Dewa Sharif Holi 2023: देवा शरीफ की लोकप्रिय सुफियाना होली! जहां हर धर्म के लोग प्रस्तुत करते हैं सद्भावना की मिसाल!

लखनऊ अलीगंज स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के लिए बहुत लोकप्रिय है, क्योंकि 14वीं शताब्दी के इस हनुमान मंदिर का निर्माण नवाब मोहम्मद अली शाह और उनकी पत्नी बेगम राबिया ने करवाया था. इसी लखनऊ से कुछ किमी दूर बाराबंकी स्थित शरीफ दरगाह भी ऐसी ही एक मिसाल है, जहां हिंदू मुसलमान ही नहीं बल्कि सिख, ईसाई एवं अन्य धर्म के लोग भी मजार के परिसर में रंगों की होली खेलते हैं. आइये जानें इस दरगाह के बारे में विस्तार से, साथ ही यह भी कि दरगाह पर रंगों की होली की परंपरा कैसे शुरू हुई, जिसे हिंदू-मुसलमान मिलजुल कर मनाते हैं.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 30 किमी दूर बाराबंकी के कस्बा देवा में देवा शरीफ नामक चर्चित दरगाह है. इस मजार के मालिक सूफी संत हाजी वारिस अली साहब हैं. यहां होलिकोत्सव के दिन सर्वप्रथम कौमी एकता गेट से एक परंपरागत तरीके से एक जुलूस शुरू होता है. इसके बाद सभी धर्म के लोग मजार परिसर में एकत्र होते हैं. यहां महिलाएं एवं बच्चे होली खेलने आये लोगों पर गुलाब एवं केवड़ा का इत्र मिला जल छिड़कते हैं. इसके बाद लोग उत्साह एवं मस्ती के साथ पहले गुलाब और गुलाल की होली खेलते हैं. इसके बाद देखते ही देखते पूरे दरगाह में रंगों की खूब बौछार होती है. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि इस अनूठी होली में शामिल होने के लिए हिंदू मुसलमान ही नहीं बल्कि पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान से यहां आते हैं और दरगाह के परिसर में प्यार और सद्भावना के साथ रंगों की होली खेलते हैं. इस अवसर पर हिंदू समुदाय के लोग लोगों को गुझिया वितरित करते हैं और एक दूसरे को गले लगाते हैं. कहा जाता है कि कोविड काल में भी दरगाह की यह अनूठी होली बदस्तूर जारी रही. होली के दिन दरगाह के अब तक के इतिहास में यहां कभी भी झगड़े या विवाद नहीं हुए. यह भी पढ़ें : Holi Stories 2023: होली से जुड़ी पारंपरिक कथाएं एवं भित्ति चित्र! जिसकी जानकारी सभी को होना चाहिए!

कौन हैं सूफी संत हाजी वारिस अली साहब?

हाजी वारिस अली शाह का जन्म 1800 के दशक की शुरुआत में देवा में हुसैनी सैयद के परिवार में हुआ था. वारिस अली शाह के पिता कुर्बान अली शाह भी एक सूफी संत थे. सूफीवाद के वारसी आदेश की स्थापना वारिस अली शाह ने की थी. स्थानीय लोगों के अनुसार हाजी वारिस अली शाह सोचते थे कि सभी धर्म प्रेम एवं समर्पण की भावना की ही अलख जगाते हैं. कहा जाता है कि अपने जीवन काल में सरकार वारिस पाक भी अपने शिष्यों और चाहने वालों के साथ होली खेल कर उन्हें त्योहार की मुबारकबाद देते थे. उनके निधन के 118 साल बाद भी यह रिवायत कायम है. अलबत्ता इस दरगाह में रंगों की होली कब शुरु हुई इसकी कोई पुख्ता तारीख ज्ञात नहीं है.

वारिस अली शाह के शिष्य बेदम शाह वारसी का होली-प्रेम

सूफी परंपरा के महान कवि और हाजी वारिस अली शाह के शिष्य हजरत बेदम शाह वारसी ने अपने काव्य संग्रहों में कई भजन और होली गीत भी लिखे हैं. अपने पीर को श्री कृष्ण और खुद को गोपी की तरह मानते हुए उन्होंने लिखा 'आज होरी मची ब्रज बीच सखी, कान्हा घेर-घेर रंग डारे' तथा 'वारिस पिया घर होरी मची है, प्रेम के रंग में रंगत हैं चुनरिया, दरूद को अबीर- गुलाल बनायो, नेह के रंग से भरी है गगरिया' जैसे होली गीतों के माध्यम से उन्होंने संसार को भक्ति और प्रेम का मार्ग दिखाया.