दिल्ली दंगा: युवक की मौत को हाई कोर्ट ने बताया
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

साल 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान मारे गए एक मुस्लिम युवक का केस हाई कोर्ट ने सीबीआई को सौंप दिया है. हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस की जांच से भरोसा नहीं जगता, खासकर तब जब पुलिस 4 साल में आरोपियों की पहचान करने में विफल रही.साल 2020 में भारत की राजधानी दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से में हुए दंगों के दौरान 23 साल के फैजान की मौत हो गई थी. 23 जुलाई को हाई कोर्ट ने फैजान के केस की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने का आदेश दिया. इससे पहले यह मामला दिल्ली पुलिस के पास था और उसकी अपनी भूमिका पर सवाल थे. आरोपों के मुताबिक, फैजान की पिटाई अज्ञात पुलिसकर्मियों ने की थी और उसे राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किया गया था.

घटना फरवरी 2020 की है, जब एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें फैजान और चार अन्य मुसलमानों को कथित तौर पर पुलिसकर्मियों द्वारा डंडों से पीटा जा रहा था और राष्ट्रगान व 'वंदे मातरम' गाने के लिए मजबूर किया जा रहा था. वीडियो क्लिप में फैजान और चार अन्य लोग पुलिस से रहम की गुहार लगा रहे थे.

फैजान की मां किस्मतुन ने कोर्ट की निगरानी में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) द्वारा जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की. यह याचिका 2020 में दायर की गई थी और अब 23 जुलाई को हाई कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली.

हाई कोर्ट ने कहा, यह "घृणा अपराध" के बराबर

हाई कोर्ट के जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने पुलिस से चार साल की जांच के बाद भी मामले में शामिल पुलिसकर्मियों की पहचान करने में विफल रहने पर सवाल किया. जस्टिस भंभानी ने कहा, "साढ़े चार साल से अधिक समय बीत चुका है. अब तक की जांच के दौरान दुर्व्यवहार और हमले में शामिल एक भी पुलिसकर्मी की पहचान नहीं हो पाई है."

जस्टिस भंभानी ने आगे कहा, "यह मामला मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन के आरोपों को पेश करता है क्योंकि पुलिसकर्मियों की गैरकानूनी कार्रवाई, जिनकी अभी तक पहचान नहीं की गई है, धार्मिक कट्टरता से प्रेरित थी और इसलिए यह हेट क्राइम के बराबर होगी."

हाई कोर्ट ने टिप्पणी की, "मौजूदा मामले में जांच स्पष्ट रूप से धीमी, अधूरी रही है और उन लोगों को सुविधाजनक रूप से छोड़ दिया गया है, जिनपर याचिकाकर्ता के बेटे पर क्रूरतापूर्वक हमले में शामिल होने का शक है."

संदिग्ध आरोपी पुलिसकर्मियों पर कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, "इससे भी बुरी बात यह है कि संदिग्धों को कानून के संरक्षक के रूप में कार्य करने का जिम्मा सौंपा गया था. वे शक्तिशाली और अधिकार प्राप्त पदों पर थे, लेकिन ऐसा लगता है कि वे कट्टरपंथी मानसिकता से प्रेरित थे."

फैजान की मां ने क्या आरोप लगाए

फैजान की 65 साल की मां किस्मतुन ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि रिहा करने से पहले उनके बेटे को पुलिस हिरासत में बुरी तरह यातना दी गई. ज्योति नगर पुलिस स्टेशन से रिहाई के 24 घंटे के भीतर 26 फरवरी 2020 को गुरु तेग बहादुर अस्पताल (जीटीबी) अस्पताल में फैजान की मौत हो गई थी, जहां उसे पुलिस अधिकारियों द्वारा कथित रूप से हमला किए जाने के बाद ले जाया गया था.

किस्मतुन का यह भी आरोप है कि जब वह थाने गईं, तो पुलिस ने उन्हें फैजान से नहीं मिलने दिया. उनका यह भी कहना है कि फैजान को कुछ देर के लिए अस्पताल ले जाने के बाद उसे वापस थाने ले जाया गया था. हाई कोर्ट ने कहा कि फैजान को जीटीबी अस्पताल से ज्योति नगर पुलिस थाने में लाए जाने के बाद वहां क्या हुआ, इस संबंध में अभी तक कोई जांच नहीं की गई है.

फैजान के साथ मारपीट की कथित घटना 24 फरवरी 2020 को हुई थी, लेकिन दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पहली बार किस्मतुन से 18 मार्च 2020 को पूछताछ की थी.

याचिका में आरोप लगाया कि दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की जांच एक दिखावा है, जो दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने के लिए की गई है. किस्मतुन की वकील वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट में पुलिस पर आरोप लगाया कि उसने फैजान को गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखा और उसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच नहीं दिया.

33 पन्नों के फैसले में हाई कोर्ट ने दो वीडियो फुटेज की ओर ध्यान दिया. एक वीडियो में फैजान को अकेले पुलिसकर्मियों द्वारा घेरकर बेरहमी से पीटा जा रहा है और दूसरे वीडियो में फैजान समेत कई युवक करदमपुरी पुलिया और 66 फुटा रोड के पास सड़क पर घायल अवस्था में पड़े हैं, और कथित तौर पर पुलिसकर्मियों द्वारा उन्हें घेर कर बेरहमी से पीटा जा रहा है.

2020 का दिल्ली दंगा

अगस्त 2020 में एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों पर अपनी रिपोर्ट में फैजान की मौत का जिक्र किया था. एमनेस्टी ने कहा था कि फैजान को कथित तौर पर पुलिस ने बिना किसी आरोप के करीब 36 घंटे तक हिरासत में रखा और फिर उसकी हालत बिगड़ने के बाद उसे उसकी मां को सौंप दिया.

फैजान की मौत का मामला 28 फरवरी 2020 को भजनपुरा पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था. बाद में जांच दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर कर दी गई थी.

फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में हिंसा हुई थी. दंगे 23 से 29 फरवरी 2020 तक चले थे और इनमें कम-से-कम 50 लोग मारे गए थे. हजारों लोग बेघर भी हो गए थे. ये दंगे शहर में दशकों की सबसे घातक सांप्रदायिक हिंसा थी. महीनों तक जारी रहे नए नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शनों के बाद ये दंगे हुए थे.

अलग-अलग अदालतों में चल रहे दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में करीब 47 लोग दोषी पाए जा चुके हैं. कई मामलों की सुनवाई में अदालत, दिल्ली पुलिस के रवैये पर सवाल भी उठा चुकी है.