इस क्रम में निर्धारित कार्यक्रमों को उपयुक्त स्थानों का चयन करके ठीक ढंग से करने के लिए प्रतिबद्ध है.